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आज मुजे बात करनी है कामधेनु गाय के बारेमें. समुद्र मंथन के समय जो 14 रत्न उत्पन्न हुये थे उनमेसे एक कामधेनु गाय भी थी. हिंदू धर्म के अनुसार कामधेनु ये गाय के स्वरूप मे एक देवी है, जो जिस किसीके पास होती है उसको मालामाल कर देती है. उन्हें सुरभि भी कहा जाता है. कामधेनु का मतलब होता है, काम = इच्छा. धेनु = गाय. अर्थात मन वांछित इच्छा पूर्ण करने वाली गाय.
समुद्र मंथन से निकली इस गाय को देवताओ ने इसे ऋषि वशिष्ठ को प्रदान की थी . कामधेनु का दुग्धपान करने वाले को अमरत्व प्राप्त होता है, अतः कई राजाओने कामधेनु को पाने के लिये असफल प्रयास किये थे . ऋषि विश्वामित्र बड़े ही ज्ञानी महापुरुष थे. ऋषि बननेसे पूर्व बड़े पराक्रमी और प्रजावत्सल राजा थे. कामधेनु गाय को हड़पने के चक्कर मे उन्होंने ऋषि वशिष्ठ से युद्ध किया था, लेकिन वे हार गए थे.
गाय को हिन्दू धर्म में सबसे पुजनीय माना जाता है. गाय हमें दूध, स्वास्थ, धन और धान्य प्रदान करती है. इसी कारण गाय को हिन्दू परंपरा में माता का सम्मान प्राप्त हुआ है.
हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार गाय में 33 कोटि के देवी देवता निवास करते हैं. यहां पर कोटि का अर्थ करोड़ नहीं, प्रकार होता है. इसका मतलब ये होता है कि गाय में 33 प्रकार के देवता निवास करते हैं. ये देवता मे 12 आदित्य, 8 वसु, 11 रुद्र और 2 अश्विन कुमार है. ये सब मिलाकर कुल 33 होते हैं .
कामधेनु गाय एक चमत्कारी गाय होती थी जिसके दर्शन से सभी तरह के दु:ख दूर हो जाते थे. दैवीय शक्तियों से संपन्न यह गाय जिसके भी पास होती थी उसको चमत्कारिक लाभ मिलता था. इस गाय का दूध अमृत समान माना जाता था.
इस धरा पर पहले गायों की कुछ प्रजातियां होती थीं. उससे प्रारंभिक काल में गाय की एक ही प्रजाति थी . आज से लगभग 9,500 साल पूर्व गुरु वशिष्ठ ने गाय के कुल का विस्तार किया था और उन्होंने गाय की नई प्रजातियों को भी बनाया था. तब गाय की 8 या 10 नस्लें ही थीं जिनका नाम कामधेनु, कपिला, देवनी, नंदनी, भौमा आदि था. कामधेनु के लिए गुरु वशिष्ठ से कई राजाओंने युद्ध किये थे. गाय के इस झगड़े में गुरु वशिष्ठ के 100 पुत्र मारे गए थे.
कामधेनु के बारेमें एक कथा भगवान परशुराम से जुड़ी है. ऋषि जमदग्रि के पास देवराज इन्द्र से प्राप्त दिव्य गुणों वाली कामधेनु नामक अद्भुत गाय थी.
एक बार सहस्त्रार्जुन अपनी पूरी सेना के साथ जंगलों को पार करता हुआ जमदग्नि ऋषि (भगवान परशुराम के पिता) के आश्रम में विश्राम करने के लिए आ पहुंचा. महर्षि ने राजा को अपने आश्रम का मेहमान समझकर स्वागत सत्कार किया और उन्हें आसरा दिया.
जमदग्नि ने सहस्त्रार्जुन की सेवा में किसी भी प्रकार की कोई कसर नहीं छोड़ी. महर्षि जमदग्नि ने कामधेनु गाय की मदद से कुछ ही पलों में देखते ही देखते राजा और उनकी पूरी सेना के लिए भोजन का प्रबंध कर दिया.
