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मानव इतिहास साक्षी है की युगो युगो से नारी को प्रताड़ित किया जा रहा है. गलती पति पांडवो ने की भुगतना पड़ा पांचाली को. गलती किसी ओर ने की और अग्नि परीक्षा माता सीता जी को देनी पड़ी.
आजतक सती प्रथा के नाम पर हजारों निर्दोष महिला ओको जिंदा जलाया गया. ये हमारी कैसी परंपरा है ? यह हमारी हिंदुस्तानी संस्कृति है ? बिलकुल नहीं ये हिन्दू संस्कृति के नाम पर कलंक है.
मीराबाई श्री कृष्ण भक्त, संत कवियत्री थी. उनका विवाह उदयपुर के महाराणा सांगा के पुत्र महाराणा कुंवर भोजराज के साथ हुआ था. विवाह के कुछ सालमे पति का देहांत हो गया. पति की मृत्यु शय्या पर सुलाकर जबरन सती करने का प्रयास किया गया.
मगर वो नहीं मानी. उसने सती प्रथा का खुलकर विरोध किया. राजघराना मे जन्म और विवाह के बाद भी उसे सामाजिक कुप्रथा का शिकार होना पड़ा. जानसे मारनेकी कोशिश की गयी. वो घरसे बाहर रहने लगी. भगवान श्री कृष्ण की परम भक्त बन गई. वो मंदिरो मे जाकर नाचने लगी. हरि के गुण गाने लगी.
इस तरह मंदिर मे नाचना राज घराना को अच्छा नहीं लगा. मिरा के पति का अवसान के बाद उनका देवर राजा बन गये थे. मिरा को प्रताड़ित की गयी. जहरीले सर्प को उसके कमरे मे डाला गया. अनेकों कष्ट दिये. फिर भी वो हरि भक्ति मे कायम रही.
देवर राजा राणा ने उसको मारने की साजिश की. उसको मुजरिम बनाकर राज दरबार मे खड़ी की और पूछा गया ? तेरी साथ क्या सलुख किया जाय ? विष का प्याला दीया जाय या फिर गला काटकर निर्मम हत्या की जाय ?
मिरा ने गला काटकर मरने से विष का प्याला पीकर मरना पसंद किया. मिरा ने प्रभु श्री कृष्ण को याद किया और सबके सामने विष का प्याला गटगटा गयी मगर जाको राखे साईया मार सके ना कोई……..मिरा बच गयी…….!.
मिरा वैरागी बन गई. प्रभु भक्ति मे लीन बन गयी. वो पागल की तरह प्रभु मूर्ति के सामने नाचने लग जाती थी. उसने दुनिया के सामने प्रभु भक्ति का मिसाल कायम किया
मिरा बाई का जन्म सन 1498 मे एक राज घराने मे हुआ था. पिता का नाम रतनसिंह था और माता का नाम वीरकुमारी था. उसका विवाह महाराणा कुमार भोजराज जी के साथ हुआ था. उनका मृत्यु 59 साल की उम्र मे द्वारका नगरी मे हुआ था.
मिरा बाई एक संत उपरांत कवियत्री थी जो कृष्ण भक्ति के गीत और श्रद्धा भरी रचना के लिये जानी जाती है. मीराबाई ने चार ग्रंथो की रचना की थी जिसमे (1) नरसी का मायरा. (2) गीत गोविंद टीका. (3) राग गोविंद. (4) राग सोरठ के पद. इसके अलावा मीराबाई के गीतों का संकलन “मीरांबाई की पदावली ” नामक ग्रन्थ में किया गया है.
श्री कृष्ण की परम भक्त और कृष्ण के प्रति अटूट श्रद्धा के लिये मिरा बाई का नाम आदर के साथ लिया जाता है. मिरा बाई पर अनेक भक्ति संप्रदाय का प्रभाव था. जिसका प्रमाण उनकी रचना ओसे मिलता है. पदावली मीराबाई की प्रमाणभूत काव्यकृति है. पायो जी मैंने रामरतन धन पायो ये मीराबाई की प्रसिद्ध रचना है.
द्वापर युग की श्री कृष्ण की समकालीन राधा का कृष्ण प्रेम और पंद्रह सो सदी की मिरा का प्रेम की तुलना राधा के प्रेम के साथ की जाती है जो मीराबाई के लिये गौरव की बात और क्या हो सकती है. वो कहती थी, मिरा के प्रभु गिरधर नागर. कहकर वो प्रभु के प्रति आत्मियिता दर्शाती थी.
मीराबाई की लेखन भाषाशैली में राजस्थानी, ब्रज और गुजराती का मिश्रण पाया जाता है. तद उपरांत पंजाबी, खड़ीबोली, पुरबी इन भाषा का भी मिश्रण दिखई देता है. मीराबाई की रचनाएं बहुत भावपूर्ण है. उनके दुखों का प्रतिबिंब कुछ पदों में गहराई से दिखई देता है . गुरु का गौरव, प्रभु की तारीफ, आत्मसर्मपण ऐसे विषय भी पदों में दिखाई देता है.मराठी में भी उनके पदों का अनुवाद किया गया है.
मिरा बाई के बारेमें अनेकों भक्ति गीत और गाने लिखें गये है. कई प्रादेशिक भाषाओंमे फ़िल्म बनी है. राजकपूर निर्मित ” राम तेरी मैली गंगा ” फ़िल्म का गाना जो फ़िल्म इंडस्ट्रीज के रसिकों मे काफ़ी लोकप्रिय हुआ था. यहां पर आपकी सेवामे प्रस्तुत करना चाहूंगा.
प्रस्तुत है गाना : Lyrics: Ravindra Jain
एक राधा, एक मीरा दोनों ने श्याम को चाहा,
अन्तर क्या दोनों की चाह में बोलो
अन्तर क्या दोनों की चाह में बोलो
इक प्रेम दीवानी, इक दरस दीवानी
इक प्रेम दीवानी, इक दरस दीवानी
राधा ने मधुबन में ढूँढा
मीरा ने मन में पाया
राधा जिसे खो बैठी वो गोविन्द
मीरा हाथ बिक आया
एक मुरली, एक पायल, एक पगली, एक घायल
अन्तर क्या दोनों की प्रीत में बोलो
एक सूरत लुभानी, एक मूरत लुभानी
इक प्रेम दीवानी, इक दरस दीवानी
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर
राधा के मनमोहन
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर
राधा के मनमोहन
राधा नित श्रृंगार करे, और मीरा बन गयी जोगन
एक रानी एक दासी, दोनों हरि प्रेम की प्यासी
अन्तर क्या दोनों की तृप्ति में बोलो
अन्तर क्या दोनों की तृप्ति में बोलो
एक जीत न मानी, एक हार न मानी
एक जीत न मानी, एक हार न मानी
एक राधा, एक मीरा दोनों ने श्याम को चाहा
अन्तर क्या दोनों की चाह में बोलो
अन्तर क्या दोनों की चाह में बोलो
इक प्रेम दीवानी, इक दरस दीवानी
इक प्रेम दीवानी, इक दरस दीवानी
इक प्रेम दीवानी, इक दरस दीवानी.
—–==== शिवसर्जन ====——