झांसी की वीरांगना लक्ष्मीबाई. Jhansi ki Rani

Jhasi ki rani
Meri Jhansi Nahi Dungi

मैं मेरी झांसी नहीं दूंगी. ये क्रन्तिकारी उद्धोषणा देने वाली रानी लक्ष्मीबाई की वीरता से कौन अनजान है, जिन्होंने अपने साहस से अंग्रेजो को अपनी वीरता का सबूत दिया था. महज 29 साल की उम्र मे इतिहास के पन्नोमे सुवर्ण अक्षर मे अपना नाम अंकित करके 18 जून 1858 के दिन अंग्रेजोंसे लड़ते लड़ते रणभूमि मे वीर गतिको प्राप्त हुई थी. 

Manikarnika story

             मणिकर्णिका का जन्म 19 नवम्बर 1828 के दिन वाराणसी मे हुआ था. परिवार के लोग प्यार से उसे मनु और छबीली कहते थे. पिता श्री मोरोपंत तांबे और माता भगीरथी सापरे की संतान थी. जो मराठी ब्राह्मण परिवार से थे. 

       जब वो चार बरस की थी तब माता की मृत्यु हो गई. पिता मोरोपंत तांबे बिठूर जिले के पेशवा के यहां काम करते थे. पेशवा ने उसे अपनी बेटी की तरह पाला और प्यार से उसे छबीली कहकर पुकारने लगा जो पारिवारिक नाम बना. 

Rani Laxmibai son

        महज 14 साल की छोटी उम्र मे मणिकर्णिका का विवाह झांसी के मराठा राजा गंगाधर राव नेवालकर से हो गया था. उस वक्त झांसी अंग्रेजो के कर्जे तले दबा हुआ था मगर जल्दी ही उसने छुटकारा पाया था. शादी के बाद मणिकर्णिका नाम रानी लक्ष्मीबाई रखा गया. रानी ने एक बेटे को जन्म दिया जिसकी 4 महीने बाद मृत्यु हो गई, अतः राजा गंगाधर ने अपने चचेरे भाई का बच्चा गोद मे लिया और उसका नाम दामोदर राव रखा गया. 

      पति राजा गंगाधर राव की मृत्यु के बाद अंग्रेजी सरकार और पडोसी राज्यों ने आक्रमण करना शुरू कर दिया था. राजा का देहांत होते ही अंग्रेज़ लॉर्ड डलहौज़ी ने ब्रिटिश साम्राज्य को पसारने के लिये चाल चली और दामोदर को झांसी के राजा का उत्तराधिकारी के रूपमे स्वीकार करने से मना कर दिया. झांसी की रानी को सालाना 60000 रुपए पेंशन लेने और झांसी का किला खाली कर के चले जाने के लिए कहा गया. रानी ने उनकी बातों को अस्वीकार कर दिया. 

          झांसी को बचाने के लिए रानी लक्ष्मीबाई ने बागियों की फौज तैयार करने का फैसला किया. उन्हें गुलाम गौस ख़ान, दोस्त ख़ान, खुदा बख्‍़श, सुंदर-मुंदर, काशी बाई, लाला भऊ बख्‍़शी, मोती भाई, दीवान रघुनाथ सिंह और दीवान जवाहर सिंह से मदद मिली. झांसी में रानी लक्ष्मी बाई ने 14000 बागियों की सेना तैयार की.

         उन्होंने अपनी महिला सेना बनाई और जिसका नाम उन्होंने ” दुर्गा दल ” दिया. और अपनी हमशक्ल झलकारी बाई को दल का प्रमुख बनाया.  

      सन 1858 मे अंग्रेजो के घेरे से बचकर भागकर तात्या टोपे से मिली. और ग्वालियर का एक किला कब्जे किया. 

( खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी. ) Khub ladi mardangi wo to Jhasi wali rani thi

रानी लक्ष्मीबाई, अंग्रेज़ों से भिड़ना नहीं चाहती थीं लेकिन सर ह्यूज रोज़ की अगुवाई में जब अंग्रेज़ सैनिकों ने हमला बोला, तो कोई और विकल्प नहीं बचा. रानी को अपने बेटे के साथ रात के अंधेरे में भागना पड़ा. 

Jhasi ki Rani death

           ता : 18 जून 1858 का वो अभागा दिन था. जब अंग्रेज सैन्य और रानी लक्ष्मीबाई के बिच धमासान युद्ध चल रहा था. चारो तरफ लाश ही लाश दिखाई दे रही थी. रानी लक्ष्मीबाई वीरतासे से लड़ रही थी. घोड़े की लगाम अपने दांतो से पकड़ रखी थी. दोनों हाथो मे दो तलवार लेकर दुश्मनों पर वार कर रही थी. 

       अचानक एक दुश्मन सैनिक ने रानी लक्ष्मी बाई के माथे पर वार किया. रक्त की धारा बहने लगी. खूब कोशिश के बाद भौ वो सवर ना सकी और बेशुद्ध हो कर निचे गीर गई. उनके अंग रक्षक द्वारा नजदीक स्थित मंदिर मे ले जाया गया. 

    रानी लक्ष्मीबाई ने बड़ी मुश्किल से एक आंख खोली मगर उसे धुंधला दिखाई दे रहा था. सांस तेजी से चल रही थी. खून ज्यादा निकलनेसे बेहाल बन गई थी. अपने आप को सवारा फिर साथियो को बोली, मेरा पार्थिव शरीर दुश्मन अंग्रेजो को नही मिलना चाहिए, कहते सिर एक तरफ लुढ़क गया. सब शांत हो गया. रानी वीरांगना ने अपने प्राण त्याग दिये थे. 

       उपस्थित अंगरक्षकों ने लकडिया जमा करके उनका अंतिम संस्कार कर दिया. रायफलों की बौछार से सारा आसमान गूंज रहा था. रानी के शव को ढूंढते अंग्रेज सेना मंदिर के पास आ चुकी थी. उनको तलाश थी रानी की मगर तब तक रानी जलकर राख हो चुकी थी.  

    अंग्रेजो ने आग को बुझाने की कोशिश तो की मगर सब व्यर्थ गया. बादमे उनको पता चला की वो कोई सामान्य महिला नहीं थी बल्कि स्वयं झांसी की रानी लक्ष्मी बाई थी. 

Rani Laxmibai Death Anniversary

         ता : 18 जून 1858 के दिन रानी लक्ष्मीबाई ग्वालियर मे अंग्रेजो के खिलाफ लडते शहीद हुई थी, उस दिन को बलिदान दिवस के रुप मे मनाया जाता है. अंग्रेजो से आजादी दिलाने के लिये हुये सन 1857 की क्रांति मे रानी लक्ष्मीबाई का बड़ा योगदान था. 

jhasi rani stamp ticket

         भारत सरकार ने सन 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों को समर्पित भारत का डाकटिकट जिसमें लक्ष्मीबाई का चित्र का भी समावेश करके रानी लक्ष्मी बाई को सम्मानित किया गया. आज भी ग्वालियर के फूल बाग इलाके में मौजूद उनकी समाधि मर्दानी रानी की कहानी बयां कर रही है.

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