उत्सव मनुष्य स्वभाव की परंपरा है. दुनिया के हर देशमे वो अपनी अपनी परंपरा के अनुसार वो मनाया जाता है. आज हम यहां जापान के कुछ अनोखे त्यौहार के बारेमें चर्चा करेंगे.
“ओ-बोन” जापान का एक अनोखा पारम्पारिक त्यौहार है. जो पूर्वजो के लिए हर साल मनाया जाता है. मृतक व्यक्ति के प्रति कृतज्ञता जताने का यह उत्सव है. जापान एक ऐसा देश है जहां ऐसे व्यक्ति की पूजा हर साल की जाती है. जिसे ओ-बोन का त्यौहार कहते है.
जापानीस परंपरा मे ओ-बोन का त्योहार तीन दिन तक चलता है. मगर इसकी शुरुआत की तारीख जापान के विभिन्न क्षेत्रों में अलग अलग होती है. इस दिन जापानी के कई लोग पूर्वजों के घर या गांव जाते हैं. ओ-बोन के पहले दिन लोग घरों की साफ सफाई करते हैं और अपने पूर्वजों की कब्र पर जाते है. इसके पीछे उनका मानना है कि दुनिया से चले जाने वाला मृतक व्यक्ति मरने के बाद पूर्वज साल का एक दिन चुनते हैं, जब वह अपने परिजनों और दोस्तों से मिलने अपने अपने घर आते हैं.
जापानीस लोग रिवाज़ के अनुसार अपने घरों के बाहर लालटेन लटका देते हैं, ताकि उनके पूर्वजों को अपने घरों तक आने में कोई परेशानी न हो. घर मे खूब सारे पकवान बनाए जाते हैं. पहले दिन होने वाले इस अनोखे कार्यक्रम को मुके-बोन कहा जाता है. पारंपरिक ओ-बोन नृत्य, जिसे जापानी भाषा में “बोन-ओडोरी” कहा जाता हैं. लोग खुशी से नाचते-गाते हैं.
इस त्योहार के आखिरी तीसरे दिन परिवार अपने पूर्वजों की आत्माओं को वापस उनकी दुनिया भेजने के लिए सहायता करते हैं. सभी लोग मिलकर उनके नाम के दीये जलाकर नदियों में या तालाब में विसर्जित करते हैं. इस प्रक्रिया को “ओकिरी-बॉन” कहा जाता है. वह मानते हैं कि उनके पूर्वज यह सब देखकर खुश होते हैं और उनका आशीर्वाद बना रहता हैं.
जापान में पुरुषों का नग्न उत्सव :
जापान में एक उत्सव ऐसा भी है, जो हर साल ठंडी के मौसम में होता है.
थरथराती ठंड में एकत्रित होते हैं हजारों पुरुष जो नग्न अवस्था में होते है. इस उत्सव का जापान के लोगों को बेसब्री से इंतजार होता है. यहां हजारों लोग करीब निर्वस्त्र स्थिति में एक छोटे से होंशु द्वीप के मंदिर में जमा होते हैं. इस उत्सव को जापान में ” हदाका मत्सुरी ” भी कहा जाता है.
ये उत्सव साल के दूसरे महीने के तीसरे शनिवार को होता है और कई समय से होता रहा है. यहां दुनियाभर से लोग पहुंचते हैं. इसमें हर उम्र के पुरुष सामिल होते हैं. इसमें 10,000 लोगों की भीड़ इकट्ठा होती हैं. उपस्थित सभी लोग मंदिर के चारों ओर परिक्रमा करते हैं और फिर मंदिर के बर्फीले पानी के कुंड में स्नान करते हैं. इसके बाद मंदिर में असली कार्यक्रम की शुरुआत होती है, जो मंदिर प्रांगण में होती है.
मंदिर में ऊपर की मंजिल से पुजारी इस भीड़ के ऊपर पत्तों की टहनी को फेंकता है, जिसे झपटने के लिए होड़ लग जाती है. इससे भी ज्यादा छीना झपटी और धक्का-मुक्की तब होती है, जब पुजारी दो भाग्यशाली छड़ी फेंकता है. जिसे भी ये छड़ी मिलती है, माना जाता है कि उसका पूरा साल बहुत अच्छा गुजरता है और भाग्य उसके साथ होता है.
इस मौके पर पूरा मंदिर आवाजों से गूंजता रहता है. ये पूरा का पूरा समारोह केवल आधे घंटे का होता है, जिसमें हर कोई मौजूद रहना चाहता है. हालांकि जब लोग इस फेस्टिवल से वापस लौटते हैं, तो उनके शरीर पर खरोंच और हल्की-फुल्की चोट भी होती है, लेकिन इसकी परवाह कोई नहीं करता.
ये उत्सव जापान में प्राचीन समय से चल रहा है लेकिन पुराने समय में इसमें बर्बरता भी होती थी. बीच में ये एक बार बंद भी हो गया. 17वीं सदी में जब ये दोबारा शुरू हुआ तो इसे बदलकर काफी सभ्य कर दिया गया.
जापान में होंशु द्वीप पर जहां पर यह उत्सव होता है, वो द्वीप जापान का सबसे बड़ी आबादी वाला द्वीप है. ये दुनिया का सातवां बड़ा द्वीप भी है. ऐसा द्वीप भी जहां इंडोनेशिया के बाद सबसे बड़ी आबादी रहती है.
जापान का प्रसिद्ध लड़ाई का त्योहार.
जापान देश में हिमेजी शहर के मात्सुबारा तीर्थस्थल पर नाडा नो केंका मात्सुरी नाम का एक अनोखा त्योहार मनाया जाता है. इसे लड़ाई का त्योहार भी कहा जाता हैं.
ये त्योहार फसल की कटाई से जुड़ा है और शरद ऋतुके दौरान मनाया जाता है. इसका मुख्याकर्षण याताई-नेरी है यानि याताई की परेड. याताई लकड़ी की बनी झांकियां होती हैं जिनपर सोने और चांदी की सजावट की जाती है. और उसमें पर्दे लगे होते हैं.
ये याताई या झांकियां पुरुष अपने कंधों पर उठाते हैं और इनके चारों ओर लोग शिदे या रंगीन काग़ज़ से सजे बांस के खंभे लेकर चलते हैं. हर याताई का वज़न लगभग दो टन होता है.
इस लड़ाई के त्योहार का एक रिवाज़ समुद्र में नहाना होता है. हर टीम के बांस के खंभों का अलग-अलग रंग होता है. केंका मात्सुरी न सिर्फ़ जापान बल्कि दुनिया भर में मशहूर है. इसको देखने लगभग हर साल तकरीबन एक लाख लोग जमा होते हैं.
इसे लड़ाई का त्योहार इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें अलग अलग टीमें मिकोशी यानि झांकियों को एक दूसरे से टकराती हैं.