सनातन हिंदू धर्म के अनुसार हमारी सृष्टि को 3 लोको में बांटा गया है जिसे हम लोग (1) स्वर्ग लोक, (2) पृथ्वी लोक और (3) पाताल लोक के नाम से संबोधित करते है.
स्वर्ग लोक में देवता, गंधर्व, यक्ष, किन्नर एवं पुण्यात्मा लोग निवास करते हैं और तो पृथ्वी लोक पर मनुष्य, पशु पक्षी एवं अगिनत जीव जंतुओं के समूह निवास करते हैं. उसके बाद आता है पाताल लोक जिनमें बहुत ही कम लोग जानते हैं कि पाताल लोक कैसा होता है और वहां कौन-कौन रहते हैं.
विष्णु पुराण के अनुसार पूरे भू मंडल का क्षेत्रफल 50 करोड़ योजन बताया जाता है. इसकी कुल ऊंचाई 70 सहस्र योजन बताई जाती है. इसके नीचे 7 लोक हैं जिनमें क्रम अनुसार पाताल लोग अंतिम है. सात पाताल लोकों के नाम इस प्रकार हैं…. (1) अतल, (2) वितल, (3) सुतल, (4) रसातल, (5) तलातल, (6) महातल (7) पाताल.
हर किसीको जाननेकी इच्छा होती है कि पाताल लोग कैसा होता होगा.
विष्णु पुराण की एक कथा के अनुसार एक बार नारद जी को पाताल लोक देखने की इच्छा हुई. वे भगवान विष्णु जी की आज्ञा लेकर पाताल लोक भ्रमण के लिए निकल गए. कुछ समय के बाद जब वह स्वर्गलोक वापस लौटे तो वहां के देवताओं ने उनसे पूछा, कि देवर्षि पाताल लोक कैसा है हमें भी बताइए ?
नारदजी ने पाताल लोक का वर्णन करते हुए कहा कि पाताल लोक देखने में स्वर्ग से भी सुंदर है वहां निवास करने वाले सुशोभित आभूषणों धारण करते हैं. वहां की कन्याओं को देखने के बाद कोई ऐसा पुरुष ना होगा जिसे उससे प्रीत ना हो जाय.
वहां दिन में सूर्य की किरणें सिर्फ प्रकाश ही होता है जिनमें गर्मी बिलकुल नहीं होती. रात में चंद्रमा की किरणों से शीत नहीं होता केवल चांदनी ही फैलती है. जहां भक्ष्य भोज और महापाण आदि भोगों से आनंदित सर्पों एवं दानवों को समय जाता हुआ व्यतीत प्रतीत नहीं होता है. जहां सुंदर वन, नदियां, रमणीय सरोवर, और कमलों के वन है वहां नर कोकिलों की सु मधुर गूंज गूंजती है. पाताल निवासी असुर एवं दानव और नाग गण द्वारा अति स्वच्छ आभूषण, सुगंध मय अनु लेपन, वीणा, वेणु एवं मृदंग आदि के स्वर तथा अनेक भोग भोगे जाते हैं.
पाताल लोक में शेषनाग भी निवास करते हैं जिनका देवगण अनंत कहकर प्रशंसा करते हैं. वे अति निर्मल एवं स्वस्तिक चिन्ह से विभूषित तथा सहस्त्र सिर वाले हैं. जो अपने सर के सहस्त्र फणो की मणियों से सभी दिशाओं को प्रकाशित करते हुए एवं संसार के कल्याण के लिए समस्त असुरों को वीर्यहीन करते रहते हैं. ये था महर्षि नारद जी द्वारा पाताल लोग का वर्णन.
धरती पर सात पातालों का वर्णन पुराणों में मिलता है. ये सात पाताल है, (1) अतल, (2) वितल, (3) सुतल, (4) तलातल, (5) महातल, (6) रसातल और (7) पाताल. इनमें से प्रत्येक की लंबाई चौड़ाई दस-दस हजार योजन की बताई गई है. ये भूमि के बिल भी एक प्रकार के स्वर्ग ही हैं.
पाताल लोक में नाग, दैत्य, दानव यक्ष रहते हैं. यहां वैभवी भवन, उद्यान और क्रीड़ा स्थलों में दैत्य, दानव और नाग तरह-तरह की मायामयी क्रीड़ाएं करते हुए निवास करते हैं. ये गृहस्थधर्म का पालन करने वाले हैं. उनके स्त्री, पुत्र, बंधु और बांधव सेवक लोक उनसे बड़ा प्रेम रखते हैं और सदा प्रसन्नचित्त रहते हैं. उनके भोगों में बाधा डालने की इंद्रादि में भी कोई सामर्थ्य नहीं है. वहां बुढ़ापा नहीं होता. वे सदा जवान और सुंदर बने रहते हैं. इन लोगों में स्वर्ग से भी अधिक विषयभोग, ऐश्वर्य, आनंद, सन्तान सुख और धन संपत्ति है.
नर्मदा नदी को पाताल नदी कहा जाता है. नदी के भीतर भी ऐसे कई स्थान होते हैं, जहां से पाताल लोक जाया जा सकते है. कहते हैं कि ऐसी कई गुफाएं हैं, जहां से पाताल लोक जाया जा सकते है. ऐसी गुफाओं का एक सिरा तो दिखता है लेकिन दूसरा कहां खत्म होता है, इसका किसी को पता नहीं होता. समुद्र में भी ऐसे कई रास्ते हैं, जहां से पाताल लोक पहुंचा जा सकता है. धरती के 75 प्रतिशत भाग पर तो जल ही है. पाताल लोक कोई कल्पना नहीं. पुराणों में इसका विस्तार से वर्णन मिलता है.
हिन्दू धर्म के ग्रंथों में पाताल लोक से संबंधित कई घटनाओं का वर्णन मिलता हैं. कहते हैं कि एक बार माता पार्वती के कान की बाली (मणि) यहां गिर गई थी और पानी में खो गई. खूब खोज-खबर की गई, लेकिन मणि नहीं मिली. बाद में पता चला कि वह मणि पाताल लोक में शेषनाग के पास पहुंच गई है. जब शेषनाग को इसकी जानकारी हुई तो उसने पाताल लोक से ही जोरदार फुक मारी और धरती के अंदर से गरम जल फूट पड़ा. गरम जल के साथ ही मणि भी निकल पड़ी.
पुराणों में पाताल लोक के बारे में सबसे लोकप्रिय प्रसंग भगवान विष्णु के अवतार वामन और राजा बलि का माना जाता है. बली ही पाताल लोक के राजा माने जाते थे. रामायण में भी अहिरावण द्वारा राम-लक्ष्मण का हरण कर पाताल लोक ले जाने पर श्री हनुमान के वहां जाकर अहिरावण वध करने का प्रसंग आता है. इसके अलावा भी ब्रह्मांड के तीन लोकों में पाताल लोक का भी धार्मिक महत्व बताया गया है.