कौआ बड़ा चतुर पक्षी है.
उसकी प्रसिद्ध कहानी……
” कौआ बड़ा प्यासा था, घड़े मे पानी थोड़ा था.
कौए ने डाले कंकर , पानी आया ऊपर,
कौआ पी गया पानी, ख़तम हुई कहानी !.”
कौए की यह कहानी बच्चों मे बड़ी फेमस है.
कौआ काले रंग का होता है. प्रथम दृस्टिकोण से देखे तो उसकी दो आंखे होनेका ज्ञात होता है, मगर वो एक ही बाजूकी आंख से देख पाता है. बारीकी से निरीक्षण करो तो पता चलेगा की अन्य पक्षी की तरह वो दाहिने – बाये दो आंख से एक साथ नहीं देख सकता. वो तेजी से आंख को घुमा-पलक कर दाये – बाये की चीज देख लेता है.
कुछ लोगोंमे ऐसी मान्यता हे कि मनुष्य मरने के बाद कौए की योनि मे जन्म लेता है. इसीलिए पितृओ के श्राद्ध के समय कौए को खिला पिलाकर मस्त रखा जाता है. पितृ पक्ष मे कौए की कीमत बढ़ जाती है. साल भर गंदगी मे खाना ढूंढने वाले को पंच पकवान नशीब होता है.
कुछ समुदाय मे मरने वाला आदमी दारू पिता होगा तो कौए के लिए भी प्याली मे दारू परोसा जाता है ! उस समय कौए का आकर बैठना शुभ माना जाता है.
कौआ मासाहारी और शाकाहारी भी होता है. जो मिला सो खाओ मे मानता है. कीड़े , मकोड़े, और गंदगी खाकर कौआ पर्यावरण की रक्षा करता है.दुनिया मे कौए की करीब 40 प्रकारकी छोटी मोटी जाती है. कौआ करीब 8 से 15 साल तक जी शकता है.
कौआ अगर घरके पानीके भरे बर्तन पर बैठता हे तो उसे शुभ माना जाता है. और धन बरसने का संकेत देता है. अगर घर के छत पर बैठकर बोलता है तो महेमान आनेका संकेत देता है.
उल्लू और कौआ की जानी दुश्मनी है. अगर दिखाई दे तो एक दूसरे झपट कर पर टूट पड़ते है. और भगा देते है. अर्टेंटीका के शिवाय दुनिया भर मे सभी जगह कौए की विविध जाती दिखाई देती है. कौआ भैंस के उपर बैठकर जीव जंतु खाता है. कौआ एक जगह स्थिर होकर नहीं बैठता है, वो एक खम्भे से दूसरे खम्भे पर उड़ते रहता है.
बारिस से पहले कौआ पेड़ पर या चट्टान पर अपना माला ( घोसला ) बना लेता है. कौआ की आवाज कर्कश होती है.
कौए को गुजराती मे कागड़ा, मराठी मे कावला , अंग्रेजी मे क्रो , और हिंदी मे कौआ कहा जाता है.
रामायण मे सीता माता को चोंच मारने की कहानी का जिक्र किया गया है. वैसे कौआ को बुद्धिशाली पक्षी माना जाता है.वो अति चतुर, चालक और खुराक की शोध मे इधर उधर भटकते रहता है.
कौआ के बारेमे सेकड़ो कहानियाँ लिखी गयी है. जो मानव समुदाय को शिख देती है.
हिंदी फ़िल्म जगत और बाल नीति गीतों मे भी कौए के बारेमे अनेको गीत लिखें गए है. जैसे की, ” उड़ जा काले कौआ.”…. ग़दर. ” एक कौआ प्यासा था..” बाल गीत.
मान्यता है की एक ऋषि के श्राप की वजह से कौआ का रंग काला हुआ है, इससे पहले कौए सफ़ेद हुआ करते थे.
श्राद्ध मे अनुष्ठान को पूरा करने के लिए कौआ की जरुरत पड़ती है. मान्यता हे की यदि कौआ जब तक भोजन नहीं करता है तब तक कार्य सिद्धि को प्राप्त नहीं होता है.
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शिव सर्जन प्रस्तुति.