“द सिटी ऑफ जॉय” कोलकाता सिटी. City of Joy – Kolkata City

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कोलकाता सिटी “द सिटी ऑफ जॉय” के नाम से सुप्रसिद्ध है. पहले ये शहर कलकत्ता के नाम से जाना जाता था. कोलकाता हमारे देश के सबसे बड़े शहरों में से एक है. यह हुगली (हुगली) नदी के पूर्वी तट पर स्थित विध्यमान है. इससे पहले यह शहर कलकत्ता ( अब कोलकाता ) 1772 में ब्रिटिश शासन के समय भारत की राजधानी था.

कलकत्ता शहर के नाम की उत्पत्ति :

कलकत्ता बंगाली नाम कलिकाता का अंग्रेजी संस्करण है. जानकारों का यह कहना है कि “कालिकता” बंगाली शब्द कलिक्षेत्र से लिया गया है, जिसका अर्थ काली (देवी) की भूमि होता है.

जबकि कुछ लोगोंके अनुसार इस शहर का नाम एक नहर (खल) के किनारे अपनी मूल बस्ती के स्थान से लिया गया है.

तीसरे मत के अनुसार, शहर का नाम बंगाली के शब्दों – चूना (कैल्शियम ऑक्साइड; काली) और जले हुए खोल (काटा) से उत्पन्न हुआ था, क्योंकि यह क्षेत्र शैल चूने के निर्माण के लिए प्रसिद्ध था. एक अन्य कहानी के अनुसार एक किसान अपनी चावल की खेती के पास खड़ा था. उस वक्त कुछ अंग्रेज वहापर आये. उन्होंने अंग्रेजी में पूछा कि इस गांव का नाम क्या है ?

किसान समझ नहीं पाया. उसको लगा की ये विदेशी गोरे लोक पुछ रहे है कि फसल कब काटी गई है? ये सोचके किसान बोला, “कल कटा”. तबसे यहां का नाम कलकत्ता नामसे प्रसिद्ध हुआ.

अंग्रेज़ इसे ” कैलकटा” पुकारते थे.

शुरुआत में इस शहर में कालीकट, गोबिंदपुर और सुतनुती के तीन गांव शामिल थे, जो 16वीं, 17वीं और 18वीं शताब्दी में महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्रों के रूप में कार्य करते थे. सन 1947 में, जब भारत को स्वतंत्रता मिली, बंगाल का विभाजन हुआ और कलकत्ता भारत में पश्चिम बंगाल राज्य की राजधानी बन गया. और डॉ. प्रफुल्ल चंद्र घोष ता :15 अगस्त, 1947 को पश्चिम बंगाल के पहले मुख्यमंत्री बने. जनवरी 2001को, कलकत्ता को आधिकारिक तौर पर “कोलकाता” का नाम दिया गया.

सुप्रसिद्ध कोलकातावासी ओमे श्री रवींद्रनाथ टैगोर, श्री सत्यजीत रे, श्री सीवी रमन और श्री अमर्त्य सेन कुछ प्रसिद्ध बंगाली हैं जो कोलकाता में रहते थे, जिन्होंने देश के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

कोलकाता की वो 15 बातें जो इस शहर को सिटी ऑफ जाॅय बनाती है :

कोलकाता की कहानी 300 साल पुरानी है. सिटी ऑफ जॉय कहे जाने वाले इस शहर की भाषा बंगाली है. जो सुनने में मीठी लगती है. कोलकाता का इतिहास 1690 में शुरू हुआ था जब जॉब चरनोक नाम का एक ब्रिटिश अधिकारी सुतानुती गांव में एक फैक्ट्री लगाना चाहता था. लेकिन उस समय लोगों ने उसका जमकर विरोध किया था. इसके बाद कोर्ट कचहरी का चक्कर हुआ और आखिरकार कोलकाता शहर भारत के नक्शे का जरूरी हिस्सा बन गया.

यदि आप कभी कोलकाता गुमने जाओ तो कुछ जगह अवश्य देखनी चाहिए. कोलकाता की कुछ बातें है जो कोलकाता को सिटी ऑफ जॉय बनाती हैं.

*** दुर्गा पूजा :

” दुर्गा पूजा ” बंगाल का सबसे महत्वपूर्ण और हर्षोल्लास से मनाया जाने वाला त्यौहार है. दुर्गा पूजा के पांच दिन तक नए कपड़े पहने जाते है. दुर्गा पूजा के समय कोलकाता की सड़कें दुकानों से भरी होती हैं. यहाँ दुकानों में हर डिज़ाइन तरह के कपड़े मिल जाते हैं. पारंपरिक साड़ी से लेकर मॉडर्न कपड़ों तक ऐसी कोई ची़ज नहीं है जो यहाँ न मिलती हो. इस समय पारंपरिक बंगाली साड़ी की भी खूब मांग रहती है. कोलकाता की दुर्गा पूजा की विश्व भरमें अपनी एक अलग पहचान है.

