हिंदुस्तान की आजादी का इतिहास मे यदि अजीजन बेगम का उल्लेख ना हो तो वो इतिहास अधूरा माना जायेगा.
वह एक ऐसी तवायफ थीं जो देश की आजादी के लिए बहादुरी से लड़ीं, कभी पर्दे में रहकर तो कभी बिना किसी पर्दे मे रहकर. अजीजन बेगम एक जासूस, खबरी और शूरवीर योद्धा थीं.
“अजीजन बेगम” एक प्रसिद्ध मशहूर तवायफ थी. उनमे देश प्रेम देश भक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुईं थी. गुलामी की जंजीरो को तोड़ने के लिए उन्होंने घुँघरू तक भी उतार दिए थे और क्रांतिकारी बन गई थी. अंग्रेज सोचते थे कि, कोठे कहलाए जाने वाले ठिकानों पर जाने वाला हिंदुस्तानी शराब और शबाब के लिए जाता है. मगर तब वो क्रान्तिकारीयोंका मंच होता था.
अजीजन बेगम का जन्म 1832 में लखनऊ में हुआ था. ई. सन 1857 के स्वतंत्रता संग्रामकी बलिदानी महिलाओं में कानपुर की नाचने गाने वाली यह अजीजन बेगम का नाम भी सामिल था.
कानपुर में नाना साहेबके आव्हान पर अजीजन ने फिरंगियों से टक्कर लेने के लिए स्त्रियो का सशस्त्र दल गठित किया था. और उसकी कमान संभाली थी.
जून 1857 में इन क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को जोरदार टक्कर देते हुए विजय प्राप्त की और नाना साहिब को बिठूर का स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया गया. लेकिन यह खुशी भी ज्यादा दिनों तक नहीं रही और 16 अगस्त को बिठूर में अंग्रेजो के साथ दोबारा भीषण युद्ध में यह क्रांतिकारी हार गए.
इन दोनों ही युद्धों में अजीजन बेगम ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. अजीजन बेगम ने युवतियों की एक ऐसी टोली बनाई जो मर्दाना वेशों में रहती थी. वे घोड़े पर सवार होकर हाथ में तलवार लेकर नौजवानों को आजादी के युद्ध के लिए प्रेरित करती थी. और वे घायलों का इलाज करती थी. और उनके घावों पर मरहम पट्टी करती थी. फल, मिष्ठान्न और भोजना बांटतीं और अपनी मोहक अपनत्व भरी मुस्कान से उनकी पीड़ा हरने की कोशिश करतीं.
घूघंट की आड़ में.अजीजन बाई एक महिला पुरुष वेश में, सीने पर मेडल से आभूषित, घोड़े की पीठ पर सवार, पिस्तौल लिए मैदान-ए-जंग में उतर गई और ब्रिटिश सैनिकों से खूब बहादुरी से लड़ी थी.
अजीजन बाई ब्रिटिश इंडियन आर्मी के सैनिकों के काफी नजदीक थीं. उनके कोठे में स्वतंत्रता संघर्ष की रणनीति बनाई जाती थी. एक जून, 1857 को क्रांतिकारियों ने कानपुर में एक बैठक की. इसमें नाना साहब, तात्या टोपे के साथ सूबेदार टीका सिंह, शमसुद्दीन खां और अजीमुल्ला खान के अलावा अजीजन बाई ने भी शिरकत की थी. इसी बैठक में हाथ में गंगाजल लेकर इन सबने अंग्रेजों की हुकूमत को जड़ से उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया था.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के सेंटर फार वुमंस स्टडीज की प्रोफेसर लता सिंह ने भारत की आजादी के संघर्ष में तवायफों के योगदान पर एक शोध पत्र लिखा है, जिसमें अजीजन बाई का उल्लेख है.
अजीजन को जब गिरफ्तार करके अंग्रेज कमांडर हेनरी हैवलॉक के समक्ष लाया गया तो क्रांतिकारी अजीमुल्ला खा का पता बताने की शर्त पर उसे माफी देने का वायदा किया. बेगम के सुंदरता पर अंग्रेजी अफसर मोहित हो उठे और जनरल ने उनके समीप एक प्रस्ताव रखा कि यदि वह गलतियों को स्वीकार कर ले और अंग्रेजों से माफी मांग ले तो उनको माफ कर दिया जाएगा, और वे दोबारा अपनी रास-रंग की दुनिया सजा सकती है, नहीं तो उन्हें कड़ी से कड़ी सजा भुगतने के लिए तैयार होना पड़ेगा. लेकिन अजीजन बेगम ने इस क्षमा याचना को ठुकरा दिया.
इतना ही नहीं अजीजन बेगम ने हुंकार कर यह भी कहा कि माफी तो अंग्रेजों को मांगनी चाहिए जिन्होंने भारतीयों पर इतना जुल्म किया है उनके इस अमानवीय कृत्य के लिए वह जीते जी उन्हे कभी माफ नहीं करेंगी. यह कहने का अंजाम भी उसे मालूम था पर आजादी की इस दीवानी ने इसकी कोई परवाह नहीं की.
आखिरकार एक नर्तकी से ऐसा जवाब सुनकर अंग्रेज के अफसर तिलमिला गए और उसे मौत के घाट उतारने का आदेश दे दिया गया. देखते ही देखते अंग्रेज सैनिकों ने उसके शरीर को गोलियों से छलनी कर दिया गया.
श्री विनायक दामोदर सावरकर ने अजीजन की तारीफ करते हुए लिखा है, अजीजन एक नर्तकी थी परंतु सिपाहियों को उससे बेहद स्नेह था. अजीजन का प्यार साधारण बाजार में धन के लिए नहीं बिकता था. उनका प्यार पुरस्कार स्वरूप उस व्यक्ति को दिया जाता था जो देश से प्रेम करता था. अजीजन बेगम के सुंदर मुख की मुस्कुराहट युद्धरत सिपाहियों को प्रेरणा से भर देती थी. उनके मुख पर भृकुटी का तनाव युद्ध से भागकर आए हुए कायर सिपाहियों को पुन: रणक्षेत्र की ओर भेज देता था.