करणी माता मंदिर बीकानेर (सफेद चुहोंका आश्रय स्थान)

करणी माता मंदिर बीकानेर.

आपने कभी चूहों का मंदिर देखा है ? अगर देखना हो तो आपको राजस्थान के बीकानेर जिले में स्थित करणी माता का मंदिर जाना होगा. यह चमत्कारिक मंदिर बीकानेर से करीबन 30 की. मी. की दुरी पर दक्षिण दिशा में देशनोक में स्थित है. ये एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है. इस मंदिर में माता करणी जी की मूर्ति स्थापित की गई है. 

       इस करणी मंदिर में करीब बीस हजार सफेद चूहें रहते है. अतः इसे चूहों का मंदिर भी कहां जाता है. श्रद्धालु ओकी मान्यता के अनुसार यहांपर सफेद चूहों का दर्शन होना शुभ माना जाता है. चूहा इसीलिए पूजनीय है कि यह श्री गणेश जी का वाहन भी है. मंदिर प्रांगण में चूहें यहां घूमते दिखाई देते है. यह चूहें माता जी के भक्तों के साथ खेलते है पर किसीको बिलकुल नुकशान नहीं करते है. 

        यहां पर चील , गिद्ध और अन्य हिंसक प्राणियों से चूहों को बचाने, तथा उनकी रक्षा के लिये मंदिर में खुली जगह पर बारीक जाली लगाई गई है. यहांपर सफेद चूहोका दर्शन होना शुभ माना जाता है. सुबह पांच बजे मंगला आरती होती है, तथा शाम को रोज सात बजे आरती होती है उस समय यहां पर चूहों का जमावड़ा प्रेक्षणीय होता है. 

         मंदिर के मुख्य द्वार पर संगमरमर पर सुंदर नक्काशी देखनेको मिलती है. चांदी के किवाड़, सोने के छत्र और चूहों (काबा) के प्रसाद के लिए यहां रखी चांदी की बड़ी परात भी देखने लायक है. मुख्य दरवाजा पार करके मंदिर के भीतर पहुंचते ही चूहों का जमावड़ा देखनेको मिलता है. यहां पर चूहों को बचाते चलना पड़ता है. पैदल चलने के लिए अपना अगला कदम उठाकर नहीं, बल्कि जमीन पर घसीटते हुए आगे रखना होता है. ताकि चूहें पैर के निचे नहीं दब जाये. श्रद्धालु लोग इसी तरह कदमों को घसीटते हुए ,करणी माता जी की मूर्ति के सामने पहुंचते हैं. 

      करणी माता मंदिर का निर्माण बीकानेर के महाराजा श्री गंगा सिंह ने राजपूत शैली में लगभग 15 से 20 वीं सदी में करवाया था. मन्दिर के सामने महाराजा गंगा सिंह ने चांदी के दरवाजे भी बनाए थे. देवी माता की छवि अंदरूनी गर्भगृह में निहित है. मन्दिर में 1999 में हैदराबाद के श्री कुंदन लाल वर्मा ने भी कुछ मन्दिर का विस्तार किया था.

        करणी देवी को साक्षात मां जगदम्बा का अवतार माना जाता है. आजसे करीब साढ़े छह सौ वर्ष पूर्व जिस स्थान पर यह भव्य मंदिर है, वहां एक गुफा में रहकर माता करणी माँ अपने इष्ट देव की पूजा अर्चना करती थीं. यह गुफा आज भी मंदिर परिसर में स्थित है. मां के ज्योर्तिलीन होने पर उनकी इच्छानुसार उनकी मूर्ति की इस गुफा में स्थापना की गई थी. जानकारों का मानना है कि मां करणी के आशीर्वाद से ही बीकानेर और जोधपुर राज्य की स्थापना हुई थी. देशनोक की करणी माता को बीकानेर राजघराने की कुलदेवी मानते हैं. 

      माता करणी जी ता : 20 सितंबर 1387 के दिन सुआप (जोधपुर) में चारण परिवार मेहाजी किनिया के घर प्रकट हुई थी. उनकी माता का नाम देवल था. उन्होंने जांगल प्रदेश को अपनी कार्यस्थली बनाया था. माता करणी जी ने राव बीका जी को जांगल प्रदेश में राज्य स्थापित करने का आशीर्वाद दिया था. उन्होंने मानव मात्र एवं पशु-पक्षियों के संवर्धन के लिए देशनोक में दस हजार बीघा पशुओं की चराई का स्थान ओरण की स्थापना की थी. कहते है करनी माता 151 वर्ष जिन्दा रहकर ता : 23 मार्च 1538 के दिन ज्योतिर्लिन हुई थी.

        करणी माता ने पूगल के राव शेखा को मुल्तान (वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित) के कारागृह से मुक्त करवा कर उसकी पुत्री रंगकंवर का विवाह राव बीका से संपन्न करवाया था. करणी जी की गायों का चरवाहा दशरथ मेघवाल था. डाकू पेंथड़ और पूजा महला से गायों की रक्षार्थ जूझ कर दशरथ मेघवाल ने अपने प्राण गवां दिए थे. करणी माता ने डाकू पेंथड़ व पूजा महला का अंत कर दशरथ मेघवाल को पूज्य बनाया जो सामाजिक समरसता का प्रतीक है. 

        करणी माता राठौडों (चारणों) की कुल देवी है.करणी माता के मंदिर में सफेद चूहे काबा कहां जाता है. चारण समाज के लोग इन चूहों को अपना पूर्वज मानते है.गोधन पर आक्रमण करने वाले राव कान्हा का इन्होंने वध किया और भय के मारे मांग खाने वाले चारणों को इन्होंने चूहा बनने का शाप दे दिया था.कहा जाता है कि करणी माता के मंदिर में चूहों की संख्या इसी कारण है.

      ऐसी मान्यता है कि यदि पूजा करते समय किसी व्यक्ति के सिर पर चूहा चढ जाता है तो शुभ माना जाता है. करणी माता के बचपन का नाम रिद्धिबाईं था. इनका शुभ विवाह साठीका गाँव के चारण बीठू केलु के पुत्र देपाजी बीठू के साथ हुआ था. किन्तु भोग-विलास से विरक्त होते हुए उन्होंने पति को समझाया और अपने पति का विवाह अपनी दूसरी बहन गुलाब कुँवरी से करवाकर स्वयं देशनोक के नजदीक नेहडी नामक स्थान पर रहने लगी थी. 

         मां करणी मंदिर तक पहुंचने के लिए बीकानेर से बस, जीप व टैक्सियां आसानी से मिल जाती हैं. बीकानेर-जोधपुर रेल मार्ग पर स्थित देशनोक रेलवे स्टेशन के पास ही है. साल में दो बार नवरात्रों पर चैत्र व आश्विन माह में इस मंदिर स्थित विशाल मेला का आयोजन किया जाता है. इस अवसर पर बडी भारी संख्या में लोग यहां आते है. श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए मंदिर के पास धर्मशालाएं भी बनाई गई है. 

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