विश्व पर्यावरण समस्या ग्लोबल वार्मिंग.

हमारे वैज्ञानिक वारंवार चेतावनी दे रहे कि ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो भविष्य में एक दिन बहुत पछताना ही पड़ेगा. इस साल अक्टूबर महीने भी गजब की गर्मी पड़ रही है. हम सब परेशान है , परंतु लाचार है.

वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैस मीथेन, कार्बन डाय ऑक्साइड, ऑक्साइड और क्लोरो-फ्लूरो-कार्बन के बढ़ने के कारण पृथ्वी के औसत तापमान में होने वाली बढ़ोतरी को ग्लोबल वार्मिंग कहा जाता है. आखिरकार ग्लोबल वोर्मिंग कैसे होती है ?

ग्लोबल वार्मिंग के विभिन्न कारण होते है. जिसके प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों प्रकार कारण हो सकते है. प्राकृतिक एक में ग्रीनहाउस गैस, ज्वालामुखी विस्फोट, मीथेन गैस और बहुत कुछ शामिल हैं. अगला, मानव निर्मित कारण वनों की कटाई, खनन, मवेशी पालन, जीवाश्म ईंधन जलाना आदि हैं.

औद्योगिक कचरा बढ़ रहा है, जिसको नियंत्रित करना जरुरी है. जो उद्योग हवा में हानिकारक गैसों को फेंक रहे है, उनको रोकना चाहिए. वनों की कटाई को तुरंत रोक लगा देना चाहिए और पेड़ों की बढ़ोतरी को ज्यादा प्रोत्साहित करना चाहिए.

हमारी पृथ्वी के भीतर गरम लावा सक्रिय है. जिसे बाहर आनेपर हम लोग ज्वालामुखी कहते है. प्राकृतिक आपदा को तो हम कुछ नहीं कर सकते मगर मानव निर्मित आपदाको हम नियंत्रण में रख सकते है. वर्तमान पीढ़ी को भविष्य की पीढ़ियों की पीड़ा को रोकने के लिए ग्लोबल वार्मिंग को रोकने की जिम्मेदारी लेना जरुरी है.

ग्लोबल वार्मिंग या वैश्विक तापमान बढ़ने का मतलब है कि पृथ्वी लगातार गर्म होती जा रही है. विज्ञानिकों का ये कहना है कि आने वाले दिनों में सूखा बढ़ेगा, बाढ़ की घटनाएँ बढ़ेंगी और मौसम का मिज़ाज बुरी तरह बिगड़ा हुआ दिखेगा. इसका असर दिखने भी लगा है. ग्लेशियर पिघल रहे हैं और रेगिस्तान पसरते जा रहे हैं.

पृथ्वी की सतह पर तापमान सतत दिन ब दिन बढ़ रहा है. पर्यावरण में कार्बन डाइ ऑक्साइड की मात्रा में वृद्धी हो रही है. ये एक बड़ी विचारणीय वैश्विक समस्या है.

पृथ्वी पर CO2 में वृद्धि से, निरंतर ऊर्जा तरंगों का प्रकोप, गर्म लहरें, तेज तुफान की अचानक घटना, तूफान और तूफान की अचानक घटना, तूफान, ओजोन परत का नुकसान, बाढ़, भारी बारिश, सूखा, भोजन की कमी, बीमारी और मृत्यु अन्य मानव जीवन पर काफी हद तक प्रभाव डालते हैं.

जीवाश्म के दोहन, जंगलों का उपयोग, वनों को कांटना, बिजली की भारी मात्रा, फ़िरोज़ में उपयोग होने वाले गैस आदि के कारण पर्यावरण में CO2 की अत्यधिक उपयोगिता हो रही है. यदि लगातार बढ़ते CO2 पर अब नियंत्रण नहीं पाया तो यह खतरनाक साबित हो सकता है.

दुनिया भर में समुद्र का स्तर प्रति वर्ष 0.12 इंच बढ़ रहा है. ऐसा ग्लोबल वार्मिंग के कारण ध्रुवीय बर्फ टोपियों के पिघलने के कारण हो रहा है. रेफ्रिजरेटर और एसी जैसे उपकरणों में इस्तेमाल होने वाले क्लोरोफ्लोरोकार्बन ( CFC ) जैसे विभिन्न रसायनों के परिणामस्वरूप भी काफी हद तक ग्लोबल वार्मिंग हो रही है.

वैश्विक वैश्वीकरण के कारण बड़े पैमाने पर हिमखंड (ग्लेशियर) पिघल रहे हैं. नदियों के अवशेषों में वृद्धि से कई देशों में बाढ़ आती है और बड़ी मात्रा में जन-धन का विनाश होता है. कई प्रकार के त्वचा संबंधी उपकरणों का जन्म भी उनके आदर्श का ही अंग है. गर्मी का मौसम लंबा होना, तापमान का मौसम छोटा होना, कम तापमान पड़ना और अन्य मौसम में बदलाव होना सीज़ की उपज में गिरावट भी एक और बड़ा संकट है.

हमारे भारत देश की बात करें तो दीपावली, दशहरा, गणेश चतुर्थी, शादी ब्याह, राजकीय विजयोत्सव, देवी देवता के विसर्जन के समय आतिशबाजी और पटाखे – बारूद का अति उपयोग होता है, जिसमे करोड़ों का खर्चा होता है. उपरसे हवामे जहरीले वायु का प्रसार होता है जो पर्यावरण और मानव जाती के लिए हानिकारक होते है.

दीपावली प्रकाशोत्सव है. जिसे दीपोत्सव के रूपमें शुद्ध घी अथवा तेल से दिये जलाकर मनाना चाहिए मगर हम लोग हानिकारक जहरीले पटाखे से मनाते है जो ध्वनि प्रदूषण, वायु प्रदूषण, और वायुमे गरमी फैलाता है. आज नहीं तो कल हमें इस संदर्भ में गंभीरता से सोचना होगा, इसका पर्याय ढूंढना होगा अन्यथा इसके दुष्परिणाम हमारी नयी पीढ़ी को भुगतना पड़ेगा ये निश्चित है.

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