जातीय प्रथा मानव निर्मित है ?

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मैं सदाशिव हूं. मैं वो सदाशिव नही जो आप लोग समज रहे हो. हा, मगर मैं उसी शिवशंकर परमात्मा का अंश हूं. मैं 84 लाख योनियोंसे भ्रमण करते मनुष्य योनि से पृथ्वी लोग मे वास्तव्य कर रहा हूं.

मैं जन्म से कहे जाने वाली पिछड़ी जाती माछी परिवार मे पैदा हुआ हूं. हमारा समाज आदिकाल से है. प्रभु शिव जी ने भी पार्वती को पाने के लिए मछुआरे का वेश धारण किया था. महाभारत मे भी हमारा उल्लेख मिलता है. ऋषि श्री पराशर मत्स्यगंधा सत्यवती पर मोहित हुए थे तथा सत्यवती के गर्भ से पराशर पुत्र कृष्णद्वैपायन व्यास जी उत्पन्न हुए थे.

लोग मछली पकड़कर उदर निर्वाह करने वाले लोगो को ( शूद्र ) कहते है. हम कोली, आगरी , माछी लोग मछली पकड़कर बेचते है. और मच्छी खाते भी है. मछली का हम लोग व्यापार करते है. तो क्या हम लोग भी वैश्य कहलाने के लायक नही है ?

अन्न धान्य, सब्जी पकाने वाले को किसान कहा जाता है, मच्छीमार भी अपनी जान जोखिम मे डालकर समुद्र से मच्छी पकड़कर लोगोंकी उदर पूर्ति का काम करते है. उनको किसान का दरज्जा क्यों नही ?

कई क्षत्रिय, वैश्य वर्ण के लोग मछली खाते है तो क्या उनको शूद्र कहेंगे ? इस दुनिया मे 85 प्रतिशत लोग मांसाहारी है. जबकि 15 प्रतिशत लोग ही शाकाहारी है. ये 85 प्रतिशत मांसाहारी लोगोंको आप शूद्र कहेंगे ?

वास्तविकता ये है कि 85 प्रतिशत मे सभी वर्ण के लोग सामिल है.

माता पार्वती को केकड़ा ( crab ) एक प्रकार की मछली खूब पसंद थी. तो उन्हें भी शूद्र कहेंगे ? श्री स्वामी विवेकानंद के गुरु श्री स्वामी रामकृष्ण को मछली पसंद थी.

कश्मीर मे रहने वाले कई कश्मीरी पंडित मदिरा पीते है. मांस मछली खाते है, उसे आप लोग ब्राह्मण या तो फिर शूद्र कहेंगे ?

मैं व्यापार करता हूं, अतः कर्म से व्यापारी ( वैश्य ) हूं. मेरे मे शूरवीरता के गुण है, इसीलिए मैं ( क्षत्रिय ) हूं. मेरा स्वभाव ब्राह्मणो जैसा परोपकारी है, इसीलिए मैं ( ब्राह्मण ) हूं. मेरे मे चारो वर्ण के गुण समाये हुए है, इसीलिए मैं चारो वर्ण का हक़दार हूं.

भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि… चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः।

प्राचीन काल मे लोगोंने कर्म के हिसाब से वर्ण व्यवस्था बनाई थी. जो जैसा कर्म करता था, उसके अनुसार उसका वर्ण माना गया था. वही व्यवस्था को चलते आगे ब्राह्मण का लड़का ब्राह्मण, क्षत्रिय का लड़का क्षत्रिय, वैश्य का लड़का वैश्य और शूद्र का लड़का शूद्र कहा जाने लगा.

कालांतर के बाद सभी वर्णों के लोगों के आचरण मे बदलाव आया फिर भी वंशिय परंपरा का सिलसिला आज तक चालू रहा. यदि शूद्र ब्राह्मण जैसा आचरण भले ही करता हो फिर भी वो शूद्र ही कहा जाने लगा. ऐसे ही अन्य वर्ण के लोगोका आचरण उनके वर्ण से विपरीत हो फिर भी वो वंशिय जन्म के आधार पर उसी वर्ण का कहलाने लगा.

