सनातन हिंदू धर्म प्रणाली मे भगवान श्री गणेश जी का सब देवोमे विशेष महत्त्व है. श्री गणेश जी का विविध 108 नामोंसे पूजन किया जाता है. जैसे ॐ श्री गजाननाय नमः , ॐ श्री विनायकाय नमः, ॐ श्री गणेश्वराय नम:, ॐ श्री गणेशाय नमः , ॐ श्री गणप्रियाय नम:, ॐ सुप्रदीपाय नमः इतियादी अनेक नामोंसे श्री गणेश जी की स्तुति की जाती है. मगर आज महाराष्ट्र के श्री अष्टविनायक मंदिरमे से पुणे के मोरगाँव क्षेत्र के मयूरेश्वर विनायक का मंदिर के बारेमें आप लोगोंसे कुछ जानकारी शेयर करनी है.
श्री मयूरेश्वर विनायक मंदिर भारत के महाराष्ट्र राज्य के पुणे शहर से करीब 65 किलोमीटर की दुरी पर मोरगाँव मे विद्यमान है. ये महाराष्ट्र का श्री मयूरेश्वर विनायक मंदिर श्री गणेश जी का प्रसिद्घ मंदिर है. मंदिर गांव के केंद्र मे स्थित है. यहां पर गणेश चतुर्थी , गणेश जयंती , तथा विजयादशमी के दिन विशेष पूजा अर्चना करके उत्सव मनाया जाता है.
वैसे देखा जाय तो महाराष्ट्र और भारत भर का सबसे बड़ा धार्मिक उत्सव श्री गणपति उत्सव होता है जो श्री गणेश चतुर्थी से प्रारंभ होकर अनंत चर्तुदशी तक पूरे दस दिन तक बड़े हर्षोल्लास के साथ चलता है. उत्सव के अंतिम दिन गणपति श्री प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है. श्री मयूरेश्वर मंदिर अष्ट विनायकों में सामिल है. महाराष्ट्र में पुणे के नजदीक श्री अष्ट विनायक के आठ पवित्र मंदिर है जो 20 किलोमीटर से लेकर 110 कि.मी. के क्षेत्र में स्थित हैं.
यह आठ मंदिरो मे निम्नलिखित मंदिरो का समावेश है.
( 1 ) मयूरेश्वर मंदिर मोरगाँव, पुणे जिला.
( 2 ) सिद्धिविनायक मंदिर सिद्धटेक , अहमदनगर जिला.
( 3 ) बल्लालेश्वर मंदिर पाली , रायगढ़ जिला.
( 4 ) वरदविनायक मंदिर महाड, रायगढ़ जिला.
( 5 ) चिंतामणि मंदिर औरूर, पुणे जिला.
( 6 ) गिरिजात्मज मंदिर लेन्याद्री , पुणे जिला.
( 7 ) विघ्नेश्वर मंदिर ओजर, पुणे जिला.
( 8 ) महागणपति मंदिर राजनगांव , पुणे जिला.
ये सभी आठ मंदिर बहुत प्राचीन है. सबका अलग अलग पौराणिक इतिहास और कहानी है.
मान्यता के अनुसार इस मंदिरों की गणेश प्रतिमाएं स्वयंभू यानि जो स्वयं प्रगट हुई हैं. यह सभी मंदिरों का महत्व गणेश और मुद्गल पुराण जैसे ग्रथों में भी वर्णित किया गया है. अष्ट विनायक गणपति धामों की यात्रा को अष्टविनायक तीर्थ यात्रा के नाम से पहचाना जाता है. अष्ट विनायक यात्रा इन पवित्र प्रतिमाओं के प्राप्त होने के क्रम के अनुसार ही की जाती है. यह क्रम के अनुसार दर्शन करने पर ही यात्रा पूर्ण मानी जाती है. और उचित फल की प्राप्ति होती है.
श्री मयूरेश्वर या मोरेश्वर मंदिर के चारों कोनों में मीनारें है, यह बिदर के सुल्तान के दरबार से श्री गोले नामक शूरवीरों द्वारा निर्मित किया गया है.
यहां लंबे पत्थरों की दीवारें हैं.यहां पर चार द्वार हैं, जिन्हें सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग , कलियुग चारों युग का प्रतीक माना जाता हैं. यहां गणेश जी की मूर्ती बैठी मुद्रा में है, और उसकी सूंड बाई तरफ है तथा उनकी चार भुजाएं एवं तीन नेत्र हैं. यहां नंदी की भी मूर्ती है. कहते हैं कि इसी स्थान पर श्री गणेश जी ने सिंधुरासुर नाम के राक्षस का वध मोर पर सवार होकर युद्ध करके किया था. इसी कारण से इस मंदिर को मयूरेश्वर मंदिर कहा जाता है.
