हमारा भारत देश कृषि प्रधान देश है. यहाँपर प्राचीन काल से ही बैल और साँढ़ों को विभिन्न कार्यों में उपयोग में लाया है. बैल अब बहुत कम दीखते हैं फिर भी गांव देहात में बहुत सारे काम अब भी बैलों के द्वारा किया जाता हैं. आज हम इस पोस्ट के मध्यम से जानेंगे की सांढ़ और बैल में क्या अंतर है ?
सांड पूरी तरह से शाकाहारी होते हैं, जो अपने भोजन के लिए पत्तियों, घास, भूसे, खली आदि पर निर्भर होते हैं. ये बीस से पच्चीस साल तक जीवित रहते हैं. गोवंश पशुओं में गाय और सांड के अलावा एक और भी पशु होता है जो बैल कहा जाता है. वैसे बैल गायोंसे बड़े लेकिन सांडों की अपेक्षा में शांत और उपयोगी पशु होता है.
जब भी कड़ी मेहनत की बात आती है अक्सर बैल का उदाहरण दिया जाता है. लेकिन बात जब आक्रामकता और ताकत की आती है तो सांड का जिक्र सुनने को मिलता है. वैसे तो सांड और बैल दोनों ही गाय के बछड़े होते हैं, लेकिन दोनों एक दूसरे से काफी अलग होते हैं. बहुत से लोग इन दोनों के बीच अंतर नहीं जानते हैं. आइए आज जानते हैं कि आखिर एक ही जननी से जन्में
दोनों में अंतर क्या हैं…?
बछड़ा ही बनता है बैल या सांड :
सांढ़ गोवंश पशुओं में नर जानवर होता है. यह लम्बा, तगड़ा, खूब मांसल और काफी ताकतवर होता है. सांढ़ सफ़ेद, काला या लाल भूरे रंग का होता है. यह सींग के साथ भी हो सकता है और बगैर सींग के भी. यह उनके नस्ल पर निर्भर करता है. सांढ़ स्वभावतः काफी उग्र और गुस्सैल क्यों होता है.
वास्तव में इस सवाल का जवाब काफी रोचक है और उसके पीछे का कारण भी उतना ही रोचक है. अपने स्वार्थ के लिए इंसान हमेशा से ही जानवरों का इस्तेमाल करता आया है. अपनी बुद्धि के दम पर उसने ताकतवर से ताकतवर और चालक से चालक जीव को भी अपने बस में कर लिया है. बैल और सांड के साथ भी यही कहानी जुड़ी है. गाय के नर बच्चे ही सांड़ और बैल दोनों भूमिका निभाते हैं.
किस तरह बछड़ा बनता है बैल :
बछड़े को बैल बनाने के पीछे इंसान का स्वार्थ होता है. जब गाय किसी नर को जन्म देती है तो वह बछड़ा किसी काम का नहीं होता है. ऐसे में जब वह बड़ा होता है तो किसान इन बछड़ों को खेत जोतने के लिए हल में इस्तेमाल करते हैं. लेकिन, समस्या यह रहती है कि इन्हें काबू करना मुश्किल होता है. ऐसे में इन्हे कंट्रोल करने के लिए इंसान पुराने जमाने से ही तरकीब अपनाता आ रहा है. इंसान ने बछड़ों की जवानी को कुचलने का फैसला किया. जिससे उसकी आक्रामकता खत्म हो जाती है. इस प्रक्रिया को बधियाकरण कहते हैं.
क्या होता है बधियाकरण ?
इस प्रक्रिया के तरह जब बछड़ा ढाई-तीन साल का होता है तो उसके अंडकोष को दबाकर नष्ट कर दिया जाता है. आजकल यह काम मशीनों से भी होता है, लेकिन पहले इसे बाकायदा कुचला जाता था. इस प्रक्रिया में बछड़े को बहुत ज्यादा दर्द का सामना करना पड़ता था. कई बार तो बधियाकरण के दौरान बछड़ा मर भी जाता था. मौत हो जाती थी. इस तरह बछड़े को पूरी तरह नपुंसक बनाया जाता है. सांड ऐसे बछड़े होते हैं, जिनका बधियाकरण नहीं हुआ होता है. ऐसे में बड़े होने पर यह बछड़ा ताकत से भरपूर होता है और आक्रामक होता है.
