पैगंबर मोहम्मद के जन्मदिन की खुशी मे इस्लामिक कैलेंडर के तीसरे महीने रबी-उल-अव्वल के 12वें दिन ईद-ए-मिलाद-उन-नबी मनाया जाता है. ईद-ए-मिलाद-उन-नबी के मौके पर हम आज पैगंबर मोहम्मद से जुड़ी अहम बातों के बारे में जानते हैं.
पैगंबर मोहम्मद का जन्म अरब के रेगिस्तान के शहर मक्का में ता : 8 जून 570 ईस्वी में हुआ था. पैगंबर साहब के जन्म से पहले ही उनके पिता का निधन हो चुका था. वह 6 वर्ष के थे तो उनकी मां की भी मृत्यु हो गई. मां के निधन के बाद पैगंबर मोहम्मद अपने चाचा अबू तालिब और दादा अबू मुतालिब के साथ रहने लगे. मोहम्मद पैगम्बर के पिता का नाम अब्दुल्लाह और माता का नाम बीबी आमिना था.
पैगंबर मोहम्मद इस्लाम के सबसे महान नबी और आखिरी पैगंबर हैं. कुरान के मुताबिक मक्का की एक पहाड़ी अबुलुन नूर पर एक रात जब वह पर्वत की एक गुफा में ध्यान कर रहे थे तो फरिश्ते जिब्राइल वहां आए और उन्हें कुरान की शिक्षा दी. जिब्राइल के अल्लाह का नाम का जिक्र करते ही मोहम्मद ने संदेश पढ़ना शुरू कर दिया. अल्लाह का संदेश मानकर पैगंबर मोहम्मद जिंदगी भर इसे दोहराते रहे. उनके शब्दों को याद कर लिया गया और संग्रहित कर लिया गया.
पैगंबर का विश्वास था कि अल्लाह ने उन्हें अपना संदेशवाहक चुना है. अतः वह दूसरों को भी अल्लाह का संदेश देने लगे.मोहम्मद की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि मक्का में प्रभावशाली लोगों को खतरा महसूस होने लग गया. सन् 622 में मोहम्मद को अपने अनुयायियों के साथ मक्का से मदीना कूच करना पड़ा. उनके इस सफर को हिजरत कहा गया. इसी वर्ष इस्लामिक कैलेंडर हिजरी की भी शुरुआत हुई.
मोहम्मद पैगंबर की पत्नी आयशा के मुताबिक, पैगंबर घर के कामों में भी मदद करते थे. घर के काम करने के बाद वह प्रार्थना के लिए बाहर जाते थे. कहा जाता है कि वह बकरियों का दूध भी दुहते थे और अपने कपड़े भी खुद धुलते थे. पैगंबर मोहम्मद मूर्ति पूजा या किसी भी चित्र की पूजा के खिलाफ थे. यही वजह है कि उनकी कहीं भी तस्वीर या मूर्ति नहीं मिलती है. बता दें कि इस्लाम में मूर्ति पूजा की मनाही है.
उस वक्त अरब में कबीलाई संस्कृति का जाहिलाना दौर था. हर कबीले का अपना अलग धर्म था और उनके देवी देवता भी अलग ही थे. कोई मूर्तिपूजक था तो कोई आग को पूजता था. यहुदि और ईसाइयों के भी कबीले थे लेकिन वे भी मजहब के बिगाड़ का शिकार थे. ईश्वर (अल्लाह) को छोड़कर लोग व्यक्ति और प्रकृति-पूजा में लगे थे.
अरब में हिंसा का बोलबाला था. औरतें और बच्चे महफूज नहीं थे. लोगों के जान-माल की सुरक्षा की कोई भी ग्यारंटी नहीं थी. सभी ओर बदइंतजामी थी. इस अंधेरे दौर से दुनिया को बाहर निकालने के लिए अल्लाह ने हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पैगंबर बनाया. उस समय मोहम्मद साहब के संदेशों ने उन्हें बहुत लोकप्रिय बना दिया.
उस समय मदीना में तीन महत्वपूर्ण यहूदी कबीले थे. कुछ ही वर्षों में पैगंबर मोहम्मद के बड़ी संख्या में अनुयायी हो चुके थे और तब उन्होंने मक्का लौटकर विजय हासिल की.
मक्का में स्थित काबा को इस्लाम का पवित्र स्थल घोषित कर दिया गया. सन् 632 में हजरत मुहम्मद साहब का देहांत हो गया पर उनकी मृत्यु तक लगभग पूरा अरब इस्लाम कबूल कर चुका था.
कुरान ( अरबी: अल-क़ुर्’आन ) इस्लाम की पाक किताब है मुसलमान मानते हैं कि इसे अल्लाह ने फ़रिश्ते जिब्रईल द्वारा मुहम्मद को सुनाया था. मुसलमान लौग मानते हैं कि कुरान ही अल्लाह की भेजी अन्तिम और सर्वोच्च किताब है.
आरम्भ में इसका प्रसार मौखिक रूप से हुआ पर पैगम्बर मुहम्मद के स्वर्गवास के बाद सन् 633 में इसे पहली बार लिखा गया था और सन् 653 में इसे मानकीकृत कर इसकी प्रतियाँ इस्लामी साम्राज्य में वितरित की गईं थी.
मुहम्मद पैगम्बर के जीवन को पारम्परिक रूप से दो युगों के रूप में चित्रित किया गया है, पूर्व हिजरत (पश्चिमी उत्प्रवासन) में मक्का में 570 से 622 तक, और मदीना में, 622 से 632 तक अपनी मृत्यु तक.
हदीस के मुताबिक माना जाता रहा है कि खदीजा से पैगंबर मुहम्मद की शादी के फैसले में विधवा विवाह और बड़ी उम्र की महिला से भी शादी की जा सकती है, यह संदेश छिपा हुआ था. जबकि कम लोग जानते हैं कि पहली शादी उन्होंने प्यार के लिए की थी. जब पैगंबर मुहम्मद ने एक 40 साल की विधवा से शादी की, उनकी उम्र 25 साल थी.
उन्हीं ने आगे बढ़कर शादी का प्रस्ताव रखा था. कई विद्वान मानते हैं कि खदीजा एक अमीर विधवा थी लेकिन शुरुआती साक्ष्य बताते हैं कि आपसी प्रेम और सम्मान के चलते यह शादी की गई थी. अपने बाद के जीवन में की गईं नौ शादियों में से ज्यादातर पैगंबर मुहम्मद ने सामाजिक संदेश देने के लिए की थीं.
जीवन के आखिरी में वे बुरी तरह बीमार थे. वे बिना अपना उत्तराधिकारी घोषित किए ही चल बसे थे. कोई बेटा जीवित न होने के चलते किसी को उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया जा सका. जिसके बादसे एक अल्लाह, एक जैसे लोगों के एकता के नारे को मानने वाले धर्म में आज भी शिया और सुन्नी का बंटवारा बना हुआ है.