अष्टविनायक यात्रा की शुरुआत मोरगांव के श्री मयूरेश्वर के दर्शन से होती है. मोरगांव का श्री मयूरेश्वर मंदिर का नाम मोर पर रखने की भी एक कथा है इसके अनुसार एक समय था जब यह स्थान मोरों से भरा हुआ रहता था. यह मोरगाँव करहा नदी के किनारे स्थित है.
मंदिर के द्वार पर शिवजी के वाहन नंदी बैल की मूर्ति स्थापित की गई है, जिसका मुंह भगवान गणेश की मूर्ति की ओर है. प्राचीन पौराणिक कथाआें के अनुसार एक समय भगवान शिव और नंदी इस मंदिर क्षेत्र में विश्राम के लिए रुके थे. नंदी को ये स्थान बहुत पसंद आया उन्होंने यहां से जाने से इनकार कर दिया आैर यहीं ठहर गए, तबसे उनकी प्रतिमा यहां स्थापित है. शिव के नंदी और गणपति के मूषक, दोनों ही मंदिर के रक्षक के रूप में यहां बिराजमान हैं.
मंदिर के अंदर श्री गणेशजी की मंगल मूर्ति बैठी मुद्रा में विराजमान है आैर उनकी सूंड बार्इं ओर मुड़ी हुई है. पास मे एक कोबरा, नागराज है जो उसकी रक्षा करता है. प्रतिमा की चार भुजाएं आैर तीन नेत्र हैं. स्थानीय लोगों के अनुसार बताया जाता है कि प्रारंभ में मूर्ति आकार में छोटी थी, परंतु दशकों से इस पर सिन्दूर लगाने के कारण यह अब इतनी बड़ी दिखती है. एक एेसी भी मान्यता है कि स्वयं ब्रह्मा जी ने इस मूर्ति को दो बार पवित्र किया है जिसने यह अविनाशी हो गई है.
मयूरेश्वर मंदिर को अष्ट विनायक मंदिरो मे सबसे महत्वपूर्ण और भारत का सबसे बड़ा गणेश तीर्थ बताया जाता है. मुदगला पुराण ने मोरगाँव की महानता के लिए 22 अध्याय समर्पित किए हैं,
गणेश पुराण में कहा गया है कि मोरगाँव ( मयूरापुरी ) गणेश के लिए तीन सबसे महत्वपूर्ण स्थानों में से एक है और पृथ्वी पर एकमात्र है. अन्य स्थानो मे कैलाश पर्वत जो गणेश के माता-पिता शिव और पार्वती का निवास स्थान है और तीसरा पाताल में आदि शेष का महल है.
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी यानी गणेश चतुर्थी के दिन यहां पर भक्तों की भीड़ लगती है. इसी दिन चिंचवड़ स्थित संत मोरया गोसावी द्वारा स्थापना की गई मंगल मूर्ति मंदिर से भाविक भक्त जन पालकी लेकर आते है. गणेश चतुर्थी ते अनंत चतुर्दशी ये दस दिन तक मयूरेश्वर मंदिर मे मेला भरता है. विजयादशमी और सोमवती अमावस्या को भी उत्सव के रुप मे मनाया जाता है.
पुणे और सभी अष्टविनायक मंदिर से उत्सव के दरम्यान राज्य परिवहन मंडल की विशेष बस चलाई जाती है. निजी टूर्स एंड ट्रेवल की भी बसे चलाई जाती है. भक्त जनको रहने के लिये सभी मंदिरो की जगह धर्मशाळा, हॉटेल और महाराष्ट्र पर्यटन विकास महामंडल के रिसोर्ट उपलब्ध है.
इसके इर्द गिर्द प्रेक्षणीय स्थलों मे 17 किलोमीटर की दुरी पर जेजुरी के श्री मल्हारी मार्तंड खंडोबा का मंदिर, 12 किलोमीटर के अंतर पर पांडवो ने बनाया पांडेश्वर मंदिर, जेजुरी से दो किलोमीटर के अंतराल मे लवथळेश्वर शिव मंदिर. जो मोरगाँव से 19 कि.मी. की दुरी पर है. इसके अलावा सासवड मे विध्यमान संत श्री सोपान महाराज की समाधी. अंतर करीब 34 कि.मी., नारायणपूर का एकमुखी दत्त मंदिर, शिवमंदिर, बालाजी मंदिर और पुरंदर किला अंतर करीब 42 कि.मी. आदि प्रमुख स्थल है. ——–====शिवसर्जन ====–