वाल्मीकि शूद्र था, उन्होने रामायण लिखी. व्यास जी शूद्र माता मत्स्यगंधा

जो सत्यवती के नाम से भी जानी जाती है का पुत्र था.पराशर मुनि जी सत्यवती रूप-सौन्दर्य पर आसक्त हो गया और सत्यवती के गर्भ से वेद वेदांगों में पारंगत ऐसा एक दिव्य पुत्र हुआ. जो वेदों का विभाजन करने के कारण वेदव्यास के नाम से विख्यात हुये.

हनुमान जी का जन्म कपि नामक वानर जाति में हुआ था. कहते है कि हनुमानजी आदिवासी था. आदिवासी का अर्थ प्रारंभिक मानव या प्रारंभिक वानर होता है. रामायण काल मे मानव भी होते थे और वानर जाती भी होती थी. आज वानरो की वो जाती लुप्त हो चुकी है. जिस वानर जाती मे हनुमान जी ने जन्म लिया था. जो वानर मानवो से भी ज्यादा बुद्धिशाली थे.

मैं स्वयं महाशक्ति पंच महाभूत से बना हूं. मेरे शरीर रूपी अंग मे अग्नि का वास है. मेरे शरीर मे पानी का अस्तित्व है, मेरा शरीर वायु ऑक्सीजन से जिंदा है, पृथ्वी से उत्पन्न खाद्य पदार्थ से मेरे शरीर का पोषण होता है. आकाश रूपी जीव आत्मा ने मुजे जिंदा रखा है.

जिन पांच महाशक्तियों के संयोजन से मेरा शरीर बना है, ऐसा ही पंचतत्व सभी सजीव जीवोमे है. फिर मैं शूद्र कैसा ? ईश्वर ने बनाते समय भेदभाव नही रखा तो फिर मानव कौन होता है ? ऊंच नीच का भेद रखने वाले ?

शुद्रो के साथ छुआछूत का व्यवहार क्यों किया जाता है ? मेरे परम मित्र आदरणीय श्री पुरुषोत्तम बिहारीलाल चतुर्वेदी ऊर्फ ” लाल ” साहब ने पैदल चलकर नर्मदे हर की परिक्रमा की है.

वे अपने वृतांत मे लिखते है कि कई जगह आदिवासी महिला ओने उन्हें मुफ्त मे चाय पिलाई थी. लाल साहब लिखते है कि उन गरीब आदिवासी महिलाओमे मैने महाराष्ट्र की महानता देखी. जो अथिति को ईश्वर मानती है.

वनवास काल मे प्रभु रामजी भी वन मे आदिवासी जैसा जीवन जिये थे. भील कन्या सबरी के जूठे बैर खाये थे. माछी ( माजी ) की नाव मे बैठकर नदी पार की थी.

आजभी समाज मे कई लोग आदिवासी के घरोंमे पानी पीनेसे परहेज करते है.

मगर ठेले वाले से वडापाव, इडली सांभर, मेंदुवड़ा खाने को अपनी शान समजते है. कोई उनसे जाती पूछता है ?

रेल्वे स्टेशन पर वडापाव बेचने वालोंकी जाती पूछी जाती है ?

चाइनीज बनाने वाले सभी लोग वेज नॉन वेज के बर्तन अलग रखते है ? कोई उनको पूछते है ? जातीय प्रथा मानव निर्मित है. प्रभु श्री कृष्ण तो कहकर गये थे. मेरी सृस्टि चार वर्णों मे बटी है जिसकी पहचान जो जैसा कर्म करें उसके अनुसार होती है.मगर इसका अर्थ मनगढंत तरीके से किया गया.

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