आज हम आपको एक ऐसे ऋषि की कहानी को सुनाने जा रहे है जिन्होंने कभी किसी स्त्री को नहीं देखा. ये एक
” ऋषि श्रृंगी ” के जिंदगी की कहानी है, जिसने अपने पुरे जीवन में किसी भी स्त्री को नहीं देखा और जब देखा तो वह पुराणों के ऐतिहासिक पन्नों पर अमर हो गया.
हिन्दू पुराणों के अनुसार महान ऋषि कश्यप के पौत्र विभाण्डक ऋषि के पुत्र ऋषि श्रृंगी के जन्म की कहानी रोचक है. ये उस समय की बात है कि जब विभाण्डक ऋषि अपने तप में लीन थे. उनकी घोर तपस्या और बढ़ती हुई शक्ति को देखकर स्वर्ग में देवता परेशान हो गए. जिसके कारण सभी देवताओने निश्चिय किया कि वे विभाण्डक ऋषि के तप को भंग करेंगे.
तत्पश्चात विभाण्डक ऋषि के तप को भंग करने के लिए देवताओं ने स्वर्ग से उर्वशी नाम की अप्सरा को उनके पास भेजा. “उर्वशी” अत्यंत खूबसूरत स्वरूपमान थी और उसके आकर्षण से विभाण्डक ऋषि का तप भंग हो गया. दोनों ने सहवास किया जिसके कारण एक पुत्र का जन्म हुआ. उनके पुत्र का नाम था ऋषि श्रृंगी. पुत्र को जन्म देते ही अप्सरा उर्वशी का कार्य वहां समाप्त हो गया और वह वहां से स्वर्ग के लिए चली गई.
इस घटना के कारण छल और कपट की भावना से भरपूर विभाण्डक ऋषि ने क्रोध में आकर पूरे संसार की तमाम स्त्रियों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया. इसके बाद वो अपने पुत्र को लेकर जंगल की तरफ चले गए. अपने साथ हुए इस छल के कारण उन्होंने प्रण किया कि वो जीवन भर अपने पुत्र पर किसी स्त्री की छाया तक नहीं पड़ने देंगे और यही कारण था कि ऋषि श्रृंगी ने जीवनभर किसी स्त्री को नहीं देखा था.
कहा जाता हैं कि, क्रोधित होकर विभाण्डक ऋषि जिस जंगल की ओर गए उसके पास एक नगर था. ऋषि का क्रोध उस जंगल में जाने के बाद और बढ़ने लगा. जिसका असर उस नगर पर पढ़ने लगा और वहां अकाल से मातम छाने लगा. जिससे परेशान होकर नगर के राजा रोमपद ने अपने मंत्रियों और ऋषि-मुनियों को बुलाया.
इस दुविधा का समाधान ऋषियों ने ऋषि श्रृंगी का विवाह बताया. उनके अनुसार, यदि ऋषि श्रृंगी विवाह कर लें तो विभाण्डक ऋषि को मजबूर होकर अपना क्रोध त्यागना पड़ेगा और सारी समस्या का हल निकल जाएगा.
राजा रोमपद ने ऋषियों के इस प्रस्ताव को स्वीकार किया. और जंगल की तरफ खुबसूरत दासियों को भेजा. राजा रोमपद को लगा कि ऋषि श्रृंगी पहली बार में ही दासियों को देखकर मोहित हो जाएंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. क्योंकि जिसने आज तक किसी स्त्री को देखा नहीं था वो कैसे समझते कि नारी जाति पुरूष जाति से भिन्न होती है और वहीं दासियों को ऋषि श्रृंगी को अपनी ओर आकर्षित करने में काफी समय लगा.
एक दिन दासियों ने ऋषि श्रृंगी को अपनी ओर मोहित करने में कुछ हद तक सफलता हासिल की. अब ऋषि श्रृंगी उन दासियों के साथ नगर जाने के लिए तैयार हो गए. जब विभाण्डक ऋषि को इस बारे में पता चला तो वो अपने पुत्र को ढूंढते हुए राजा के महल जा पहुंचे. जहां उनका क्रोध शांत करने के लिए राजा ने अपनी पुत्री का विवाह ऋषि श्रृंगी से कर दिया.