दुनिया के ख़तरनाक ” ज्वालामुखी.”|

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हम लोग जिस पृथ्वी की सतह पर वास्तव्य कर रहे है, यह आग का गोला है. कालांतर के बाद पृथ्वी का ऊपरी हिस्सा ठंडा होते गया और शुरू हुआ जीवसृस्टि का निर्माण. पृथ्वी पानी ( समुंद्र ) और जमीन ( धरती ) ऐसे दो हिस्सों मे अलग अलग बट गयी. 

        मगर आज भी पृथ्वी का गोला अंदर से लावा उगल रहा है. ज्वालामुखी ( VOLCANO ) एक प्राकृतिक प्रक्रिया है. जिसके फटने से पृथ्वी के पाताल से लावा , गैस , राख, धुआँ और खनिज तत्व बहार आते है. 

          ये एक कुदरती आकस्मिक घटना का ही प्रकार है, जो पृथ्वी की सतह पर परिवर्तन लाता है. ये एक प्राकृतिक आपदा का ही प्रकार है. जिसका अंजाम विनाश से होता है. 

       सक्रिय ज्वालामुखी उसे कहते है, जो वर्तमान में फट रहा हो, या उसके जल्द ही फटने की आशंका हो, या फिर उसमें गैस रिसने, धुआँ या लावा उगलने, या भूकंप आने जैसे सक्रियता के चिन्ह हों तो, उसे सक्रिय माना जाता है.

          मृत ज्वालामुखी उसे कहते है जो निष्क्रिय हो गये हो. जिसके फटने की आगे कोई उम्मीद ना हो. उनके बारे में यह अनुमान लगाया जाता है कि इनके अन्दर लावा व मैग्मा ख़त्म हो चुका है और अब इनमें उगलने की कोई गुंजाईश नहीं है, तो अक्सर उसे मृत समझा जाता है.

       सुप्त ज्वालामुखी और मृत जवालामुखी में अंतर बता पाना अति कठिन है, लेकिन अगर ज्वालामुखी कभी भी इतिहास में बहुत पहले फटा हो तो उसे सुप्त ही माना जाता है लेकिन मृत नहीं. बहुत से ऐसे ज्वालामुखी हैं जिन्हें फटने के बाद एक और विस्फोट के लिये दबाव बनाने में लाखों साल गुज़र जाते हैं. इन्हें उस दौरान सुप्त माना जाता है.

        मिशाल के तौर पर तोबा ज्वालामुखी, जिसके विस्फोट में आज से करीब 70000 वर्ष पूर्व भारतीय उपमहाद्वीप के सभी मानव मारे गये थे और पूरी मनुष्यजाति ही विलुप्ति की कगार पर आ गई थी, हर 380000 वर्षों में पुनर्विस्फोट के लिये तौयार होता है. 

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       विसुवियन, प्लिनियन या पीली तुल्य ज्वालामुखी सबसे अधिक विनाशकारी होते है.इनका उद्गार सर्वाधिकवि स्फोटक तथा भयंकर होता है.इससे निकला लावा सर्वाधिक चिपचिपा एवं लसदार होता है. ता : 8 मई 1902 को मार्टिनिक द्वीप (द. अमेरिका) पर पीली ज्वालामुखी का भयंकर उद्भेदन हुआ था. इसलिए इसे पीलियन तुल्य ज्वालामुखी कहते है.

          जावा एवं सुमात्रा के मध्य सुण्डा जलडमरू मध्य में सन 1883 में क्राकाटोआ में हुये ज्वालामुखी विस्फोट के एक दिन बाद ज्वालामुखी धूल एवं राख तथा वाष्प के बादल 80 किलोमीटर की ऊंचाई तक आकाश में पहुंच गया था. और क्राक्राटोआ द्वीप का दो तिहाई भाग सागर में समा गया था. इसकी आवाज 3000 किमी दूर पूर्वी आस्ट्रेलिया तक सुनाई दी गई थी. और भूकम्प से 120 फीट ऊंचाई लहर उठी थी जिससे जावा एवं सुमात्रा के तटीय भागों में 36000 व्यक्ति मारे गये थे. इसी प्रकार 1911 में फिलीपाइन द्वीप में भी भयंकर हादसा हुआ था.

