हिटलर एक बार अपने साथ संसद में एक मुर्गा लेकर गया और उपस्थित सबके सामने उसका एक-एक पंख को नोचने लगा. मुर्गा दर्द से बिलबिलाता रहा मगर, एक-एक कर के हिटलर ने सारे पंख नोच दिये और फिर मुर्गे को ज़मीन पर फेंक दिया.
उसके बाद हिटलर ने जेब से कुछ दाने निकालकर मुर्गे की तरफ फेंक दिया और धीरे-धीरे चलने लगा तो मुर्गा भी दाना खाता हुआ हिटलर के पीछे चलने लगा.
हिटलर बराबर दाना फेंकता गया और मुर्गा बराबर दाना खाता हुआ उसके पीछे चलता रहा, आखिरकार वो मुर्गा हिटलर के पैरों में आ खड़ा हुआ !
हिटलर स्पीकर की तरफ देखा और एक ऐतिहासिक जुमला बोला ……..
“लोकतांत्रिक देशों की जनता इस मुर्गे की तरह होती है, उन के नेता जनता का पहले सब कुछ लूट कर उन्हें अपाहिज कर देते हैं और बाद में उन्हें थोड़ी सी खुराक देकर उनका मसीहा बन जाते हैं.
यह स्थिति हमारे देश की भी है. 2024 के लिए तैयार रहें….बहुत जल्द जनता को दाने फेके जाएंगे !!!
आज स्थिति परिस्थिति ऐसी है की तथाकथित कहे जाने वाले नेता येनकेन प्रकारेण देश को नोंचने में लगे है. ये जानते है कि रिश्वत लेते पकड़ा गए तो रिश्वत देकर छूट जायेंगे. ये वो भेड़िये है जो लोकशाही को शर्मसार करते है. इनका एक ही मकसद है कि सेवा का मुखवटा पहनकर लुटम लूट करते रहो.
इनके काले करतूतों को छुपाने के लिए लेखापाल की भूमिका अहम होती है, ये काले धन से वाइट करने में माहिर होते है. लाख से करोड़, करोड़ से अरब, ब्लैक मनी को कैसे वाइट मनी बनाना है इनको सब पता होता है. यू कहो कि ये अकाउंट भी काली करतूत में सहभागी होते है.
एकबार एक राजा अपने मंत्री के साथ रात्रिचर्या करने निकले. आधी रातको उन्हें रास्ते के किनारे सोया अंध भिखारी को देखा. राजाने आदेश दिया की ये आदमी कलसे भीख नहीं मांगेगा. इसे दरबार की ओर से खाने पिने का बंदोबस्त किया जाय.
दूसरे दिन भिखारी को स्नान आदि कराके खाना पीना दिया गया. दूसरे दिन राजाने कहा की राज्य के वेदाचार्य से इनकी आंख का इलाज किया जाय ताकी वो हमारी तरह दुनिया देख सके.
इसपर मंत्री ने कहा, महाराज इसे अंधा ही रहने दो यदि ये देखता हो गया तो हमारी काली करतूतों को देख लेगा और हमारे खिलाफ बगावत करेंगा ! इसीलिए तो उसको खाना पीना देकर खुश रखो. जिससे वो संतुष्ट रहेगा.
ऐसी ही हालत आज देश की हो चुकी है. हमारे जनसेवक चाहते है कि मतदाताओं को मुर्गी, मटन और मदिरा पिलाकर खुश रखो. उनको दो टंक की रोटी कमाने के लिए उलझाकर रखो. ताकी वें लोग देश के बारेमें ना सोचे. आजादी के बाद यहीं होते आ रहा है.
लोगोंको मंदिर – मस्जिद, हिंदू मुसलमान धर्म में उलझाकर रखो ताकी उनका जमीर जागता रहे और देश के प्रति सोचनेका उनको वक्त ना मिले.
पॉलिटिक्स आजकल बिज़नेस बन गया है. पहले पैसे इन्वेस्ट करो फिर जितने के बाद ब्याज सहित वसूल करो. ये प्रथा कब रुकेगी ? हमारे शास्त्र तो कहते है कि पृथ्वी लोग पर यदि भगवान भी जन्म लेता है तो उसे अपने गलत कर्मो की सजा ये जन्म नहीं तो अगले जन्म में भुगतनी पडती है.
श्री विष्णु के अवतार प्रभु श्री राम जी ने त्रेता युग में बालि का वध करके
जो गलती की, वो श्री विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ने उसकी सजा द्वापर युग में
जरा नामक बहेलिए के तीर से हुई मृत्यु से पुरी की थी.
फिर मानव इससे अछूता कैसे रह सकता है ? अरबों की मिलकत बनाने वालों सुधर जाओ, वर्ना आज भले लूटो, कमाओ, आने वाले जन्म में निश्चित वापस लौटाना है. आदमी पैसों से बड़ा नहीं होता, संस्कार से बड़ा होता है और संस्कार पैसों से ख़रीदा नहीं जा सकता.