मिरा भाईंदर शहर क्षेत्र मे क्रिश्चन समाज दूध मे सक्कर की तरह मीलकर यहां रह रहा है. यह समाज मानवता वादी, गरीबों के मसीहा प्रभु येशु के धर्म का अनुसरण करते है. इनके मंदिर को चर्च कहा जाता है. ये होली ( पवित्र ) क्रॉस को मानते है, जिस पर परमेश्वर येशु को लोहे के कील से उनके हाथ पैर को ठोका गया था.
आज मुजे बात करनी है, प्राचीन अवर लेडी ऑफ नाज़रेथ चर्च की, जो भाईंदर पश्चिम स्थित मिरा भाईंदर महानगर पालिका मुख्यालय की बगल मे विध्यमान है. जो एतिहासिक विरासत का गवाह है.
पुर्तगाली शासन कालमें फादर पाउलो दा त्रिनिदादे द्वारा सन 1575 से 1578 के बीच चर्च ऑफ़ अवर लेडी ऑफ़ नाज़रेथ की नींव रखी गई थी. पुर्तगाल सरदार बलथासर गोम्स को भाईंदर गांव बक्षीस के रूपमें दिया गया था. जो बलथासर गोम्स इस प्राचीन चर्च के संस्थापक थे. पूरा भाईंदर गांव क्षेत्र, मूल रूप से बलथासर गोम्स का था. उन्होंने चर्च के लिए एक जगह का चयन किया और इसे अपने खर्च पर बनवाया था. फादर सिमाओ डी नाज़रेथ, जो संरक्षक थे, ने पहला पत्थर रखा था.
चर्च पर सन 1739 में मराठों द्वारा हमला किया गया था, मगर पता नहीं कि इसे कितना नुकसान हुआ लेकिन फ्रांसिस्कन फादर्स को छोड़ना पड़ा और धर्मनिरपेक्ष पादरी ने कब्जा कर लिया. चर्च का पुनर्निर्माण सन 1866 में किया गया था और फिर सन 1890 में इसका विस्तार किया गया और साल 1910 और साल 1980 के दशक की शुरुआत में इसे फिर से तैयार किया गया.
इस मंदिर के निर्माण के पीछे एक कहानी प्रचलित है. बलथासर गोम्स का दो साल का बेटा अंताओ दे नाझरेथ एक बार बीमार पड़ गया. उस समय बलथासर गोम्स ने नाझरेथ माऊली से मन्नत मांगी कि वो ठीक होनेपर भाईंदर स्थित अपनी कुछ जमीन चर्च को देंगे व खुद के खर्चे से चर्च बनाकर देंगे.
बेटा ठीक होने पर सन 1575 के करीब नाझरेथ माऊली के नामसे यहां चर्चका निर्माण किया. और फ्रान्सिस्कन धर्मगुरू को प्रदान किया गया.
बलथासर गोम्स का बेटा अंताओ दे नाझरेथ गोम्स बड़ा होकर धर्मगुरू बना और अवर लेडी ऑफ नाझरेथ चर्च में रेक्टर के रूपमें सन 1595 में नियुक्त किया गया.
प्राचीन अवर लेडी ऑफ नाझरेथ चर्च भाईंदर पश्चिम को बलथासर गोम्स हर साल पुर्तगाली चलन 200 पर्दाओस मदत करते थे. उस समय में चर्च का आकार 100 फूट लंबा और 52 फुट चौड़ा और 20 फुट ऊंचा था.
133 साल पहले सन 1890 में फादर मायकेल फुर्टाडो ने चर्च के वास्तु का प्रथम विस्तार किया. तद्पश्चात 20 साल बाद 1910 में चर्च की पुनर्रचना फादर जोसेफ घोन्साल्वीस ने की थी. सन 1937 में चर्च के ईमारत का पुनः निर्माण किया गया. वर्तमान विध्यमान चर्च इमारत की संरचना सन 1991में फादर साल्वाडोर रॉड्रिग्ज ने की थी.
मंदिर में प्रभु येशू ख्रिस्त की मूर्ती के बाये बाजू पाश्चात्य शैली में बनाई गई सोने से बनाई गई नाझरेथ माऊली की मूर्ति है. सन 1950 तक इस चर्च में बिजली की सुविधा नहीं थी. उस वक्त केरोसिन पर चलने वाला उपकरण,तीन पेट्रोमॅक्स की सहायता से पुरे चर्च को प्रकाशमान किया जाता था.
एक पेट्रोमॅक्स से पवित्र पवित्र मूर्ति और दो पेट्रोमॅक्स से संपूर्ण चर्च को प्रकाशित किया जाता था.
सन 1960 तक भाईंदर गांव की गलियों में और रोड पर ग्रामपंचायत के द्वारा केरोसिन के दिये 12 फुट ऊंचे खम्भे पर फानूस की तरह चारो तरफ कांच से सुरक्षित करके लगाये जाते थे. और सुबह में बुजा देते थे.
इस चर्च के तत्वविधान में अनेक सामाजिक कार्यक्रम का आयोजन होते रहते है. संत विन्सेंट डी पॉल संस्था के माध्यम से अनेक गरीब विद्यार्थियों को शैक्षणिक मदत, बीमार गरीब व्यक्ति को औषधोपचार का खर्च और गरीब कुटुंब को मासिक राशन का खर्च दिया जाता है. जो प्रशंसा के काबिल है.
छोटे बच्चे से लेकर वरिष्ठ नागरिक, महिला आदि प्रत्येक के लिए चर्चने स्वतंत्र ग्रुप निर्माण किया है. जिसके
माध्यम से विद्यार्थियों को अच्छे संस्कार, संस्कृती का संवर्धन, युवा ओके लिए प्रबोधन, विविध खेल स्पर्धा, मनोरंजक कार्यक्रम, महिलांओके सशक्तिकरण के लिए और आरोग्य के विविध उपक्रम, वरिष्ठ नागरिकोके लिए आरोग्य शिबिर, योग वर्ग आदी विविध प्रकार के उपक्रम चलाये जाते है.
परिसर के विविध आश्रमो की मुलाक़ात लेकर वहाके गरीबों को चर्च की ओर से आर्थिक तथा अन्नधान्य की मदत की जाती है. इसके शिवाय चर्चकी इंग्रजी माध्यम की स्कूल में 12वीं तक के विद्यार्थियों को शिक्षण दिया जाता है.
यह स्कूल भाईंदर की उत्तम स्कूलों में से एक है.