*** ट्राम की सवारी :

आज भी कोलकाता शहर ट्राम की वजह से प्रसिद्ध है. कोलकाता में ट्राम की शुरुआत सन 1873 में अंग्रेजों ने की थी. ये एशिया का सबसे पुराना इलेक्ट्रिक ट्राम है. आपको इस शाही सवारी का अनुभव अवश्य लेना चाहिए. ये ट्राम शहर की कई खूबसूरत जगहों से होकर गुजरती है इसलिए अगर आपके पास समय की कमी है तो आप ट्राम पर कोलकाता घूम सकते है.

*** हावड़ा ब्रिज :

कोलकाता का हावड़ा ब्रिज शहर की शान है. हुगली नदी पर बना ये पुल ब्रिटिश साम्राज्य की कला कारीगरी का बेहतरीन नमूना है. इस ब्रिज को बनाने में एक भी नट-बोल्ट का इस्तेमाल नहीं किया गया. उसके बावजूद इस ब्रिज से हर रोज़ लगभग 1 लाख गाडियाँ पास होती है. कुल 1500 फीट लंबा और 71 फीट चौड़े इस पुल को पहले रविन्द्र सेतु के नाम से जाना जाता था. दुनिया के सबसे लंबे कैंटिलीवर पुलों में शुमार ये ब्रिज कोलकाता में सुंदर शाम बिताने के लिए बिल्कुल सही जगह है.

*** कॉलेज स्ट्रीट

कॉलेज स्ट्रीट को किताबों का मक्का कहना भी गलत नहीं होगा. दुनिया में ऐसी कोई किताब नहीं है जो कॉलेज स्ट्रीट में नहीं मिलती हों. पुरानी किताबों से लेकर ऐसी किताबें जो शायद अब कहीं नहीं मिलती वो भी यहाँ मिल जाएँगी. इसके अलावा कॉलेज और पढ़ाई से जुड़ी सभी किताबें भी यहाँ आसानी से मिल जाती हैं.

यह भी कहा जाता है कि अगर कोई किताब कॉलेज स्ट्रीट में ना मिले तो समझ जाइए ऐसी किताब कभी बनी ही नहीं. इंडियन कॉफी हाउस का मशहूर कैफे भी इसी जगह पर है. प्रेसीडेंसी कॉलेज के ठीक सामने खड़े इस कैफे में बड़ों से लेकर बच्चों तक हर उम्र के लोगों का तांता लगा रहता है.

*** चाइना टाउन में नाश्ता :

कोलकाता का ये इलाका पूरे शहर में सबसे अलग है. यहाँ पर बंगाली और चाइनीज खाने का बोलबाला है. ये मार्केट सुबह केवल तीन घंटों के लिए खुलता है. सुबह के शुरुआती घंटों में मोमो, थूकपा और सौसेज खाने का मज़ा ही कुछ अलग है.

*** रोशोगोल्ला

कोलकाता में रोशोगोल्ला को इस शहर की आन-बान और शान मानी जाती है. कोलकाता में हर किसी की एक पसंदीदा दुकान है. यहांका मीठा स्वादिस्ट रोशोगोल्ला का नाम है. इस मिठाई को अब जी आई टैग से भी सम्मानित किया जा चुका है. अगर आप भी मिठाइयों के शौकीन हैं तो यह शहर आपके लिए किसी छप्पनभोग से कम नहीं है.

*** ईडन गार्डन :

ईदन गार्डन क्रिकेट प्रेमिओके लिए पसंदीदा ग्राउंड है. सन 1864 में बने इस ऐतिहासिक क्रिकेट ग्राउंड दुनिया भर में मशहूर है. 50 एकड़ में फैले इस मैदान में लगभग एक लाख लोगों के बैठने की क्षमता है. ये दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा क्रिकेट ग्राउंड है. इस स्टेडियम का निर्माण ऑकलैंड ने करवाया था जो एक समय पर गवर्नर जनरल रहे थे. स्टेडियम चारों तरफ से आम और बरगद के पेड़ों से ढंका हुआ है जो इसकी सुंदरता बढ़ा देता है.

*** साहित्य का संसार :

कोलकाता को टैगोर का शहर कहा जाता है. इस जगह का साहित्य की दुनिया में भी बहुत बोलबाला है. कोलकाता में लगभग हर घर में संगीत और लिटरेचर का बहुत महत्व है. गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर के शहर कोलकाता में कविताओं और संगीत की जगह आज भी उतनी ही पक्की है जितना टैगोर के समय पर थी. यहाँ रवीन्द्र संगीत के साथ-साथ भारतीय शास्त्रीय संगीत को भी सराहा जाता है.

