ज दशहरा का धार्मिक त्यौहार है. दशहरा का त्योहार अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है. इस दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था, इसलिए भी शारदीय नवरात्र की दशमी तिथि को ये उत्सव मनाया जाता है.
आजके दिन भगवान श्री रामचंद्र चौदह वर्ष का वनवास भोगकर तथा रावण का वध करके अयोध्या पहुँचे थे. इसलिए इस पर्व को ” विजयादशमी ” कहा जाता है. दशहरे के दिन दही चीनी का भोग माता दुर्गा को चढ़ाया जाता है. दही और चीनी को बाकी बने व्यंजनों के साथ खाया जाता है. पश्चिम बंगाल में दशहरा के दिन सफेद रसगुल्ले खाना और बनाना दोनों शुभ माना जाता है.
दशहरा भारत में मनाया जाने वाला एक प्रमुख हिंदू त्योहार है. यह दीपावली और होली के बाद भारतीय हिंदुओं के सबसे लोकप्रिय त्योहारों में से एक है. दशहरा नौ दिनों तक चलने वाले दुर्गा पूजा उत्सव के बाद मनाया जाता है, जो इस त्योहार को और भी भव्य बना देता है.
दशहरा राक्षस रावण पर भगवान राम की जीत के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. दशहरा त्यौहार से नौ दिन पहले रामलीला का मंचन किया जाता है. दशहरे के दिन रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले जलाए जाते हैं.
दशहरे के दिन लोग शस्त्र-पूजा करते हैं और नये प्रतिष्ठान का प्रारम्भ करते हैं
माना जाता है कि इस दिन जो कार्य आरम्भ किया जाता है उसमें विजय मिलती है. प्राचीन काल में राजा लोग इस दिन विजयकी प्रार्थना कर रण यात्रा के लिए प्रस्थान करते थे. इस दिन कहीं जगह पर मेले लगते हैं. रामलीला का आयोजन होता है. और रावण मेघनाद कुभंकरण का विशाल पुतला बनाकर उसे जलाया जाता है.
कहा जाता है कि इसी दिन पांडवों को वनवास हुआ था और वे वनवास के लिए प्रस्थान कर गए थे. आजके दिन अज्ञातवास समाप्त होते ही, पांडवों ने शक्तिपूजन करके शमी के वृक्ष में रखे अपने शस्त्र पुनः हाथों में लिए थे एवं विराट की गाएं चुराने वाली कौरव सेना पर आक्रमण कर विजय प्राप्त की थी. इसी दिन पांडवों ने कौरवों पर भी विजय प्राप्त की थी.
वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान श्री राम ने ऋष्यमूक पर्वत पर आश्विन प्रतिपदा से नवमी तक आदि शक्ति की उपासना की थी. इसके बाद भगवान श्रीराम इसी दिन किष्किंधा से लंका के लिए रवाना हुए थे. यह भी कहा जाता है कि रावण वध के कारण दशहरा मनाया जाता है. दशमी को श्रीराम ने रावण का वध किया था. श्रीराम ने रावण का वध करने के पूर्व नीलकंठ को देखा था. नीलकंठ को शिवजी का रूप माना जाता है. अत: दशहरे के दिन इसे देखना बहुत ही शुभ माना जाता है.
माना जाता है कि दशहरे के दिन कुबेर ने राजा रघु को स्वर्ण मुद्रा देते हुए शमी की पत्तियों को सोने का बना दिया था, तभी से शमी को सोना देने वाला पेड़ माना जाता है. नवरात्रि में सोने और गहनों की खरीद को शुभ माना जाता है.
दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों (1) काम, (2) क्रोध, (3) लोभ, (4) मोह (5) मद, (6) मत्सर, ( अहंकार, (9) आलस्य, (10) हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है. शमी वृक्ष के पत्तों को सोना के रूपमें लूटकर एक दूसरे को आपसमे देते है, और दशहरा की शुभकामनायें देते है.
भारत के हर राज्य में दशहरा मनाने की अपनी-अपनी रीति है. इसी समय में किसान अपनी फसल उगाकर घर लाता है, और खुशी मनाता है.
गुजरात में मिट्टी के घड़े को रंग से सजाया जाता है. जिसे माता देवी का प्रतीक मानकर कुंवारी लड़कियां सिर पर रखकर गरबा नृत्य करती हैं. पुरुष एवं महिलाएं दो छोटे रंगीन “डांडिया” को संगीत की लय पर आपस में बजाके घूम घूम कर नृत्य करते हैं.
इस अवसर पर पारंपारीक “गरबा”
( माता माँ की स्तुति – प्रार्थना ) का सामूहिक आयोजन किया जाता है.पूजा और आरती के बाद डांडिया रास का आयोजन संगीत के ताल पर पूरी रात भर होता रहता है. वर्तमान में भाविक रंगरसियाओको लाउड स्पीकर की पावंदी का सामना करना पड़ता है. और रात दस ग्यारह बजे गरबा नृत्य बंद कर दिया जाता है.
महाराष्ट्र में नवरात्रि के नौ दिन माता दुर्गा का उत्सव बडी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है.दसवें दिन ज्ञान की देवी सरस्वती की वंदना की जाती है. इस दिन विद्यालय जाने वाले बच्चे अपनी पढ़ाई में आशीर्वाद पाने के लिए मां सरस्वती के तांत्रिक चिह्नों की पूजा करते हैं. विद्या आरंभ करने के लिए यह दिन काफी शुभ माना जाता है. महाराष्ट्र के लोग इस दिन विवाह, गृह-प्रवेश एवं नये घर खरीदने का शुभ मुहूर्त मानते हैं.
महाराष्ट्र मुंबई में निजी संस्थाओं द्वारा प्रवेश फीस लेकर सार्वजनिक नवरात्रि उत्सवका भव्य आयोजन किया जाता है. नयनरम्य रंगबेरंगी रोशनी के साथ ओर्केस्ट्रा की धुन पर फ़िल्मी तथा गुजराती गरबा के साथ गरबा नृत्य किया जाता है. जिसमे हजारों लोग भाग लेते है.
वैसे दशहरा के दिन का खास महत्त्व माना जाता है. भगवान श्री राम ने रावण से युद्ध हेतु इसी दिन प्रस्थान किया था. मराठा रत्न छत्रपती शिवाजी महाराज ने भी औरंगजेब के विरुद्ध इसी दिन प्रस्थान करके हिन्दू धर्म का रक्षण किया था. इस दिन माता कात्यायनी दुर्गा ने देवताओं के अनुरोध पर महिषासुर का वध किया था.
इसी दिन विजय उत्सव मनाने के कारण इसे विजयादशमी के रूपमें मनाया जाता है. यह पर्व प्रभु श्री राम के काल में भी मनाया जाता था और श्री कृष्ण के काल में भी मनाया जाता था. माता द्वारा महिषासुर का वध करने के बाद से ही असत्य पर सत्य की जीत का पर्व विजयादशमी मनाया जाने लगा है.