जब पेड़ पर ज्यादा फल आते है, तो पेड़ की डाली झुक जाती है. मगर एक मनुष्य ऐसा प्राणी है, जिसके पास अधिक धनदौलत आनेके बाद सर ऊंचा करके चलता है. दूसरे को तुच्छ समजने लगता है. और समजने लगता है कि , पैसे से सब कुछ ख़रीदा जा सकता है.
मगर कुछ लोग ऐसे लोगोंसे अलग होते है, और अपना पैसा दान पुण्य में लगाकर एक सामान्य इंसान की तरह जीवन जीते है. ऐसे ही एक दानशूर, परोपकारी और मानवता की महक समान भाईंदर के ” रकवी ” परिवार की कहानी आज में मेरे पाठक परमेश्वर के साथ शेयर कर रहा हूं.
पुराने भाईंदर (पश्चिम ) गांव के विकास में गुजराती , मारवाड़ी, मराठी और क्रिश्चन समाज का विशेष योगदान रहा है. एक समय ऐसा था कि यहां ना रास्ते का ठिकाना था. ना बिजली, ना रोड, ना श्मशान भूमि का ठिकाना था. सन 1901 के आसपास भाईंदर स्टेशन का निर्माण हुआ. उस से पहले भाईंदर से बोरीवली बॉम्बे ( अब मुंबई ) तक जाने के लिए एकमात्र ” नाव ” का विकल्प था. जिसे स्थानिक लोग दूंगी या पड़ाव कहते थे, जो सढ़ से चलती जलवाहिनी थी.
उस समय भाईंदर के मानवता वादी लोगोंने तन, मन और धन देकर भाईंदर के विकास में योगदान दिया था. उनमेसे एक रकवी परिवार का श्री भालचंद्र आ. रकवी का नाम जुगनू की तरह चमकता नजर आता है.
भाईंदर पश्चिम निवासी स्वतंत्रता सेनानी श्री भालचंद्र आनंदराव रकवी राष्ट्र प्रेमी, राष्ट्र समर्पित कार्यकर्त्ता थे. भाईंदर पश्चिम महा नगर पालिका उप कार्यालय के सामने स्थित तत्कालीन जिला परिषद् की स्कूल का इतिहास करीब 250 साल से भी पुराना है. यहां पर उन्होंने प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद आगे एस.एस.सी (मेट्रिक) तक की पढाई की थी.
वें इतने स्वावलंबी थे की स्वयं झाड़ू लेकर अपने घर के परिसर का वाडा ( कंपाउंड ) साफ करते थे. सन 1942 के ” भारत छोडो आंदोलन ” में सक्रिय भाग लेनेकी वजह से उनको 6 साल ठाणे कारावास में रखा गया था. 200 रुपये जुर्माना भरकर जेल से छूटनेके बाद भी उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ बगावत चालू रखी थी.
भारत स्वतंत्र होनेके बाद उन्होंने फलों के पेड़ लगाने की नीति जीवन में अपनाई थी और पद, पैसा का लालच ना करते अलिप्त रहकर समाज कार्य पर विशेष ध्यान दिया था. आपने अपने सभी सहकारियों की मदद से नवघर स्थित पारकोप नामक नमक के आगर को तैयार किया था.
आपके चार भाई भी समाज कार्य में बढ़चढ़कर भाग लेते थे. आपका पुरा परिवार समाज सेवा के लिए प्रसिद्ध है. शिक्षा के प्रति आपका विशेष प्रेम रहा है. इसका प्रमाण भाईंदर पूर्व गोड़देव स्थित अभिनव विधा मंदिर स्कूल के लिए लाखों रुपये की जमीन दान में दी थी. इसके अलावा भाईंदर पश्चिम स्थित भाईंदर सेकेंडरी स्कूल को आपके ही परिवार ने जमीन दान में दी थी. ऐसे महान परिवार के लिए एक सैलूट तो जरूर बनता है.