कामधेनु के ऐसे गुणों को देखकर सहस्त्रार्जुन अति प्रसन्न हुआ. ओर उसने ऋषि जमदग्नि से कामधेनु की मांग की. मगर ऋषि जमदग्नि ने कामधेनु को देने से इंकार कर दिया . सुनकर राजा सहस्त्रार्जुन ने क्रोधित होकर ऋषि जमदग्नि के आश्रम को उजाड़ कर सब नष्ट कर दीया.
राजा सहस्त्रार्जुन अपने साथ कामधेनु गाय को साथ ले जाने लगा तो तभी वह गाय उसके हाथों से छूट कर स्वर्ग की ओर चली गई. कुछ समय के पश्चात महर्षि के पुत्र भगवान परशुराम आश्रम लौटे और जब उन्होंने यह दृश्य देखा तो हैरान रह गए. हालात का कारण पूछने पर उनकी माता रेणुका ने उन्हें सारी बातें विस्तारपूर्वक बताई.
पराक्रमी परशुराम ने उसी वक्त दुराचारी सहस्त्रार्जुन और उसकी सेना का नाश करने का संकल्प लिया.भगवान परशुराम अपने परशु अस्त्र को साथ लेकर सहस्त्रार्जुन के नगर महिष्मतिपुरी पहुंचे ओर राजा सहस्त्रार्जुन और भीषण युद्ध किया. भगवान परशुराम ने दुष्ट सहस्त्रार्जुन की हजारों भुजाएं और धड़, परशु से काटकर उसका वध कर दिया.
परशुराम अपने पिता के पास वापस आश्रम पहुंचे तो उनके पिता ने उन्हें आदेश दिया के वे इस वध का प्रायश्चित करने के लिए तीर्थ यात्रा पर जाएं, तभी उनके ऊपर से राजा की हत्या का पाप खत्म होगा.
लेकिन ना जाने कहां से परशुराम के तीर्थ पर जाने की खबर सहस्त्रार्जुन के पुत्रों को मिल गई.तो सब बदला लेने के लिये आश्रम पहुँचे. उस समय आश्रम में केवल माता रेणूका और महर्षि जमदग्नि थे.उन्होंने ध्यानमग्न महर्षि जमदग्नि का सिर काट दिया और माता रेणुका को मारने लगे.
माता रेणुका ने अपने पुत्र परशुराम को पुकारा, उस वक्त परशुराम तीर्थ में तपस्या में लीन थे. लेकिन माता की आवाज सुनकर वे तुरंत हीं अपने आश्रम को लौट आये. अपने पिता का शरीर भाईयों के पास छोड़कर, सहस्त्रार्जुन के महल मे गये. वहाँ जाकर परशुराम ने सहस्त्रार्जुन के बचे हुये पुत्रों को मार डाला.
अपने आश्रम लौट कर वे पिता के शरीर को लेकर कुरुक्षेत्र गये. वहाँ मंत्र की सहायता से पिता के सिर को जोड़ दिया तथा उन्हें जीवित किया.
पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन के समय देवता और दैत्यों को समुद्र में से कई वस्तुएं प्राप्त हुईं थी. जैसे कि मूल्यवान रत्न, अप्सराएं, शंख, पवित्र वृक्ष, चंद्रमा, पवित्र अमृत, कुछ अन्य देवी देवता और हलाहल नामक अत्यंत घातक विष और इसी समुद्र मंथन के दौरान क्षीर सागर में से कामधेनु गाय की उत्पत्ति भी हुई थी.
पुराणों में कामधेनु गाय को नंदा, सुनंदा, सुरभी, सुशीला और सुमन भी कहा गया है. समाप्त.
—–===शिवसर्जन प्रस्तुति ===—–