लोकप्रिय पत्र , “भाईन्दर भूमि” साप्ताहिक | Bhayander Bhoomi.

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श्री पुरुषोत्तम ” लाल ” बिहारी लाल चतुर्वेदी

       पत्रकार जगत को लोकशाही का चतुर्थ स्तंभ के रूप में मान्यता मिली हैं. पत्रकार को जनता और सरकार के बीच की कड़ी भी कहा जाता हैं. अखबार विचारों के आदान प्रदान का सशक्त मंच माना जाता हैं. कलम की ताकत को तलवार की ताकत से भी ज्यादा असरकारक कहा जाता हैं. 

        कलम ने कई ताज को तोडा हैं तो कई ताज को बनानेमें मदद की हैं. आज ऐसे ही एक निर्भीक , निडर , दबंग  तथा विकासशील भाईन्दर शहर का लोकप्रिय साप्ताहिक समाचार पत्र ” भाईन्दर भूमि ” की बात करनी हैं. 

     वैसे ” भाईन्दर भूमि ” के बारेमें विस्तार से लिखे तो एक बडा पुस्तक लिख सकते हैं. पर यहा पर में संक्षिप्त में कुछ मुख्य अंश ही आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हुँ. ता :1 जनवरी  1986 का सुनहरा  दिन भाईंदर के इतिहास में सुवर्ण अक्षरों  से अंकित हो चुका हैं. आज ही के दिन भाईन्दर में ” भाईन्दर भूमि ‘ साप्तहिक पत्र का  प्रकाशन शुरू हुआ था. 

          पत्र के प्रधान संपादक श्री पुरुषोत्तम ” लाल ” बिहारी लाल चतुर्वेदी जी को पुरा  मिरा भाईन्दर महा नगर पालिका क्षेत्र के लोग  ” गुरूजी ” के नामसे पुकारते हैं. जब वे भाईन्दर स्थित निवास करने पधारे तब उन्होंने देखा की यहा नियोजित गटर , पक्के रोड, बस , रेल , स्कूल , कॉलेज, पोस्ट ऑफिस , बैंक, अस्पताल उद्यान , क्रीडांगण. नाट्य गृह जैसी लोगों के लिये मुलभूत सुविधा का अभाव हैं , तब उन्होंने मुंबई के बड़े बड़े अख़बार के सम्पादको को पत्र लिखकर उन्हें समस्या से अवगत कराया. फिर भी उन्होंने इस और ध्यान नही दिया. कोई पत्रकार यहा आने को राजी नही था. सरकार को अनेक पत्र लिखे, कोई फायदा नही हुआ. 

        आख़िरकार मजबूर होकर अंत में सोचा गया की यहासे एक साप्ताहिक समाचार पत्र प्रकाशित किया जाय.उस समय मुंबई से तड़ीपार गुंडे भाईन्दर में आश्रय लेते थे. भाईन्दर तड़ीपार की बस्ती के नामसे कुख्यात था. 

         भाईन्दर को भयंकर के नामसे पुकारते थे, लोग यहां पर लड़की का विवाह करने डरते थे ,  तब भाईन्दर भूमि पत्र का प्रकाशन शुरु  हुआ. उन दिनों किसीके खिलाफ कुछ लिख देना खतरे से खाली नहीं था. फिरभी निर्भीक , निडर , बनकर जान की बाजी लगाकर समाचार प्रकाशित करते रहे. पत्र को कुचलनेकी कोशिश की गयी. उनको जूठे मुक्कदमों में फसाया गया. प्रेस की ऑफिस में धमकिया दी गयी. फिर भी पाषाण ह्रदय के गुरूजी ने पत्र को चालु रखा. 

             पत्र का उद्देश्य था, स्थानीय अवं राष्ट्रीय विचारको, साहित्यकारों , उत्साहिक युवा लेखक लेखिका को प्रोत्साहित करना , सच्चे समाज सेवी को संगठित करना  , तथा जवलंत समस्या को उजागर करना आदि प्रमुख था. भाईन्दर भूमि ने वैचारिक मंच प्रदान किया . इससे जनता की आवाज शासन तक पहुंचने लगी. मंत्री , सांसद  विधायक तक वास्तविकता की जानकारी पहुंचने लगी. 