         कैटामाइयन ज्वालामुखी लावा के साथ गैस की मात्रा कम होती है जिससे लावा दरारों में होकर धरातल पर जमने लगता है. कभी-कभी अधिक मात्रा में लावा के जमा होने से मोटी परत बन जाती है जिसके फलस्वरूप लावा मैदान या लावा पठार बनते है. इसमें मैग्मा कम गाढ़ा होता है तथा मैग्मा सतह पर दूर तक फैलकर जम जाता है. 

       सन 1783 में आइसलैण्ड में एक 17 मील लम्बे दरार से होकर लावा का उदभव हुआ था, जिसका विस्तार 218 मील तक फैला था. इसे आइसलैण्ड की जनसंख्या का 5 वां भाग नष्ट हो गया था. इस तरह के प्रकार क्रिटैशियस युग में बड़े पैमाने पर हुए थे. सन 1912 में कटमाई ज्वालामुखी विस्फोट के कारण वायुमण्डल में इतनी अधिक धूल हो गई थी कि सुर्य ताप मिलने की मात्रा 20% कम हो गई.

     ज्वालामुखी सोये हुए कुम्भकरण की तरह होते हैं. कभी कभी ही जागते हैं और जब जागते हैं तो आसपास के लोगों पर कहर बरसा कर फ़िर शांत हो जाते हैं. दुनिया में कई ऐसे ज्वालामुखी हैं. सिर्फ लातिन अमरीका में ऐसे दर्जनों सक्रिय ज्वालामुखी हैं. लेकिन इन में से कुछ बहुत ही ख़तरनाक हैं.

       ग्वातेमाला में हुआ ज्वालामुखी विस्फोट इसका ताजा उदाहरण है. इस घटना में 75 से लोगों की मौत हुई है और 200 से ज़्यादा लोग लापता है. इस ज्वालामुखी विस्फोट से करीब 17 लाख लोग प्रभावित हुए है.  

 ज्वालामुखी के कुछ रोचक तथ्य. 

*** पोपोकटेपेटल, मैक्सिको यह ज्वालामुखी 5,452 मीटर ऊंचा है और अत्यधिक सक्रिय ज्वालामुखियों में से एक है. यही कारण है कि इसकी मॉनिटरिंग लगातार की जाती है. यह मैक्सिको सिटी से दक्षिण पूर्व में करीब 70 किलोमीटर की दूर है. अगर यह विस्फोट हुआ तो करीब 2.5 करोड़ लोग प्रभावित हो सकते है. साल 1994 के बाद यह सक्रिय हो गया है. इससे राख और लावा निकलते रहते हैं.

*** कोलिमा ज्वालामुखी, मैक्सिकोयह माना जाता है कि यह मैक्सिको का सबसे सक्रिय ज्वालामुखी है. हाल में यह समय समय पर राख और धुआ छोड़ता रहा है. इसकी ऊंचाई 3280 मीटर है और जलिस्को और कोलिमा की सीमा पर स्थित है. सन 2015 और 2016 में इसके राखों के फव्वारे की वजह आसपास के इलाके खाली करा दिए गए थे.

*** तुरीआल्बा ज्वालामुखी, कोस्टा रिका कोस्टा रिका के बीचों बीच ये ज्वालामुखी स्थित है. यह कैलिफोर्निया के सैन जोस शहर के करीब 60 किलोमीटर दूर है. सितंबर 2016 में इससे भयानक विस्फोट हुआ था, जिसके बाद आसपास के शहरों पर राख के बादल छा गए थे.

*** ग्लैरस, कोलंबिया यह कोलंबिया का सबसे अधिक सक्रिय ज्वालामुखी माना जाता है. यह नरिनो में स्थित है. सन 1993 में हुए हल्के विस्फोट में वैज्ञानिकों के एक समूह और पर्यटकों की मौत हो गई थी. ये सभी ज्वालामुखी के क्रेटर के अंदर थे.