*** क्रिसमस उत्सव :

कोलकाता अंग्रेजों के प्रभाव के कारण यहाँ क्रिसमस की उतनी ही धूम रहती है जितनी दुर्गा पूजा की रहती है. सैंटा क्लॉज़ से लेकर केक तक यहाँ वो हर चीज़ है जिससे क्रिसमस मनाया जाता है. कोलकाता में ऐसी कई बेकरी भी हैं जिनको पारंपरिक प्लम केक बनाने में महारथ प्राप्त है. ये केक इतने टेस्टी होते हैं कि आपको किसी और चीज़ की ज़रूरत ही नहीं पड़ती. 24 दिसंबर की रात पार्क स्ट्रीट चमकदार लाइटों से जगमग उठती है और जगह जगह पर क्रिसमस ट्री सजाए जाते हैं.

*** अंतरराष्ट्रीय किताबों का मेला :

अंतर्जातीय कोलकाता पुस्तकमेला के नाम से भी मशहूर ये बुक फेयर एशिया का सबसे बड़ा किताबों का मेला है. इसकी शुरुआत सन 1976 में कुल 56 स्टॉलों के साथ हुई थी. उसके बाद से मेला हर साल जनवरी में होता है. छोटे प्रकाशन हाउस से लेकर बड़ी नामचीन हस्तियों तक हर कोई इसका हिस्सा बनना चाहता है. ख़ास बात ये है कि ये मेला जितना इंटरनेशनल है उतना ही स्थानीय भी है.

*** फिल्मों की नगरी :

हॉलीवुड हो या फिर बॉलीवुड हो. कोलकाता का फिल्मों से गहरा रिश्ता रहा है. यहां का अपना एक फिल्म फेस्टिवल भी है जिसका नाम नंदन फिल्म फेस्टिवल है. इस फेस्टिवल की शुरुआत सन 1995 में हुई थी. इस फेस्टिवल में इंटरनेशनल फ़िल्मों से लेकर रीजनल फिल्मों तक सभी की ख़ास स्क्रीनिंग होती है. कोलकाता वो शहर है जहां आज भी थियेटर और नाटक की परंपरा जीवित है. यहां पर हिंदी फिल्में भी उतनी लोकप्रिय हैं जितना कि बंगाली फिल्में. यहाँ फिल्मों का ख़ास इलाका भी है जिसे टॉलीगंज कहते हैं. सत्यजीत राय, मृणाल सेन जैसे फेमस डायरेक्टर सब इसी शहर की देन हैं.

कोलकाता का बड़ा बाजार :

कोलकाता का बड़ा बाजार सबसे पुराना थोक बाजार है. यह मार्केट थोक कपड़ों के लिए जाना जाता है. इस मार्केट में एक से बढ़कर एक कपड़े आपको मिलेंगे. इस मार्केट का रेट भी काफी कम हैं. कम रुपये में बेहतर कपड़े ले सकते हैं. इस मार्केट को बड़ा बाजार और बोरा बाजार के नाम से भी जाना जाता है. कोलकाता का यह मार्केट ब्रिटिश काल के समय का है. उस समय से यह मार्केट अपनी पहचान बनाने में कामयाब है.

कोलकाता से ही नहीं बहुत दूर-दूर से लोग इस मार्केट में आकर अपनी पसंद के सस्ते कपड़े खरीदते हैं. बड़ा बाजार होलसेल मार्केट और अच्छी क्वालिटी के कपड़ों के लिए जाना जाता है.

आपको इस मार्केट में कपड़े की एक बहुत ही बड़ी रेंज मिल जाती हैं. जिसके वजह से लोग यहां से कपड़े खरीदना पसंद करते हैं. इस मार्केट में आपको कपड़े की फैब्रिक्स भी काफी उच्च क्वालिटी के मिल जायेंगे. यह मार्केट भारत के सबसे बड़े होलसेल मार्केट में से एक है.

कोलकाता को काली क्षेत्र भी कहा जाता है क्योंकि यहाँ बड़े पैमाने पर माँ काली की पूजा होती है. बताया जाता है कि जब भगवान शिव, माता सती के शव को लेकर तांडव कर रहे थे तो उनकी उंगली बंगाल के इसी इलाके में गिरी थी. इसीलिए कालीघाट में काली माँ की पूजा होती है. आप जानते ही होंगे कि माँ काली की प्रतिमा काली होती है.

माछेर झोल, मछली कोलकाता की रसोई का एक अभिन्न हिस्सा है और बंगाली इसके बिना नहीं रह सकता. माछेर झोल, तला हुआ या कढ़ी और चावल के साथ खाया जाता है. ये एक पौष्टिक भोजन है.

कोलकाता के नाम का उल्लेख मुगल बादशाह अकबर (शासन काल, 1556-1605) के राजस्व खाते में और बंगाली कवि बिप्रदास (1495) द्वारा रचित ” मनसामंगल ” में भी मिलता है. एक ब्रिटिश बस्ती के रूप में कोलकाता का इतिहास सन 1690 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के एक अधिकारी “जाब चार्नोक” द्वारा यहां पर एक व्यापार चौकी की स्थापना के रूपमें किया था.

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