दुर्गा माताका चौथा स्वरूप “कुष्मांडा.” | Krushmanda

kruhmanda devi

नवरात्रि त्योहार में नवदुर्गा की नौ रातें मनाई जाती है. माता कुष्मांडा जी की पूजा नवरात्रि त्योहार की चौथी रात मनाई जाती है. यह स्वास्थ्य में सुधार करने वाली तथा धन और शक्ति प्रदान करने वाली माता है. माता की आठों भुजाओं में (1) कमंडल (2) धनुष (3) बाण (4) शंख (5) चक्र (6) गदा (7) सिद्धियों व निधियों से युक्त जप माला और (8) अमृत कलश विराजमान है.

कुष्मांडा देवी का वाहन सिंह है. और इन्हें कुम्हड़े की बलि अति प्रिय है. संस्कृति में कुम्हड़े को कुष्मांड कहते हैं इसलिए इस देवी को कूष्मांडा कहा जाता है. इस देवी का वास सूर्यमंडल के भीतर लोक में है. सूर्यलोक में रहने की शक्ति क्षमता केवल इन्हीं में है. इसीलिए इनके शरीर की कांति और प्रभा सूर्य की भांति ही दैदीप्यमान है. इनके ही तेज से दसों दिशाएं आलोकित हैं. ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में इन्हीं का तेज व्याप्त है.

माता कूष्मांडा को सफेद कद्दू की बलि भी चढ़ाई जाती हैं. इस दिन उन्हें हरे फल अर्पित करने से उनके भक्तों को मानसिक शक्ति मिलती है. ये यश,आयु, बल और आरोग्य प्रदान करने वाली देवी है. ये सभी के बीच बांटे जाने वाले मालपुआ के भोग से देवी प्रसन्न होती हैं. सौंफ, इलायची और लाल फूल अर्पित करने से भी वो प्रसन्न होती हैं.

देवी कुष्मांडा के आठ हाथ हैं और इसलिए उन्हें अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता है. ऐसा माना जाता है कि सिद्धियां और निधियां प्रदान करने की सारी शक्ति उनके जप माला में स्थित होती हैं.

कहा जाता है कि उन्होंने अपनी थोड़ी सी मुस्कान से संपूर्ण ब्रह्मांड की रचना की थी , जिसे संस्कृत में ब्रह्माण्ड कहते है. ब्रह्माण्ड और कूष्माण्डा के साथ संबंध के कारण वह देवी माता कूष्माण्डा के नाम से लोकप्रिय हैं. कहा जाता है कि जब सृष्टि का कोई अस्तित्व ही नहीं था, तब इन्होंने ब्रह्मांड की रचना की थी. इन्हीं से माँ महासरस्वती, माँ महाकाली और माँ महालक्ष्मी प्रकट हुईं थी.

माता कूष्माण्डा की कथा :

माँ दुर्गा के चौथे स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है. नवरात्र उत्सव के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की ही उपासना की जाती है.अपनी मंद, हल्की हंसी के द्वारा अण्ड यानी ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण, देवी कुष्मांडा के नाम से नामित किया गया है. जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ घोर अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने अपने हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी.

माता ने सबसे पहले तीन देवियों महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती को उत्पन्न किया. महाकाली के शरीर से एक नर और नारी उत्पन्न हुए. नर का नाम शिव रखा गया और नारी का एक सिर और चार हाथ थे, उनका नाम शक्ति रखा गया. महालक्ष्मी के शरीर से एक नर और नारी का जन्म हुआ. नर के चार हाथ और चार सिर थे, उनका नाम ब्रह्मा रखा और नारी का नाम सरस्वती रखा गया. फिर महासरस्वती के शरीर से एक नर और एक नारी का जन्म हुआ. नर का एक सिर और चार हाथ थे, उनका नाम विष्णु रखा गया और महिला का एक सिर और चार हाथ थे, उनका नाम लक्ष्मी रखा गया.

इसके बाद माता ने ही शिव को पत्नी के रूप में शक्ति, विष्णु को पत्नी के रूप में लक्ष्मी और ब्रह्मा को पत्नी के रूप में सरस्वती प्रदान कीं. ब्रह्मा को सृष्टि की रचना, विष्णु को पालन और शिव को संहार करने का जिम्मा सौंपा. इस तरह संपूर्ण ब्रह्मांड की रचना मां कूष्मांडा ने की. ​ब्रह्मांड की रचना करने की शक्ति रखने वाली माँ को कूष्मांडा के नाम से जाना गया.

इसीलिए इसे सृष्टि की आदिस्वरूपा और आदिशक्ति कहा गया है. इस देवी की आठ भुजाएं हैं, इसलिए अष्टभुजा कहलाती है. विधि-विधान से माता कूष्माण्डा की पूजा करने पर भक्त को कम समय में ही कृपा का सूक्ष्म भाव अनुभव होने लगता है. अचंचल और पवित्र मन से नवरात्रि उत्सव के चौथे दिन इस देवी की पूजा-आराधना की जाती है. माता आदिशक्ति मां कूष्मांडा बेहद कोमल हृदय वाली हैं. वे भक्त द्वारा की गई अल्प भक्ति से भी प्रसन्न हो जाती हैं.

अस्वीकार :

यहापर दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया है.

About पत्रकार : सदाशिव माछी -"शिव सर्जन"

View all posts by पत्रकार : सदाशिव माछी -"शिव सर्जन" →