आंख और प्रज्ञाचक्षु | Eye Aankhen

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दृस्टि , स्पर्श , श्रवण , स्वाद , गंध ये सब अहसास, अनुभूति का विषय है. उसके बीना जीवन जिना मुश्किल हो जाता है. आज मुजे अंधजन प्रज्ञाचक्षु की व्यथा के बारेमें बात करनी है. घायल की घटी घायल ही जान सकता है. कभी आप सिर्फ एक मिनट आंखे बंद करके अपने कमरे मे इधर उधर चलने की कोशिश करो तो आपको तुरंत पता चल जायेगा की अंध जनोकी क्या हालत होंती होंगी. 

    भगवान के नामसे लोग मंदिर की तिजोरी तो भर देते है मगर अंध जनोंके बारेमे भी सोचना जरुरी है. ये भी हमारे समाजका अभिन्न अंग है, एक भाग है. 

       महाभारत महा काव्य के अनुसार धृतराष्ट्र जन्म जात अंधे थे. उन्होंने गांधार देश की राजकुमारी गांधारी के साथ शादी की थी. पति प्रज्ञा चक्षु होनेके नाते उन्होंने प्रण लिया था की वो आजीवन आंखोमे पट्टी बांधकर रखेंगी. 

  कवि सूरदास श्री कृष्ण के अनन्य उपासक – परम भक्त थे. उनका जन्म मथुरा – आगरा मार्ग के किनारे रुनकता नामक गांव मे एक निर्धन सारस्वत ब्राह्मण परिवार मे हुआ था. 

       बताया जाता है की उनके पिता रामदास गायक थे. और सूरदास जन्म से अंधे थे. मगर इसमे भी मत मतांतर है. इसके बारेमें कभी एक स्वतन्त्र आर्टिकल जरूर लिखूंगा. श्री सूरदास अकबर के दरबारी संगीतज्ञ थे. उनके समकालीन कविओमे सूरदास अंध होते हुए भी सर्वोपरि थे. 

        आंखों के लिये चक्षु , नयन , लोचन , नेत्र जैसे अनेक शब्द प्रयोग किये जाते है. आंखों के लिये, ” अंधों मे काना राजा ” कहावत प्रसिद्ध है. 

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          आंखों के फड़कने को ‘मायोकेमिया’ (myokymia) कहा जाता है. वैज्ञानिको का मानना है कि, जब भी किसी अंग के आस-पास की मांशपेशियां सिकुड़ जाती है और वह उस जगह को हिलाने में असक्षम रहती है तब वह अंग फड़कने लग जाता है. 

    ज्यादातर लोगोंका मानना है की कुछ अशुभ होने वाला हो तब आंख फड़कती है. जबकि यह एक शारीरिक प्रकिर्या है. 

       चश्मा का नंबर हो , तनाव के कारण , मोबाइल , कंप्यूटर या लैपटॉप का अधिक उपयोग करने के कारण , आंखों की एलर्जी और जब मैग्नीशियम लेवल कम होता है तभी ऐसी समस्या होती है.

           महिला ओकी दाहिनी आंख का फड़कना अशुभ संकेत या अपशुकन माना जाता है. मगर पुरुषो की दाहिनी आंख फड़कना शुभ संकेत माना जाता है. कोई उसे धन लाभ होने का भी लक्षण मानते है. 

          अगर कभी – कभार आंखे फड़क रही है तो आप इसे नजरअंदाज कर सकते हैं, लेकिन अगर यह समस्या आपके साथ लगातार हो रही है तो यह चिंता का विषय हो सकता है. ऐसे में आपको चिकित्सक की सलाह लेनी जरुरी है.

     वैसे देश भर मे कई अंधशाला चल रही है मगर सबसे ज्यादा सहानुभूति की जरुरत प्रज्ञाचक्षुओ को है. जब आंखे बंद हो जाती है तो दिमाग़ आंखों का काम करना शुरु कर देता है. 

       प्रञचक्षु के शिक्षण के लिये ब्रेल ( Braille ) लिपि का अविष्कार सन 1884 मे फ़्रांस के नेत्रहीन लुई ब्रेल ने किया था. लुई ब्रेल ने जब यह लिपि बनाई तब वे मात्र 15 वर्ष के थे. सन् 1884 में पूर्ण हुई,आज यह ब्रेल लिपि का उपयोग दुनिया के लगभग सभी देश करते है. 

       आज मंदिरो मे करोडो रूपया का दान दीया जाता है उसमे से दस प्रतिशत दान अगर प्रज्ञाचक्षु ओके हित मे किया जाय तो कई लोगों को नई रोशनी मिल सकती है. जरुरत है सकारात्मक अभिगम अपनाने की. यदि हां तो सोने मे सुहागा हो सकता है. 

           सन 1972 मे आयी ” अनुराग ” फ़िल्म विनोद मेहरा और मौसमी चेटर्जी की सुपर हिट फ़िल्म थी. जिसमे हीरोइन मौसमी चेटर्जी को प्रज्ञाचक्षु बताई गई है. गाने के बोल थे , 

ओ तेरे नैनो के मै दीप जलाऊंगा, 
अपनी आंखों से दुनिया दिखलाऊंगा 
अच्छा वो क्या है, एक मंदिर है,
उस मंदिर मेँ एक मूरत है , 
ये मूरत कैसी होती हे… 
तेरी सूरत जैसी होती है……

      इस गाने को संगीत से सवारा था , एस डी बर्मन साहबने.

गाया था रफ़ी और लता मंगेशकरजी ने और गानेको लिखा था, आनंद बक्शी साहबने. फ़िल्म सुपर डुपर हिट हुई थी. कभी यू टयूब मेँ सर्च करोंगे तो आसानीसे ये गीत आपको मिल जायेगा. सुननेमे जरूर आनंद आएगा. 

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                         शिव सर्जन प्रस्तुति.

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