“अंध विश्वास और मानव जाती.”

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अंध विश्वास मनुष्य को पतन की ओर लेकर जाता है. प्रगति को रोक देता है.विश्वास जिसे हम लोग भरोसा भी कह सकते है. भरोसा करना , विश्वास करना अच्छी बात है मगर सोचे समजे बीना किसी बात को हा मे हा मिलाना अंधश्रद्धा , अंध भक्त या अंध विश्वास का ही एक भाग है. 

        आजकल सोशल मिडिया पर अंधभक्त शब्द सुर्खियों मे है. और यह खास करके पॉलिटिक्स हेतुके लिये लिखा जाता है. पक्ष पार्टियों के कार्यकर्त्ता ओ द्वारा एक दुसरो को निचा दिखाने के लिए इसका उपयोग वारंवार किया जाता है. 

      मुर्तिओका दूध पीना, मूर्ति ओके आंख से अश्रु निकलना, भगवान की मूर्ति हर साल छोटी से बड़ी होना यह सब अंध विश्वास, अंध श्रद्धा का ही भाग है. अंध श्रद्धा मान्यता के आधार पर आदि काल से चली आ रही है. इस मान्यताओ को तोडना मुश्किल कार्य है. 

      खास कर हिंदू मांसाहारी समाज मे बलि प्रथा का रिवाज़ प्रचलित है. पहले मानव बलि दी जाती थी. कुछ सभ्य समाज ने मानव बलि का पर्याय नारियल दिया. मानव बलि तो बंद हो गई मगर मुर्गी, बकरा और भैंस की परंपरा आज तक चालू है. उन लोगोंकी मान्यता है की देवी देवताओ को प्रसन्न करने के लिये बलि दी जाती है. कुछ लोगोने मांस मदिरा का सेवन करने और अपनी रूचि अनुसार उदरपूर्ति पूरी करने के लिये बलि प्रथा को धर्म का हिस्सा बना रखा है. 

        वैदिक काल मे लोग ब्रह्म की पूजा करते थे, फिर लोग अग्नि , वायु , जल , पृथ्वी, आकाश यानी पंच तत्वों की पूजा करने लगे. द्वापर युग मे शिवलिंग , विष्णु भगवान और माता दुर्गा की पूजा की जाती थी. पुराणों की रचना के बाद इसका प्रचलन ओर बढ़ा. जैन और बुद्ध काल मे मूर्ति पूजा को प्राधान्य मिला. उसके बादमे वृक्ष,नदी,और पशुओंकी पूजा करने लगे. जो आज तक चालू है. 

        छुआछूट, जातिवाद, सवर्ण – दलित ये सब अंध श्रद्धा का भाग है. यहा पर जातिवाद के खिलाफ वाला फ़िल्म स्टार नाना पाटेकर का क्रांतिवीर फ़िल्म का डायलॉग उल्लेखनीय है , जिसमे वो ” हिंदू और मुसलमान ” का खून एक साथ मिलाकर कहता है कि ” ये मुसलमान का खून , ये हिन्दू का खून…. बता इस में मुसलमान का कौन सा ?… हिन्दू का कौनसा ? बता ! जब बनाने वाले ने इसमे फरक नहीं किया तो, फरक करने वाले आप लोग कौन होते हो ? हृदय छू लेने वाला डायलॉग है. 

 कुछ भी हो डायलॉग हृदय छूने वाला था. विचारणीय था. 

          बिल्ली रास्ता काट गई रुक जाओ. अशुभ घटना हो गई. कोई छींक दिया अपशुकन हो गया. रातमे झाड़ू ना लगाना, घर के बाहर निकलते समय अपना दायां पैर पहले बाहर निकालना. घर के बाहर हर शनिवार को लिंबू मिर्ची लगाना , खड़े होकर जल नहीं पीना. छुरी हाथमे देनेसे झगड़ा होना. किसी विशेष दिनको ही बाल कटवाना. रास्ते मे फन फैलाये खड़ा सर्प दिखना , जाते समय कोई रोक दे तो चिढ़ जाना. ये और ऐसी अनेकों मान्यता अंधश्रद्धा का ही भाग है. आप इससे सहमत हो या नहीं, वो आप पर निर्भय करता है. 

            सती प्रथा का नाम सुनते ही समाज सुधारक श्री राजा राम मोहन राय जी की याद आती हे. जिन्होंने इस रिवाज़ को नष्ट करने के लिए देश व्यापी आंदोलन चलाकर इसका विरोध प्रदर्शित किया था. इतना ही नहीं उन्होंने विधवा विवाह को मान्यता देने के लिये, समाज की स्वीकृति दिलाने पर जोर दिया था. 

     उन्होंने इस रिवाज़ का पूरा अध्यन करके जन जागृति लाने के लिए हिंदी एवं अंग्रेजी मे तीन पुस्तक प्रसिद्ध करके लोगोमे मुफ्त मे बाटी थी. 

    उनका कड़ा रुख देखकर अंग्रेज सरकार के लार्ड विलियम कौटिक ने ता : 4 दिसम्बर 1829 के दिन इस प्रथा को गैर कानूनी घोषित करके बंद करनेका सरकारी अत्यादेश क़ानून पारित करके सती प्रथा को बंद कर दिया था. श्री राजा राम मोहन राय के जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि के रूपसे आज भी लोग उन्हें याद करते हे. 

       उसके बाद श्री हरिश्चंद्र विद्यासागर जी के प्रयत्नों से सन 1856 मे लार्ड डलहौजी ने स्त्रियों को मुक्ति देने विधवा पुनःविवाह अधिनियम बनाया. 

     उस ज़माने मे विधवा स्त्री को मान सम्मान नहीं मिलता था. विधवा होने वाली स्त्री को पति के साथ जबरन चिता पर बिठाया जाता था. और ” सती माता की जय ” के नारों के साथ जोर जोर से वाजिंत्र बजाये जाते थे. लोगो के शोर मे उस निर्दोष महिलाकी चीख दबा दी जाती थी. महिला , बचाओ बचाओ की चिल्लाहट के साथ जलकर अग्नि मे राख हो जाती थी. लोग उसे उनकी परंपरागत संस्कृति – सभ्यता मानते थे ! 

         अंधविश्वास, अंधश्रद्धा समाज मे इस तरह हो गई है की उसको नेस्तनाबूद करना मुमकिन नहीं है. हा जन जागृति से इसे कुछ हद्द तक कम किया जा सकता है. 

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