*** नेवादो देल रुइज. कोलंबिया ये कोलंबिया का दूसरा सक्रिय ज्वालामुखी है. कोलंबिया के वैज्ञानिकों के मुताबिक ये लगातार सक्रिय रहता है और राख उत्सर्जित करता रहता है. यह 5,364 मीटर ऊंचा है और देश के कॉफी क्षेत्र में स्थित है. साल 1985 में हुए विस्फोटों की वजह से 25 हजार से अधिक लोग मारे गए थे. ये इतिहास का सबसे भयानक विस्फोट था.

*** कोटोपाक्सी, इक्वाडोर का ज्वालामुखी 5,897 मीटर ऊंचा ज्वालामुखी है जो, देश की राजधानी क्विटो से करीब 50 किलोमीटर दुरी पर है. इसमें सबसे भयानक विस्फोट 1887 में हुआ था. वहीं सन 2015 में राखों के घने बादल निकलने लगे थे, जिसके बाद पुरे देश में अलर्ट जारी कर दिया गया था.

*** तुनगुराहुआ, इक्वाडोर ये ज्वालामुखी 5,019 मीटर ऊंचा है और यह इक्वाडोर की राजधानी क्विटो के दक्षिण करीब 180 किलोमीटर दूर है. ये सन 1999 से सक्रिय स्थिति में है.

*** उबिनस, पेरू यह पेरू का सबसे सक्रिय ज्वालामुखी है, जिसकी सख्त निगरानी की जाती है. सन 2006 से लेकर सन 2009 के बीच इसमें अधिक सक्रियता दर्ज की गई थी. जिसमें राख के बादल निकलने लगे थे और जहरीले गैस वातावरण में फैल गए थे. ज्वालामुखी के आसपास दस लाख लोग रहते हैं. साथ ही कई इमारतें भी आसपास हैं.

*** विलरिका, चिली चिली में करीब 95 सक्रिय ज्वालामुखी है, उनमें से विलरिका 1847 मीटर ऊंचा है, और यह सबसे सक्रिय ज्वालामुखी माना जाता है. यह पर्यटन स्थलों के क्षेत्र में स्थित है. 2015 में ये भड़का था, जिसके बाद हवा में 1000 मीटर से उंचा लावा निकला था. उस वक्त आसपास के इलाकों को खाली करा दिया गया था.

*** कलब्यूको, चिली चार दशक के बाद सन 2015 में कलब्यूको मे फटा था. फटने की पहले से उम्मीद नहीं थी.

इसके फटने के बाद सरकार ने रेड अलर्ट जारी किया था और चार हजार से ज्यादा लोगों को वहां से निकाले गए थे.

       ये जरुरी नहीं है की जवालामुखी थल मे ही फटते है. यह जलमे समुद्र के बीचमे भी फटते है. जब यह समुद्र मे फटते है तो उसका तट पर सुनामी मे परिवर्तन हो जाता है. और पूर जैसी हालात बनकर विनाश का सर्जन करती है, और गांव हो या शहर बहाकर लेकर जाती है. जिसे जापानी भाषा मे सुनामी यानी समुद्र की लहर कहा जाता है. 

       आप लोग कभी वजेश्वरी गणेश पूरी अवश्य गये होंगे. 

श्री गणेशपुरी मे नित्यानंद महाराज की समाधी है तथा वजेश्वरी मे वजेश्वरी माताजी का मंदिर है, जिसे नरवीर चिमाजी अप्पा ने वसई का किला जितने के बाद, मानी मन्नत को पूरी करने के लिये किले के आकर का बनाके दीया है. 

       गणेशपुरी और वजेश्वरी स्थित अकलोली मे गरम पानीके कुंड है. जहां अक्षर लोग नहाने जाते है. वजेश्वरी मंदिर के उपर से आप उत्तर दिशा की ओर देखेंगे तो आपको मंदाकिनी पर्वत की श्रृंखला दिखेगी. 

     एक काल मे मंदाकिनी सक्रिय ज्वालामुखी था. कालान्तर के बाद वर्तमान सुषुप्त, निष्क्रिय होकर मृत अवस्था मे पड़ा हुआ है.    

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