तालवाद्य कला का रूप ” घूंगरु.”

घुँघरू वादन पूरी तरह से तालवाद्य कला के रूप में पैरों की गति पर बजने वाला वाद्य है. ये पैरों की हरकत पर ध्वनि को उत्‍पन्‍न करता है. इसको कई जगह लोकनृत्यों के दौरान दोनों पाँवों में बाँधा जाता है. यह धातु की बनी हुई खोखली गोलियाँ जिनके अन्दर धातु की ही छोटी गोलियां डाली जाती है. जिनके आपस में टकराने से ध्वनि होती है. इस तरह की कई गोलियों को चमड़े की बनाई पट्टी में गूँथकर बनाया जाता है. जिसे नर्तक या नर्तकियां अपने पैरों में बांधते हैं.

घुँघरू घन वाद्य के अंतर्गत आने वाला वाद्य है. घुँघरू पारंपरिक, यानी शास्त्रीय नृत्य का एक आवश्यक घटक है, ये मुख्य रूप से लयबद्ध होते हैं तथा इसमें विशेष ट्यूनिंग की आवश्यकता नहीं होती है. घुँघरू पहनने का उद्देश्य पैरों की हरकत के अनुसार ध्वनि को उत्‍पन्‍न करना होता है. घुँघरू की एक स्ट्रिंग में 50 घंटी से 200 घंटी तक एक साथ गठित हो सकती है.

घुँघरू शास्त्रीय नर्तकियों का प्रमुख आभूषण है, जो नृत्य करते समय उन्हें पहनते है. समय बीतने के साथ, घुँघरू ने कविता, साहित्य और सिनेमा के माध्यम से अपने अस्तित्व को हासिल किया है, जिसे नर्तकियों द्वारा उपयोग किए जाने वाले गहने के रूप में चित्रित किया गया है.

घुंघरू जिसे तमिल में सलंगई के नाम से भी जाना जाता है. ये छोटी धातु की घंटियाँ हैं, जिसे नर्तक भरतनाट्यम, कथक, कुचिपुड़ी, मोहिनीअट्टम या ओडिसी नृत्य में पहनते हैं.

उत्तर प्रदेश के एटा जिले में घुंघरू का उत्पादन किया जाता है. यहां के घुंघरुओं की मांग अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर होती है. यह दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया और मध्य पूर्व के देशों में भारतीय कलाकारों के हुनर और मेहनत की कहानी बया करती है.

वर्तमान में एटा जिले का घुंघरू उद्योग को उत्तर प्रदेश के योगी सरकार ने एक जिला एक उत्पादन योजना में शामिल किया है. जिससे राज्य सरकार भी एटा के कलाकारों के हुनर और मेहनत को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पूरी मजबूती के साथ पेश करने में जुटी है.

दुनिया के कई देशों में घुंघरू की मांग बढ़ी है. दक्षिण अफ्रीकी देशों के साथ सिंगापुर, मलेशिया, कंबोडिया, साउदी अरब, जार्डन, यूएई और ईराक जैसे देशों में कलाकारों के बीच एटा के घुंघरू की मांग बढ़ रही है.

एटा जिले के घुंघरू की दक्षिण भारत सहित देश में कोलकाता, आगरा, मुरादाबाद, मथुरा , वाराणसी, कानपुर, मुरादाबाद, और दिल्ली आदि जगह पर मांग बढ़ी है.

देश और विदेश में घुंघरुओं की सालाना औसत व्यापार करीबन 100 करोड़ को पार कर गया है. मौजूदा दौर में 10 हजार से ज्यादा लोग घुंघरू और घंटी उद्योग से सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं.

एक जिला एक उत्पादन योजना के तहत राज्य सरकार ने उद्योग को बढ़ाने के लिए कलाकारों को 350 करोड़ रुपये के लोन के साथ मुफ्त प्रशिक्षण और जरूरी साजो-सामान उपलब्ध कराने का फैसला किया है.

ओडीओपी योजना के तहत अब तक तकरीबन 1000 नए युवाओं को प्रशिक्षित कर उद्योग से जोड़ा जा चुका है. कोरोना और लॉकडाउन के कारण इंडस्ट्री पर काफी असर पडा था.

घूंगरु के उपर बने कुछ गाने :

***

दिल पाया अलबेला मैं ने

तबीयत मेरी रंगीली…. हाय

आज खुशी में, मैं ने भइय्य

थोड़ी सी भंग पी ली…..

मेरे पैरों में, हाय, मेरे पैरों में

घुँघरू बंधा दे,

तो फिर मेरी चाल देख ले….

– फ़िल्म : संघर्ष.

***

के पग घुंघरू बाँध मीरा नाची थी

और हम नाचे बिन घुंघरू के…..

– फ़िल्म : नमक हलाल.

***

घुंघरू की तरह बजता ही रहा हूँ मैं

कभी इस पग में कभी उस पग में…

बंधता ही रहा हूँ मैं……

– फ़िल्म : चोर मचाये शोर.

***

कोई सेहरी बाबू

दिल लेहरी बाबू हाय रे, हाय रे

पग बांध गया घुँघरू

मैं छम छम नचदी फ़िरां

मैं छम छम नचदी फ़िरां…

– फ़िल्म : लोफर.

***

डफली वाले डफली बजा

डफली वाले डफली बजा

मेरे घुंघरू बुलाते है…

आ मै नाचू तू नचा……

– फ़िल्म : संग्राम.

About पत्रकार : सदाशिव माछी -"शिव सर्जन"

View all posts by पत्रकार : सदाशिव माछी -"शिव सर्जन" →