अकाल एक वो कुदरती आपदा है, जो जन जीवन को अस्तव्यस्त करके प्रभावित करती है. सूखा अकाल, वर्षा ( वृस्टि ) ना होनेको कहते है. हरा अकाल अति वृस्टि से होता है, जिसमे ज्यादा बारिस गिरनेसे खेतों मे नुकशान होना, अन्न धान्य का ना पकना आदि मुख्य वजह होती है.
अकाल को सूखा , भुखमरी भी कहते है. हमारा देश कृषि प्रधान देश है. हमारा जीवन कृषि पैदाइश पर निर्भर है. दुनियामे हर साल कही ना कही अकाल गिरते रहते है, मगर आज मुजे हमारे भारत देश के अकाल के बारेमें बात करनी है. भारत मे सन 1783 मे पड़े अकाल को ” चालीसा का अकाल ” कहा जाता है.
सन 1812 – 1813 मे पड़े अकाल को ” पंचकाल ” और सन 1868 – 69 मे पडे अकाल को ” त्रिकाल ” एवं सन 1899 – 1900 मे पड़ा अकाल को ” छपनिया अकाल ” के नाम से जाना जाता है.
सन 1900 मे राजस्थान के अधिकांश भागोंमें वर्षा नहीं हुई थी. यहां तक की किसान फसल बो नहीं पाये थे. वहां अनाज का एक दाना भी पैदा नहीं हो सका था. लोग पलायन करके अन्य राज्य मे चले गये थे. पशु पक्षी, पानी और अन्न के बीना मरने लगे थे.भयंकर विकट परिस्थिति थी.
लोग पेड़ के पत्ते और छाल को पीसकर खा गये थे. इस अकाल का असर गुजरात तक हुआ था. बीकानेर, जयपुर, जोधपुर के राजा ओने प्रजा की जान बचानेके लिये सदाव्रत खोले थे मगर तब यातायात के सीमित साधनों व संचार माध्यमों की कमी के कारण उक्त सहायता की सूचना सभी लोगों तक नहीं पहुँच सकी और जनता राजाओं द्वारा की गई व्यवस्था का पूरी तरह फायदा नहीं उठा सकी थी.
सन 1943- 44 मे द्वितीय विश्वयुद्ध के समय बंगाल मे भयानक अकाल पड़ा था. जिसमे करीब 30 लाख लोगों ने महामारी, भुकमरी और कुपोषण से अपनी जान गवा देनेका अनुमान है. सन 1943 का अकाल बहोत बड़ी आपदा था.
कई वर्षो तक वर्षा नहीं होती है तो वहां अकाल की परिस्थिति निर्माण होती है. और इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था डगमगा जाती है. पानी की किल्लत और अन्न धान्य के कमी की वजह से लोगो की मृत्यु हो जाती है.
बंगाल का अकाल के बारेमें कुछ लोगों का मानना है की उस समय ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने द्वितीय विश्व युद्ध के समय जान बुजकर लाखो भारतीयों को भूखे मरने दिया था. बर्मा पर जापान के कब्जे के बाद, वहां से चावल का आना रुक गया था और ब्रिटिश शासन ने अपने सैनिकों और युद्ध में लगे अन्य लोगों के लिए चावल की जमाखोरी कर ली थी यहीं कारण था , जिसकी वजह से बंगाल में आए सूखे में तीस लाख से अधिक लोग मारे गए थे.
बंगाल के अकाल के समय गांव मे लोग भूख से मर रहे थे, लोग सड़ा खाने के लिये लड़ रहे थे, झगड़ रहे थे उस वक्त ब्रिटिश अधिकारी और धनिक लोग क्लबो और अपने घरों मे गुलछर्रे उड़ा रहे थे. मैंने अकाल के बारेमें कुछ जानकारी यहां पर प्रस्तुत की है. मगर मेरा निश्चित मानना है की इस वक्त हमारे देश मे मांग के सामने आपूर्ति ना हो पाने की वजह से पुरा देश अकाल का सामना कर रहा है. यहां असली दूध का अभाव (अकाल ) , असली फल फ़्रूट का अभाव ( अकाल ), असली मावा का अभाव ( अकाल ) से नकली मावा का चलन !. असली तेल का अभाव ( अकाल ) से मिक्सिंग तेल का चलन. असली सब्जी का अभाव ( अकाल ) से गटर युक्त सब्जी का चलन ! ट्रैन मे जाओ तो सलामत यात्रा का अभाव (अकाल ).बस का अकाल, नौकरी का अकाल, न्याय का अकाल, अच्छे दिन का अभाव ( अकाल ).देश हित, देश धर्म, देश प्रेम का अभाव (अकाल ).बैंको मे अच्छी सर्विस का अभाव ( अकाल ). मुजे तो चलते फिरते, उठते बैठते अकाल ही अकाल नजर आ रहा है. प्रभु हमें बचा लो. यहां तक की अब तो असली नेताओं का भी अभाव (अकाल ) होते जा रहा है. ये सब मानव सर्जित अभाव ( अकाल ) भी कुदरती अकाल से कोई कम नहीं है !!!.
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ शिव सर्जन प्रस्तुति.