जिस समय अंग्रेजों ने भारत में पैर-पसारने की कोशिश करना शुरू किया था, उस वक्त भारत के कई महान राजाओं और स्वतंत्रता सेनानियों ने इन्हें जमकर टक्कर दी थी. हालांकि फिरभी ब्रिटिश, भारत में अपना शासन स्थापित करने में सफल रहे.
भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्ति दिलाने के लिए सन 1857 में भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम शुरू हुआ. इस स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कई राज्यों के राजाओं ने अंग्रेजों का मुस्तैदी से डटकर सामना किया था. लेकिन अंग्रेजों के सामने ये स्वतंत्रता संग्राम ज्यादा समय तक नहीं टिक पाया था.
वहीं इस स्वतंत्रता संग्राम को सफल बनाने के लिए श्री तात्या टोपे, वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई, मंगल पांडे जैसे लोगों ने अपनी सारी ताकत लगा दी थी. मगर उस वक्त भारत के भिन्न-भिन्न भागों के राजाओं में एकता नहीं होने के कारण अंग्रेजों की जीत हुई थी.
आज मुजे महाराष्ट्र की धरती पर जन्म लेनेवाले शूरवीर सेनापति की बात शेयर करनी है. तात्या तोपें का मूल नाम श्री रामचंद्र पांडुरंग यावलकर था. जिस का जन्म ता : 16 फरवरी 1814 के दिन येवला, नासिक, मराठा साम्राज्य महाराष्ट्र का वर्तमान नासिक जिला में
एक पंडित परिवार में हुआ था. तात्या आठ भाई बहन मे सबसे बड़े थे. माताजी का नाम रुक्मिणी बाई था.
जो एक देशस्थ कुलकर्णी परिवार में जन्मे थे. इनके पिता पांडुरंग राव भट्ट, पेशवा बाजीराव द्वितीय के धर्मदाय विभाग के प्रमुख थे. तात्या जी पेशवा बाजीराव के राज्य मे मुंशी का काम करते थे.
कहा जाता है कि जब तात्या तोपे बाजीराव के यहां मुंशी के पद पर काम कर रहे थे तो इन्होने कर्मचारियों को भ्रष्टाचार करते पकड़ा था और उनसे खुश होकर पेशवा ने इनको एक रत्नजडित टोपी दी थी जिससे इनका नाम तात्या टोपे पड़ गया था.
तात्या टोपे को सन 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणीय वीरों में से उच्च स्थान प्राप्त है. जब सन 1857 में मंगल पांडे ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया तो नाना साहेब तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई, अवध के नवाब और मुगल शासकों ने बुंदेलखंड में ब्रिटिश शासकों के खिलाफ विद्रोह कर दिया.
इस विद्रोह का असर धीरे-धीरे पुरे साउथ इंडिया तक पहुंचा. तात्या टोपे ने कई भूमिकाएं निभाईं थी,वे नाना साहब के दोस्त, दीवान, प्रधानमंत्री और सेना प्रमुख के पदों पर भी अपनी सेवाएं देते रहें थे. उनका जीवन अद्वितीय शौर्य गाथा से भरा हुआ था.
ता : 3 जून 1858 को रावसाहेब पेशवा ने तात्या को सेनापति के पद से सुशोभित किया था और भरी राज्यसभा में उन्हें एक रत्नजड़ित तलवार भेंट कर उनका सम्मान किया था. तात्या ने ता : 18 जून 1858 को रानी लक्ष्मीबाई के वीरगति के पश्चात गुरिल्ला युद्ध पद्धति की रणनीति अपनाई. तात्या टोपे द्वारा गुना जिले के चंदेरी, ईसागढ़ के साथ ही शिवपुरी जिले के पोहरी, कोलारस के वनों में गुरिल्ला युद्ध करने की अनेक दंतकथाएं कही जाती है.
ता : 7 अप्रैल 1859 को तात्या तोपे शिवपुरी-गुना के जंगलों में सोते हुए धोखे से पकड़े गए थे बाद में अंग्रेजों ने शीघ्रता से मुकदमा चलाकर 15 अप्रैल को 1859 को राष्ट्रद्रोह में तात्या को फांसी की सजा सुना दी थी.
ता : 18 अप्रैल 1859 की शाम को ग्वालियर के पास शिप्री दुर्ग के निकट क्रांतिवीर के अमर शहीद तात्या टोपे को फांसी दे दी गई.
तात्या टोपे की मृत्यु के बारेमें कुछ इतिहासकारो का मानना है कि तात्या टोपे जैसे चालाक और महान व्यक्ति को पकड़ना इतना आसान नहीं था. तात्या ने लंबे समय तक अंग्रेजों को परेशान करके रखा हुआ था. वहीं तात्या की मृत्यु को लेकर दो बातें कही जाती हैं. कई इतिहासकारों का मानना है कि तात्या को फांसी दी गई थी. वहीं कई पुराने सरकारी दस्तावेजों के मुताबिक तात्या को फांसी नहीं दी गई थी.
तात्या की मौत के बारेमें यह भी कहा जाता है कि तात्या कभी अंग्रेजों के हाथ नहीं लगे थे और उन्होंने अपनी अंतिम सांस गुजरात राज्य में 1909 में ली थी. तात्या ने राजा मानसिंह के साथ मिलकर एक रणनीति तैयार की थी , जिसके चलते अंग्रेजों ने किसी दूसरे व्यक्ति को तात्या समझकर पकड़ लिया था और उसको फांसी दे दी थी. तात्या के जिंदा होने के सबूत समय-समय पर मिलते रहे हैं और तात्या टोपे के भतीजे ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि तात्या को कभी भी फांसी नहीं दी गई.
तात्या टोपे ने अंग्रेजों के खिलाफ करीब 150 युद्ध लड़े हैं. जिसके चलते अंग्रेजों को काफी नुकसान हुए था और उनके करीब 10 हजार सैनिक मारे गये थे. तात्या टोपे ने कानपुर को ब्रिटिश सेना से छुड़वाने के लिए कई युद्ध किए. लेकिन उनको कामयाबी मई, 1857 में मिली थी और कानपूर पर कब्जा कर लिया था. हालांकि ये जीत कुछ दिनों तक ही रही थी और अंग्रेजों ने फिर से कानपुर पर कब्जा कर लिया था.
तात्या टोपे के जीवन पर बने नाटक और फिल्में बनी है. तात्या टोपे जी की जिंदगी को छोटे पर्दे पर भी दर्शाया जा चुका है और जी टीवी पर कार्यक्रम आ चूका है.
भारत सरकार द्वारा उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया था. इस डाक टिकट के ऊपर तात्या टोपे की फोटो बनाई गई थी. इसके अलावा मध्य प्रेदश में तात्या टोपे मेमोरियल पार्क भी बनवाया गया है. जहां पर इनकी एक मूर्ती लगाई गई है. ताकि हमारे देश की आने वाले पीढ़ी को इनकी कुर्बानी याद रहे.