       यहा पर ब्लैक मेलिंग करने वाले पत्रकारों की कमी नही थी, फिरभी संरक्षक सदस्यों , भाईन्दर के विकास की भावना रखने वाले शुभ चिंतको  और विज्ञापन दाता ओकी वज़ह से पत्र सतरा – अठरा  साल तक नियमित प्रकाशित होते रहा. 

         भाईन्दर भूमि के संपादक श्री ” लाल ” साहब ने अपनी मा को वचन दिया था, की जब भाईन्दर की जनता को पर्याप्त पिनेका पानी मिलेगा तब अपनी दाढ़ी बाल निकालूंगा. और यह लड़ाई  14 साल तक चली और संपादक जी को लोग , ” पानी वाली  दाढ़ी ” के नामसे पहचानने लगे. 

         उसी समय गोरेगाव की मेडम मृणाल गोरे ने भी पानी सम्बंधित समस्या को लेकर संघर्ष करके, महिला ओ द्वारा हांडा कलशी का मोर्चा निकाल कर मुंबई में  ” पानी वाली बाई ” का बिरुद प्राप्त कर लिया था. 

          संपादक महोदय  बचपन में  छात्र नेता रहे. जब एम कॉम में पढ़ते थे तब  ” व्रजज्योति ” नामका साप्ताहिक पत्र निकालते थे. मुंबई में भी बी एड कॉलेज में छात्र नेता रहे. एक जूनियर कॉलेज में तीन साल लेक्चरर रहे. 

          भाईन्दर भूमि ने भाईन्दर के विकास में प्रमुख भूमिका निभाई. चाहे वो, रेल आंदोलन हो. चाहे वो नगर पालिका  के स्थापन की बात हो, या चाहे वो पानी भाईन्दर तक पहुचानेकी बात हो. या फिर यहा की कोई जन समस्या हो. 

         वैसे भाईन्दर के विकास के लिए ग्राम पंचायत से नगर पालिका , महा नगर पालिका, पुलिस , राजनितिक पार्टी तथा सामाजिक संघठन अवं यहाके प्रबुद्ध नागरिको ने सक्रिय साथ निभाया. अनेक विकास के शिल्प कारो ने योगदान दिया तब जाके आजका यह  मिरा भाईन्दर आपके सामने विकसित दिख रहा हैं. 

       ”  भाईन्दर भूमि ” पत्र ने तीन विशेषांक निकाले उसमे  एक नीरस अंक का भी समावेश था. सन 1996 में दशक पूर्ति विशेषांक निकाला गया.  अनेक सामाजिक शिल्पकारों को प्रकाश में लानेका काम किया. आर्थिक परिस्थिति से जूझते रद्दी बेचकर पत्र को जारी रखा. खुद अंधेरे में रहकर दुसरो को प्रकाश देते रहे . तत्कालीन ठाणे के  जिलाधिकारी भी अपनी टेबल पर भाईंदर भूमि पत्र की कॉपी रखते थे. उस समय ” भाईंदरभूमि ” पत्र  जीता जागता विकिपीडिया के समान था, जिसने भाईन्दर की दशा और दिशा बदल डाली. 

     आज तक बहुत सी समस्या का समाधान हुआ हैं. फिरभी मुर्गी की माफिक ठुसी हुयी लोकल ट्रैन भिड़ की समस्या वैसी ही कायम हैं. कुछ सालोमे मेट्रो ट्रैन अवं भाईन्दर से मुंबई , ठाणे  फेरी बोट सेवा शुरू होते ही थोड़ी जन समस्या कम हो सकती हैं. 

        आज मिरा भाईन्दर मेगा सिटी की ओर प्रयाण कर रहा हैं ऐसे में यहाके सभी शिल्पकारो , पत्रकारों , समाचार पत्र, सामाजिक संस्था, राजकिय पार्टीया , यहाकि प्रबुद्ध जनता, यहाके वर्तमान पत्र सभीका हम आदर पूर्वक सम्मान करके सलाम करते हैं. और साथ ही साथ भाईन्दर भूमि पत्र का आभार प्रदर्शित करते हैं. 

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                     शिव सर्जन प्रस्तुति.

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