ये कहानी सत्य घटना पर आधारित है. एक अरबों, खरबों पति सेठ था. उसे हम सेठ श्री लक्ष्मी नारायण के नाम से संबोधित करेंगे. धनाढ्य सेठ श्री लक्ष्मी नारायण के पास एक से बढकर एक थ्री स्टार, फोर स्टार और फाइव स्टार होटल थी. उसका व्यापार पुरे विश्वभर मे फैला हुआ था. पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी.
एक अकेला निसंतान था. वो अपने एक आलीशान बंगले मे रहता था. पैसे की कोई कमी नहीं. उसे एक ही चिंता थी कि मेरे मरने के बाद मेरी संपत्ति का उत्तराधिकारी कौन होगा. दिन बितते गये. अब तो बीमार भी रहने लगा. एक दिन वो अपने उत्तराधिकारी की शोध के लिए घर से बाहर निकल गया.
उसने एक भिखारी का रुप धारण किया. फटे टूटे कपडे, माथे पर जटा वाली विग पहनी. प्रथम वो अपने राइट हैंड माने जाने वाले फाइव स्टार होटल के मैनेजर के पास गया. उसने मैनेजर को बताया कि वो सेठ लक्ष्मी नारायण का दोस्त है. बिज़नेस मे लॉस्ट जानेसे वो कंगाल हो गया है. उसने कहा मुजे सिर्फ खाना खिलाओ.
मैनेजर ने होटल के स्वयं मालिक श्री लक्ष्मी नारायण को कहा, वो बूढा ? वो तो अब मरने के दिन गिन रहा है. मैं इस होटल का अब तो असली मालिक बनूँगा. चल हट यहांसे कहकर धक्का मारकर उसे भगा दिया.
सेठ श्री लक्ष्मी नारायण भिखारी बनकर अपनी देश विदेश की हर होटल मे बारी बारीसे गया. सब मैनेजरो ने उसका अपमान किया. तिरस्कार किया. उसे कोई उत्तराधिकारी नहीं मिला.
थका हारा वो घर की और प्रयाण कर रहा था. उसको कड़ाके की भूख लगी थी. रास्ते मे एक छोटी सी होटल दिखाई दी. वो काउंटर पर गया और भोजन की मांग की. होटल मालिक उस धनाढ्य सेठ की आँखे के तरफ देखते रहा. रातके ग्यारह बज चुके थे. मालिक बोला मैंने भी खाना नहीं खाया है, हम एक साथ बैठकर खाएंगे.
दोनों ने पेट भर खाना खाया. और भिखारी बने सेठ लक्ष्मी नारायण को कहने लगा. आजसे आप कही भीख नहीं मागोंगे. आप दो समय मेरे होटल मे फ्री मे खाना खा कर जाना. सेठ लक्ष्मी नारायण उसकी उदारता से अति प्रसन्न हुआ, और बोला आप मुझपर इतना रहेम क्यू कर रहे हो?
होटल का मालिक बोला, याद है आजसे चालीस साल पहले जब आप यह होटल चलाते थे, तब भूखा प्यासा मे भोजन मांगने आपकी इस होटल मे आया था. तब आपने मुजे फ्री मे खाना खिलाया था. और महेनत मजदूरी करके जीने को सिखाया था.
मैंने खूब महेनत मजदूरी की और पैसे की बचत की. कुछ साल बाद आप होटल बेचकर चले गये. फिर उसके बाद मैंने इस होटल को खरीद लिया था. मैं आपको ही आदर्श मानकर जीता हूं. जब मेरे सामने कोई भिखारी आ जाता है, तो आपकी याद आ जाती है. और मैं कोई भी भिखारी, साधु संतों को खाना फ्री मे खिला देता हूं.
होटल मालिक दयाराम ने सेठ श्री लक्ष्मी नारायण से पूछा, आपतो अपनी खुद की होटल के मालिक थे फिर ऐसे भिखारी कैसे बन गये….?
सेठ श्री लक्ष्मी नारायण की आंखोमे हर्ष के आंसू आ गये. उसको उसका उत्तराधिकारी मील चूका था. सेठ श्री ने अपनी सब हकीकत सुनाई. उसने कहा की मेरी पास कुल 52 होटल है. और अपनी पुरी अरबों, खरबोंकी मिलकत का स्वयं मालिक होनेका बताया. उसके अपने उत्तराधिकारी की तलाश के लिए ये सब नाटक रचाया था की बात कही.
सुनकर होटल मालिक दयाराम की आंख मे आँसू आ गये. उसे ऐसा प्रतित हो रहा था कि , मानों वो कोई स्वपना देख रहा था.
सेठ श्री लक्ष्मी नारायण जी ने विश्व भर के अपने तमाम मैनेजर को अपना उत्तराधिकारी घोषित करने के लिए एक तत्काल मीटिंग बुलाई. सब को कुतूहल था कौन नया मालिक होगा..? दयाराम को भी निमंत्रण दिया गया.
मीटिंग का वो दिन आ गया. सेठ श्री लक्ष्मी नारायण ने जाहिरात करते कहा की आजसे मेरी सभी होटल के मैनेजरो को मैं काम से इसी वक्त निलंबित करता हूं और मेरी तमाम होटलो का मालिक उत्तराधिकारी के रूप में यह दयाराम की नियुक्ति करता हूं. उसने कारण बताते भिखारी का जिक्र किया जो स्वयं खुद था की बात कही.
दोनों ने गले मिलकर एक दूसरे की पीठ थपथपाई. इसे कहते है, “कर भला सो हो भला” और कहावत है की ” खुदा देता है तो छप्पर फाड़कर देता है. “