सास बहु मंदिर राजस्थान के उदयपुर शहर से 20 कि. मी. की दुरी पर स्थित है. उदयपुर शहर से नाथद्वारा के मार्ग पर एकलिंगी मंदिर से तीन कि.मी. पहले यह मंदिर विध्यमान है. यह सास बहू मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है. वैसे इस मंदिर का असली नाम
” सहस्रबाहु मंदिर ” है.
बताया जाता है कि आस-पास कभी मेवाड़ राजवंश की स्थापना हुई थी, जिसकी राजधानी नगदा थी. इस मंदिर का निर्माण कछवाहा वंश के शासक राजा श्री महिपाल और श्री रत्नपाल ने ग्यारहवीं सदी के आरंभ में किया था. मंदिर का परिसर 32 मीटर लंबा और 22 मीटर चौड़ा है. यह एक ऐतिहासिक और कलात्मक मंदिर है.
महिपाल भगवान विष्णु का परम भक्त था. कहा जाता है कि उसने ये मंदिर अपनी पत्नी और बहू के लिए बनवाया था. इसलिए इस मंदिर का नाम सास बहू मंदिर रखा गया है. मंदिर ऊंची जगह पर बना हुआ है. इसमें प्रवेश के लिए पूर्व में मकरतोरण द्वार है. मंदिर पंचायतन शैली में बनाया गया है. मुख्य मंदिर के चारों तरफ देवताओं का कुल बसता है.
हर मंदिर में पंचरथ गर्भगृह, खूबसूरत रंग मंडप बने हैं. सास बहू अर्थात सहस्रबाहु मंदिर मूल रूप से भगवान विष्णु को समर्पित है. इस परिसर में दूसरा प्रमुख मंदिर शिव का है.
उदयपुर को झीलों की नगरी कहां जाता है.यहां वास्तु कला के बेजोड़ नमूने देखनेको मिलता है. सास-बहू के मंदिर अष्टकोणीय आठ नक्काशीदार महिलाओं से सजायी गई छत है. बहू का मंदिर, सास के मंदिर से थोड़ा छोटा है. मंदिर की दीवारों को रामायण की विभिन्न घटनाओं के साथ सजाया गया है मंदिर में स्थित मूर्तियां दो चरणों में व्यवस्थित की गई हैं, जो कि एक-दूसरे को घेरे रहती हैं.
सास-बहू के मंदिर में त्रिमूर्ति यानी भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिवजी की छवियां एक मंच पर खुदी हुई हैं. साथ ही दूसरे मंच पर राम, बलराम और परशुराम के चित्र लगे हुए हैं. मेवाड़ राजघराने की राजमाता ने मंदिर भगवान विष्णु को और बहू ने शेषनाग को समर्पित कराया था.
मंदिर में भगवान श्रीविष्णु की 32 मीटर ऊंची और 22 मीटर चौड़ी प्रतिमा है. यह प्रतिमा सौ भुजाओं से युक्त है. इस वजह से यह मंदिर सहस्रबाहु मंदिर भी कहा जाता है. मंदिर की छत भी बहुत कलात्मक है. मंदिर के सामने एक ही भारी पत्थर से बना तोरण है, जिसमें तीन द्वार हैं. सास-बहू के दोनों मंदिरों के बीच में ब्रह्माजी का छोटा सा मंदिर है.
बहू के मंदिर का सभामंडप अपने आप में एक अनूठा प्रदर्शन करता है. प्रत्येक स्तंभ पर पत्थर से निर्मित प्रतिमाएं लगी हुई हैं. मंदिर में लगी नारी प्रतिमाएं नारी सौंदर्य को दर्शाने के लिए उल्लेखनीय हैं. मंदिर के सामने भारी पत्थर से बना तोरण है, जिसमें तीन द्वार है. सास-बहू के मंदिर अन्य मंदिरों की तुलना में कहीं अच्छी दशा मे हैं.
एक समय सास बहू मंदिर को बंद करवा दिया गया था बताया जाता है कि दुर्ग पर मुगलों ने जब कब्जा किया तो मंदिर को चूने और रेत से भरवाकर बंद करवा दिया था. जब अंग्रेजों ने दुर्ग पर कब्जा कर लिया था, तब मंदिर को दुबारा खुलवाया गया था.
प्रवेश द्वार पर मां सरस्वती की मूर्ति है. यह राजस्थान के अत्यंत प्राचीन मंदिरों में से एक है. मंदिर की दीवारों पर अंदर और बाहर खजुराहो के मंदिरों की तरह असंख्य मूर्तियां बनाई गई हैं. इन मूर्तियों में कई कामशास्त्र से भी जुड़ी हुई है. सन 1226 में इल्तुतमिश के हमले के दौरान पहली बार नागदा शहर और सहस्रबाहु मंदिर तबाह हुआ था.
बताया जाता है कि इस मंदिर में भगवान विष्णु की 32 मीटर ऊंची और 22 मीटर चौड़ी प्रतिमा थी. लेकिन आज के समय में इस श्री मंदिर में भगवान की एक भी प्रतिमा नहीं है.
इतिहासकारों के अनुसार इस मंदिर में सबसे पहले भगवान विष्णु की स्थापना की गई थी. यही कारण है कि इस मंदिर का नाम सहस्त्रबाहु मंदिर रखा गया था. ” सहस्त्राबहु ” का मतलब हजार भुजाओं वाले’ भगवान का मंदिर होता है.
यहां सूर्योदय से सूर्यास्त तक दर्शन के लिए जा सकते है. कोई पूजा पाठ इस मंदिर में नहीं होती . मगर मंदिर की कलात्मकता को निहारने के लिए हर रोज विदेशी पर्यटक आते है.
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