सांढ :
सांढ़ को विज्ञान की भाषा में बोस टोरस फॅमिली का सदस्य कहते है. सांढ़ बोवाइन पशुओं में नर जानवर होता है. साँढ़ों का वजन करीब 1700 से 1800 पाउंड तक हो सकता है. सांढ़ अपने भोजन को अन्य बोवाइन पशुओं की तरह सीधे निगल जाते हैं और फिर बाद में उसे मुंह में वापस लाकर चबाते हैं. सांढ़ प्रायः बीस से पच्चीस साल तक जीवित रहते हैं.
सांढ़ डेरी उद्योग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं. सांढ़ चुकि नर पशु होते हैं अतः गायों के गर्भधारण के काम आते हैं. पुराने जमाने में जब खेती हल और बैलों से होती थी और गाडी खींचने के लिए बैल की आवश्यकता पड़ती थी तब इन जानवरों का काफी महत्व था.
आज जब बैलों की कोई ख़ास आवश्यकता नहीं है तब भी गायों के गर्भधारण के लिए सांढ़की आवश्यकता होती है. कई देशों में सांढ़ संस्कृति के प्रतीक हैं और कई खेल तो साँढ़ों के साथ ही बनाये गए हैं. स्पेन का राष्ट्रिय खेल साँढ़ों की लड़ाई है. कई जगहों पर साँढ़ों की दौड़ भी होती है जिनका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व है.
बैल :
एक बहुउपयोगी पशु हैं. गोवंश पशुओं में गाय और सांढ़ के अलावा एक और पशु होता है जो बैल कहलाता है. वास्तव में बैल भी गोवंश में नर पशु के रूप में ही पैदा होता है किन्तु इसे बधिया कर के इसे काम लिया जाता है. बैल गायों से बड़े होते हैं किन्तु साँढ़ों की अपेक्षा शांत और उपयोगी पशु होता है. बैल का प्रयोग गाडी खींचने और खेत जोतने में किया जाता है.
बैल को वास्तव में मानव की खोज कहा जा सकता है. इंसान को खेती के लिए हल चलाने के लिए, गाडी खींचने के लिए, कोल्हू में तेल पेरने के लिए, सिचाई के लिए किसी तगड़े, मजबूत और उपयोगी जानवर की आवश्यकता होती हैं. ऐसा जानवर जिसमे ताकत तो बहुत हो किन्तु आसानी से उस पर नियंत्रण किया जा सके.
सांढ़ के अंदर वे सारे गुण मौजूद थे किन्तु उसको कण्ट्रोल करना सबके बस की बात नहीं. मानव ने इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए सांढ़ को बधिया बनाया और इस प्रकार उसे एक ऐसा जानवर मिला जो ताकत में तो सांढ़ की तरह होता है किन्तु उस पर आसानी से नियंत्रण पाया जा सकता है. बैल में वे सारे ही गुण मिलते हैं और उसे आसानी से नियंत्रित भी किया जा सकता है.
प्राचीन काल से ही बैल मनुष्य की सहायता खेती से लेकर यातायात में करते आये हैं. बैल प्राप्त करने के लिए बछड़े को प्रायः उसके जन्म के पहले ही महीने में उसके वृषण को उसके शरीर से निकाल दिया जाता है. वृषण बाद बछड़े शांत और संयमित हो जाते हैं. फिर जब वे बड़े होते हैं तब उन्हें उपयोग में लाया जाता है.
सांढ़ और बैल में क्या अंतर है :
*** सांढ़ काफी आक्रामक और गुस्सैल होते हैं जबकि बैल शांत और आसानी से नियंत्रित होने वाले पशु हैं.
*** सांढ़ लम्बे, भारी और काफी तगड़े होते हैं किन्तु बैल साँढ़ों की तुलना में थोड़े लम्बे किन्तु वजन में थोड़े कम होते हैं.
*** साँढ़ नर पशु हैं और ये गायों के गर्भधारण में काम आते हैं बैल भी गोवंश के नर पशु होते हैं किन्तु इनका बधिया किया हुआ होता है इसलिए ये शुक्राणु उत्पन्न नहीं कर सकते और बच्चे पैदा करने के काबिल नहीं होते.
*** साँढ़ों का उपयोग कई खेलों में जैसे बुल फाइटिंग और सांढ़ रेस में अक्सर किया जाता है जबकि बैलों की इस प्रकार कोई ख़ास प्रतियोगिता नहीं होती.
*** सांढ़ कृषि और गाडी खींचने में लगभग नहीं काम आते वहीँ बैल कृषि और गाडी खींचने के काम आते हैं.
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