वृंदा का मतलब तुलसी होता है, अर्थात वृंदावन मतलब तुलसी का वन होता है. ब्रह्म पुराण के अनुसार वृंदा राजा केदार की पुत्री थीं. उन्होंने इस वनस्थली में कठोर तप किया था. अतः इस वन का नाम वृंदावन पड़ा है.
वृन्दावन मथुरा से 15 किमी कि दूरी पर स्थित वृन्दावन भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के मथुरा ज़िले में एक पवित्र और महत्वपूर्ण धार्मिक तथा ऐतिहासिक नगर है.
वृन्दावन भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीला से जुडा हुआ है. यह स्थान श्री कृष्ण की कुछ अलौकिक बाल लीलाओं का केन्द्र माना जाता है. यहाँ विशाल संख्या में श्री कृष्ण और राधा रानी के मन्दिर हैं. जिसे देखने दुनियाभर के भाविक भक्त लोग यहां आते है.
मथुरा में प्रमुख आकर्षण बांके बिहारी मंदिर, राधा-वल्लभ मंदिर, प्रेम मंदिर, इस्कॉन मंदिर, श्री राधारमण, श्री राधा दामोदर मंदिर , राधा श्याम सुंदर, गोपीनाथ, गोकुलेश, श्री कृष्ण बलराम मन्दिर, पागलबाबा का मंदिर, रंगनाथ जी का मंदिर, श्री कृष्ण प्रणामी मन्दिर, अक्षय पात्र, वैष्णो देवी मंदिर, तथा श्री रामबाग मन्दिर आदि दर्शनीय स्थान है.
पावन भूमि वृंदावन के बारेमें बहुत कुछ लिखा जा सकता है. मगर आज मुजे पुण्य भूमि वृंदावन भूमि की एक सच्ची कहानी आप प्रबुद्ध मित्रों तक पहुचानी है.
कहानी कुछ ऐसी है :
शीर्षक : ” वृन्दावन की चीटियाँ.”
एक संत एक बार वृन्दावन गए वहाँ कुछ दिन घूमे फिरे दर्शन किए और जब वापस लौटने का मन किया तो सोचा भगवान को भोग लगा कर कुछ प्रसाद लेता चलूँ. उस संत ने एक दुकान से राम दाने के कुछ लड्डू ख़रीदे . मंदिर गए और प्रसाद चढ़ाया और एक आश्रम में आकर सो गए. अगले दिन सुबह ट्रेन की ट्रैन पकड़ी और चल पड़े. सुबह वृन्दावन से चली ट्रेन को मुगलसराय स्टेशन तक आने में शाम हो गयी.
उस संत ने सोचा, अभी पटना तक जाने में तीन चार घंटे और लगेंगे, भूख लग रही है, मुगलसराय में ट्रेन आधे घंटे रूकती है. चलो हाथ पैर धोकर संध्या वंदन करके कुछ खा पिया जाय. संत ने हाथ पैर धोया और लड्डू खाने के लिए डिब्बा खोला. उन्होंने देखा कि लड्डू में चींटी लगी हुए है. उसने चींटों को दूर किया और एक दो लड्डू खा लिए. बचे लड्डू का प्रसाद बाँट दूंगा ये सोच कर छोड़ दिए.
मगर संत का मन माना नहीं.बेचारे को लड्डुओं से ज्यादा उन चींटों ओकी चिंता सताने लगी. वो मन ही मन सोचने लगा कि ये चींटिया वृन्दावन से इस मिठाई के डिब्बे में आई हैं. बेचारी इतनी दूर तक ट्रेन में मुगलसराय तक आ गई. कितना भाग्यशाली था इनका जन्म जो वृन्दावन में हुआ था. अब इतनी दूर से पता नहीं कितने दिन या कितने जन्म लग जाएँगे इनको वापस पहुंचने. पता नहीं ब्रजभूमि की धूल इनको फिर कभी मिल पाएगी या नहीं. मैंने कितना बड़ा पाप कर दिया, इनका वृन्दावन छुड़वा दिया. नहीं…. नहीं कृष्ण प्रभु मुझे वापस जाना होगा.
संत ने उन चींटों को वापस उसी मिठाई के डिब्बे में सावधानी से रख दिया और वृन्दावन की ओर जाने वाली ट्रेन पकड़ ली. उसी मिठाई की दूकान के पास गए डिब्बा धरती पर रखा और हाथ जोड़ लिए. और रोते हुए बोला कि मेरे भाग्य में नहीं कि में तेरे ब्रज में रह सकूँ तो मुझे कोई अधिकार भी नहीं कि जिसके भाग्य में ब्रज की धूल लिखी है उसे दूर कर सकूँ.
दूकानदार ने देखा तो वो नजदीक आया, महाराज चीटें लग गए तो कोई बात नहीं आप दूसरी मिठाई तौलवा लो. संत ने कहा, भईया मिठाई में कोई कमी नहीं थी. इन हाथों से पाप होते होते रह गया उसी का प्रायश्चित कर रहा हूँ. दुकानदार ने जब सारी बात जानी तो उस संत के पैरों में गिर पडा. वो भावुक हो गया और जोरशोर से रोने लगा. उसे रोते देखकर संत भी रोने लगा.
ये बात निर्मल मन की है. ये बात ब्रज भूमि की मिट्टी की है. ये बात पुण्य भूमि वृन्दावन की है. ये बात श्रीकृष्ण कन्हैया की है. ये बात उनकी राधारानी की है. ये बात श्रीकृष्ण की राजधानी की है. समजो तो बहुत कुछ है. यदि नहीं समजो तो बस एक कहानी है.
आजके बाद कभी भी अपने घर से जब बाहर जाये, तो घर में विराजमान अपने प्रभु से जरूर मिलकर जाएं. आप उन्हें कहे कि आप हमारी रक्षा करें. और जब लौट कर आए तो उनसे जरूर मिले क्योंकि उनको भी आपके घर लौटने का इंतजार रहता होगा.