श्री मदन मोहन जी को कविता लिखना ओर उसे पढ़ने का बड़ा शौख था. पास मे नदी किनारे एक मंदिर था. वहां रोज जाकर बैठता था और कविता लिखते रहता था.
एक दिन उसकी नजर एक खूबसूरत युवती के उपर पड़ी जो नदी किनारे कपडे धो रही थी. दोनों की नजर मिली और दोनों एक दूसरे को प्यार से देखते रहे.
कपड़ा धोनेके बाद वो मुस्कुराते हुई श्री मदन मोहन के पास आयी और बोली क्या देख रहे हो ? श्री मोहन मदन आंखों से आंख मिलाकर बोला, आपकी सुंदरता को देख रहा था . आप बहोत ही सुंदर दिखती हो.
उसपर वो मुस्कुराकर बोली आप ही कवि मदन मोहन हो ना ? कहकर मुस्कुराते हुए चली गयी. मदन मोहन उस युवती की सुंदरता पर मोहित हो गया था. अब वो कविता लिखनेके बहाने मंदिर जाता था, और वो नव यौवन युवती के आनेकी राह देखकर मंदिर जाकर बैठे रहता था.
ये सिलसिला कई दिनों तक चला. वो युवती भी कपडे धोते मदन की तरफ देखते रहती थी. आज वो सज धज के आयी थी. अतः उसकी खूबसूरती मे चार चांद लग रहे थे.
जैसे ही वो सुंदर युवती कपड़ा धो कर घर जाने निकली तो श्री मदन मोहन भी पीछा करते उसके पीछे पीछे जाने लगा.
कुछ देर चलने के बाद उसका घर आया. तो वो युवती ने दरवाजा खटखटाया. अंदर से उसका पति ने दरवाजा खोला, मदन मोहन को देखते ही वो अतियंत खुश हुआ और पधारो मदनजी कहकर घर के अंदर अनेकों कहा. दोनों पति पत्नी ने मदन की महेमान नवाजी की. अब श्री मदन मोहन को शर्मिंदगी महसूस हुई. दोनों पति पत्नी मदनजी की कविता से प्रभावित थे. देखकर मदन जी को बहोत दुःख हुआ. वहासे घर लौटने के बाद दो शलाखा गरम करके अपनी आंख मे घुसाकर दोनों आंखे फोड़ दी.
यहीं श्री मदन मोहन आगे चलकर कवि श्री सूरदास के नामसे भारत भर मे प्रसिद्ध हो गया. श्री सूरदास के बारेमें इतिहासकारो का अलग अलग भिन्न अभिप्राय है. कोई उसे जन्मांध मानते है तो कोई उपरोक्त कहानी मे मानते है.
कुछ लोगोंका मानना है की जन्म से अंधा आदमी इतनी सुंदर कविता नहीं लिख सकता.
जो भी हो मगर कवि श्री सूरदास जी के अनेकों कविता संग्रह उनकी याद दिलाती रहेगी. कवि श्री सूरदास हिंदी साहित्य के महाकवि थे.वे प्रभु श्री कृष्ण के अनन्य उपासक और ब्रजभाषा के श्रेष्ठ कवि थे. सूरदास ने सर्व प्रथम ब्रज भाषा को साहित्यिक रूप दीया था.
श्री सूरदास का जन्म ईसवी सन 1478 मे एक निर्धन सारस्वत ब्राह्मण पंडित रामदास के परिवार मे रुनकता नामक गावमे हुआ था. उनकी माता का नाम जमुनादास था. पिता रामदास गायक था.मथुराकी पावन भूमि के बिच गऊघाट पर उनकी भेट श्री वल्लभाचार्य से हुई और उनके शिष्य बन गये. सूरदास अकबर के दरबार मे संगीतज्ञ थे.
सूरदास ने वाल्सल्य, श्रृंगार , और शांत रसो को मुख्य रूप से अपनाया था. श्री कृष्ण की बाल लीला का बखूबी से चित्रण किया था. महान कवि सूरदास की मृत्यु गोवर्धन के निकट पारसौली ग्राम मे ईसवी सन 1583 मे हुई थी.
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शिव सर्जन प्रस्तुति.