एक नागरिक अलंकरण समारोहमें श्री दरिपल्ली रमैया को पद्म श्री पुरस्कार.

तारिख : 30 मार्च 2017 का वो दिन था, जब राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली में स्थित एक नागरिक अलंकरण समारोह में श्री दरिपल्ली रमैया को पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

दरिपल्ली रमैया का नाम शायद ही आपने सुना होगा. उसे गांवके सब लोग पागल कहते रहे, उसने तेलंगाना में 1 करोड़ से ज़्यादा पेड़ लगा दिए. उसने देखा पर्यावरण में बदलाव आ रहे है. वातावरण में प्रदूषण की मात्रा बढ़ रही है. वृक्षों की अंधाधुंध कटाई हो रही है. ये सब देखकर दरिपल्ली का मन बेचैन रहता था.

इसके लिए दरिपल्ली कुछ करना चाहते थे. तभी उनके मन में वृहद स्तर पर वृक्ष लगाने का विचार आया. प्रारम्भ में उन्होंने ऐसा करके अपने गांव के पूर्व और पश्चिम दिशा में चार-चार कि.मी. के श्रेत्र को विविध हरे-भरे पेड़-पौधों से भर दिया, जिनमें मुख्यतः बेल, पीपल, कदंब और नीम के पेड़ हैं. इन पेड़ों की संख्या आज बढ़कर लाखोमे हो गई हैं.

उन्होंने अपनी जिम्मेदारी सिर्फ वृक्ष लगाने तक ही सीमित नहीं रखी बल्कि वे स्वयं पेड़-पौधों की देख-रेख करते हैं.

रमैया का कहना है कि यह सब उनकी माँ की प्रेरणा से संभव हुआ है. उसकी माँ अगले मौसम के लिए पौधों के बीज बचाकर रखती थी. रमैया बीज को मानव कल्याण का समाधान मानते हैं. “पृथ्वी को अपना घर मानने वाली सभी प्रजातियों में सबसे श्रेष्ठ मनुष्य है. माना जाता है कि उसके पास बुद्धि है, वह सोच सकता है, कुछ कर सकता है और काम करवा सकता है.

रमैया का कहना है कि प्रकृति के प्रति हमारा कर्तव्य है कि हम प्रकृति की रक्षा करें. भगवान द्वारा बनाई गई हर चीज की रक्षा भावी पीढ़ियों के लिए करनी चाहिए. इसीलिए उन्होंने अधिक पौधे और बीज खरीदने के लिए अपनी 3 एकड़ जमीन बेच दी. ताकी वो पर्यावरण की रक्षा कर सके.

रमैया के पास 600 से ज्यादा किस्म के बीज हैं. जिनकी गुणवत्ता का ज्ञान उनको कई पढ़े-लिखे पर्यावरण विद लोगों से ज्यादा है. हालांकि वो 10वीं कक्षा तक ही पढ़े-लिखे है.उनकी इस लगन का परिणाम यह हुआ है कि आज इस जिले के हजारों हेक्टेयर भूमि में विस्तृत वन श्रेत्र विकसित हो चुका हैं, जिसे राज्य की सरकार ने संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया हैं.

रमैया अपने गाँव के बाहर स्थित पुराने पुस्तकों के दुकानों से पेड़-पौधों से संबंधित किताबें खरीद कर उनका अध्ययन करते हैं, और पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करते है. रमैया

कबाड़ के टिन प्लेटों पर वृक्ष बचाओं के नारे रंग-बिरंगे रंगों से लिखकर पूरे गाँव व जिलें में घूमते हैं. वे बड़े ही गर्व से राजमुकुट की भांति टीन की एक टोपी भी पहनते हैं, जिससे लोगोंको हरियाली बचाने की अपील करते हैं.

एक बार किसी व्यक्ति ने उनके काम से खुश होकर उनके बेटे की शादी पर 5000 रूपये दिये परन्तु यह रमैया का काम के प्रति सर्मपण ही कहा जाएगा कि उन्होंने उस पैसे को भी वृक्षारोपण के कार्य को आगे बढ़ाने में लगा दिया. पैसे की कमी दरिपल्ली के उद्देश्य पूर्ति में कभी बाधा नहीं बनी.

तेलुगु में नरेश जिला द्वारा विट्ठनम नुंडी पद्मम वरकु-वनजीवी प्रयाणम. यह पुस्तक रमैया के बचपन से लेकर पद्म श्री तक के जीवन और दरिपल्ली रमैया के उत्तराधिकार सिद्धांतों का वर्णन करती है.

तेलंगाना के खम्माम ज़िले के रहने वाले दरिपल्ली रामैया को यहां के लोग ‘वनजीवी रामैया’ या तेलुगु में चेतला रमैया कहके बुलाते है. रमैया का प्रसिद्ध उद्धरण “एक पेड़ लगाओ और एक जीवन बचाओ” है. रमैया जिस भी बंजर भूमि के पास से गुजरते हैं, वहां पौधे लगाते हैं. कभी-कभी उनके साथ उनकी पत्नी और स्थानीय स्कूलों के बच्चे भी होते हैं. रमैया को लोग पौधों पर चलता फिरता विश्वकोश कहते है.

पौधें लगाने की शुरुआत उन्होंने अपने गांव रेड्डिपल्लि से की थी. पेड़ों और हरियाली के प्रति उनके इस जुनून के लिए लोगों ने उन्हें “पागल” तक कहा, लेकिन जब उन्हें साल 2017 में भारत सरकार की तरफ से इसी नेक काम के लिए “पद्मश्री सम्मान” मिला तो सबकी जुबान पर ताले जड़ गए और लोग उनकी वाहवाही करने लगे.

रमैया का जन्म ता:1 जुलाई 1937 के दिन हैदराबाद राज्य (अब तेलंगाना ) के खम्मम जिले के रेड्डीपल्ली गांव में हुआ था.

रमैया को मिले पुरुस्कार :

*** सन 1995 मे सेवा पुरस्कार.

*** सन 2005 मे वनमित्र पुरस्कार.

*** सन 2015 मे राष्ट्रीय नवाचार और

उत्कृष्ट पारंपरिक ज्ञान पुरस्कार.

*** सन 2017 पद्मश्री.

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