कलाकारी का प्रतिक बहुरुपिया| Bahurupiya

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            बहुरुपिया का मतलब नक़ल करने वाला. एक से ज्यादा अलग अलग रूप धारण करने वाला. अपना पेट पालनेके लिये कई लोग बहुरुपिया बनकर, लोगोंको अपना करतब दिखाकर मनोरंजन करते है. 

      भाईंदर की बात करें तो सत्तर – अस्सी के दशक मे यहां पर कई बहुरुपिया आते थे. जो  रोज अपना नया नया रूप धारण करके लोगों को अपनी कला कारीगरी प्रस्तुत करते थे. 

         कभी वो श्री बजरंग बलि बनते थे, तो कभी पोस्टमैन या फिर पुलिस. कभी शंकर भगवान बनके आते थे तो कभी महिला का रूप लेकर. और लोगोंको अपनी कला कारीगरी दिखाते थे.  छोटे बच्चे शोर मचाकर उनके पीछे पीछे दौड़ते थे. सात – आठ दिनके बाद अंतिम दिन पैसा वसूलने के लिये निकलते थे और कदरदान लोग भी उनकी, कला की कदर करके, उनको खुशी ख़ुशी से यथा शक्ति पैसे देते थे. 

        पुराने जमाने मे राजा महाराजा के समय मे बहुरुपिया का इस्तेमाल जासूसी के लिये किया जाता था. एक राजा दूसरे राजा की जासूसी करने बहुरुपिया को भेजते थे. और वे बखूबी से अपना कार्य करके वापिस लौट आते थे. जिसके आधार पर राजा अपनी रणनीति बनाते थे. 

      बहुरुपिया अपनी कला कौसल्यसे से गुप्त बातोंको अपने राजा तक पहुंचाते थे. ये बहुरूपिये कला कारीगरी मे माहिर होते थे, उनकी कलासे ये लोग राजा को प्रसन्न करते थे, और राज्य मे घूमकर जासूसी भी करते थे. 

       आज जमाना बदल गया है. आज तो नकली बहुरुपिया भी घूमते नजर आते है. जो पुलिस की वर्दी पहनकर डरा धमकाकर पैसे इकठ्ठे करते है.  कई लोग पुलिस समजकर उन्हें पचीस – पचास रुपये डरकर दे देते है. और जब उनको असलियत का पता चलता है तो पछतावा करते है…! 

        “बहुरूपिया” भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल का पारम्परिक कला प्रदर्शन के संस्कृति का एक अहम भाग है. मगर आज यह कलाकारों का कहना है कि समाज में रूप बदल कर जीने वालों की तादाद बढ़ गई है. अतः बहरूपियों की कद्र कम  होते जा रही है.

          बहुरुपिया कलाकारों में हिंदू और मुसलमान दोनों धर्म के लोग होते है मगर ये लोग कला को मज़हब की बुनियाद पर कभी विभाजित नहीं करते. मुसलमान बहरूपिया का कलाकार हिंदू प्रतीकों और देवी-देवताओं का रूप धारण करने में परहेज नहीं करते  तो हिंदू भी पीर, फ़कीर या फिर बादशाह बनने में भी संकोच नहीं करते है. 

          कई कलाकार को  तो ये कला विरासत मे मिली है, मगर उनकी नयी पीढ़ी का कहना है की इस कला की न तो कोई कद्र करता है और ना ही इसका कोई भविष्य है.’ ये बात अलग है की राजाओं के समय में उन लोगोंकी बड़ी इज़्जत होती थी. बहोतसे  बहरूपिया कलाकार बड़े मंचो से दूर रहते हैं. और छोटे गांव या फ़ुटपाथ पर अपना मजमा लगाते हैं और लोगों का मनोरंजन करते हैं.

       दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र मे ” राष्ट्रीय बहुरुपिया उत्सव ” मनाया जाता है. जिसमे देश भरसे अनेकों बहुरुपिया आकर अपनी कलाकारी का करतब दिखाते है. 

बहरूपिया के 52 रूप बताये जाते है. बहरूपिया कलाकार, बस्तियों में जाकर भाईचारे का संदेश फैलानेका का काम भी करते है. नए नए रूप धारण करने के चलन का ज़िक्र महा काव्य महाभारत में भी है. महाभारत में भगवान कृष्ण के कई रूप धारण करने की बात है और उन्हें प्यार से छलिया भी कहा गया है.       

           पुराने ज़माने मे जब ये बहुरुपिया जिस क्षेत्र मे आते थे तो वहांकी लोकल पुलिस स्टेशन को विश्वास मे लेते थे, ताकि गलत फेमी ना हो  आज मुंबई – भाईंदर की बात करें तो  ये किसी के भी  दरवाजे पर खड़ा रह जाते है, और चंदा की डिमांड करते है. अब समय आ गया है की ऐसे लोगोंको स्थानीय अथॉरिटी की परवानगी लेना जरुरी कर देना चाहिए ताकि कोई अप्रिय घटना ना हो. 

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                       शिव सर्जन प्रस्तुति.

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