पुराने भाईंदर गांव की बीती हुई यादे|Part -XXXVIII-इस्टेट इन्वेस्ट इंडिया कंपनी.

मिरा भाईन्दर महा नगर पालिका क्षेत्र की प्रमुख समस्या में एक जटिल कहे जाने वाली समस्या स्थानीय किसानो की है. जमीन सम्बंधित बिक्री आदि कोई भी काम करना चाहते है तो इन्वेस्ट इंडिया कंपनी बीचमे आती है ओर पेनल्टी के साथ ट्रांसफर मनी वसुल करती है.

मिरा भाईन्दर के किसान परेशान है पर कोई उनकी सहायता के लिये आगे नहीं आ रहा है. मिरा भाईन्दर क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति कुछ ऐसी है की पश्चिम में अरबी समुद्र. उत्तर में चौक से चेना तक वसई की खाड़ी, दक्षिण में कुमाठा – डोंगरी से मीरारोड रेलवे तक गोराई की खाड़ी. पूर्व में काशीमीरा एवं नेशनल पार्क की हद आती है. भाईन्दर तीन ओर समुद्र के खारे पानी से घेरा हुआ है. समुद्र में बड़ी भरती आती है तो हमेशा उनको खारे पानीका खतरा रहता था.

अतः खेती की रक्षा, बांध बंदोबस्त करने के लिये भाईन्दर, घोड़बंदर, और काशीमीरा तक के एरिया को ब्रिटिश सरकार ने सन 1860 में बांध बांधनेके लिये इन्वेस्ट इंडिया कंपनी को 999 साल की लीज़ पर ठेका दे दिया गया.

समुद्र खाड़ी का खारा पानी खेत में न आये इसके लिये ठेकेदार को किसानो द्वारा चावल की खेती का 1/3 हिस्सा कर के रूप में देना पड़ता था.

सन 1948 साल की बात है. ठेकेदार इस्टेट इन्वेस्टमेंट कंपनी ने लापरवाह की और खेतो में खारा पानी घुस गया. किसानो को काफी नुकसान हुआ अतः सभी किसानो ने असहयोग आंदोलन शुरु किया. उन्होंने मिलकर भाईन्दर, घोड़बंदर, काशीमीरा शेतकरी सहायकारी संस्था की स्थापना की ओर शिकायत दर्ज की.

श्री भाउ साहेब वर्तक की अध्यक्षता में एक जांच समिति बनाई गई जिसके रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने इस्टेट इन्वेस्टमेंट कंपनी के कामकाज को अपने हाथो में लेते एक इस्टेट मैनेजर की नियुक्ति की. मगर बादमे कंपनी ने रिकार्ड ऑफ़ राइट की माग करके किसानो की जमीन के 7/12 उतारे पर अपना नाम दर्ज करा लिया.

किसानो ने इसका जोरदार विरोध किया. अतः प्रांत साहब ने उनका नाम सन 1972 में निकाल दिया. इस पर कंपनी ने अपिल की जिसका निर्णय सन 1992 में रेजिडेंट कलेक्टर ने मंडल के विरोध में दिया. और आदेश दिया की किसानो का नाम अन्य हक धारक के रूप में लिखा जाय.

मिरा भाईन्दर के किसान आज भी परेशान है ! वे अपनी जमीन की खरीद विक्री, एन ए, या बांधकाम परमिशन के लिये अर्ज करते है तो सरकार के अधिकारी उनसे इस्टेट इन्वेस्ट कंपनी का ना हरकत दाखला लानेकी मांग करते है, इससे किसानो का आज भी आर्थिक नुकसान हो रहा है.

बताया जाता है की संस्था का पुरा कामकाज खार लैंड बोर्ड के पास है और सन 1982 से कर (लगान ) के रूप में किसानो से नगद पैसा वसूला जा रहा है. किसान आज भी परेशान है. महाराष्ट्र सरकार ने खेती नस्ट कानून बनाया मगर इस्टेट इन्वेस्ट कंपनी का लीज पट्टा रद्द नहीं किया जो किसानो को सरदर्द बन रहा है.

प्रथम दृस्टि कौन से देखे तो क्या आज भी किसान गुलाम है. कहा जाता है, ” कसेल त्याची जमीन ” आज ब्रिटिश काल से भाईन्दर, घोड़बंदर, काशीमीरा का किसान खेती करते आया है, खेती की राख रखाव करता आया है, फिर अन्य का नाम 7/12 के उतारे के उपर क्यु है ? इसीलिए सरकार किसानो के हित में लीज रद्द करें यही उचित होगा.

समय बदल गया है. कहनेको तो हम स्वतंत्र है ! क्या यह किसानो की स्वतंत्रता है ? सिर्फ समुद्र का खारा पानी खेत में न पहुंचे उसका ठेका देने मात्र से इस्टेट इनवेस्ट कंपनी का नाम सात बारा के उतारा के उपर ? रेल्वे से लेकर नगर पालिका, महा नगर पालिका सब जगह ठेका दिया जाता है. क्या वे कायम के हक दार बन जाते है ? देशमे अन्य किसानो को रुपियो की खैरात बाती जा रही है ! और यहा भाईन्दर के किसानो की ओर दुर्लक्षता क्यों की जा रही है ?

क्या इस्टेट इनवेस्ट कंपनी आज भी बांध का राख रखाव कर रही है ? यदि इसका उत्तर हा है तो, यदि बांध की वजह से पानी खेत में घुसता है और नुकसान होता है तो किसानो को नुकसान भरपाई भी इस्टेट इनवेस्ट कंपनी को देनी चाहिए. आप बुद्धिमान पाठक वर्ग का क्या मानना है ?

मुख्य मंत्री महोदय आपलं काय म्हणणं आहे ? मिरा भाईन्दर चे आमदार, खासदार कुठे आहे..? शेतकरी साठी तुम्हाला वेळ आहे का ?

मित्रों,

यह लेख श्री कृष्णाराव गोविंदराव म्हात्रे जी के पुराने व्यक्तव्यके डाटा आधार पर आभार सहित लिखा गया है.

——=== शिवसर्जन ===——

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