ब्रिटिश सरकार ने तारीख : 18 मार्च 1919 के दिन भारत में उभर रहे राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलने के उद्देश्य से कुख्यात रॉलेट एक्ट पारित किया था. इस कानून के तहत पुलिस किसी भी व्यक्ति को कारण बताए बीना कभी भी गिरफ्तार कर सकती थी.
रॉलेट एक्ट भारत में राज कर रही ब्रिटिश सरकार द्वारा ” सर सिडनी आर्थर टेलर रॉलेट ” की अध्यक्षता वाली सेडिशन समिति की शिफारिशों के आधार पर बनाया गया था.
” रॉलेट ” एक्ट को काला कानून इसलिए कहा गया है क्योंकि इस कानून के द्वारा कार्यपालिका को षड्यत्रों तथा अपराधों को दबाने के लिए इतनी अधिक शक्तियां दी गई कि नौकर शाही किसी भी आंदोलन को कुचल सकते थे. इस कानून को “न दलील, न अपील, न वकील ” भी कहा जाता है.
रॉलेट एक्ट का सरकारी नाम अराजक और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम, 1919 (The Anarchical and Revolutionary Crime Act of 1919 ) था. इसकी मुख्य बातें निम्नलिखित थी :
सर सिडनी रौलेट
(1) ब्रिटिश सरकार को यह अधिकार प्राप्त हो गया था कि वह किसी भी भारतीय पर अदालत में बिना मुकदमा चलाए उसे जेल में बंद कर सके. इस क़ानून के तहत अपराधी को उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करने वाले का नाम जानने का अधिकार भी समाप्त कर दिया गया था.
(2) राजद्रोह के मुकदमे की सुनवाई के लिए एक अलग न्यायालय स्थापित किया जाना चाहिए.
(3) मुकदमे के फैसले के बाद किसी उच्च न्यायालय में अपील करने का अधिकार नहीं होना चाहिए.
(4) राजद्रोह के मुकदमे में जजों को बिना जूरी की सहायता से सुनवाई करने का अधिकार होना चाहिए.
(5) सरकार को यह अधिकार होना चाहिए कि वह बलपूर्वक प्रेस की स्वतंत्रता का अधिकार छीन ले और अपनी इच्छा के अनुसार किसी व्यक्ति को कारावास दे या देश से निष्कासित कर दिया जाय.
वास्तव में क्रांतिकारी गतिविधियों को कुचलने के नाम पर मौजूदा ब्रिटिश सरकार भारतीयों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को समाप्त कर देना चाहती थी. इस कानून द्वारा वह चाहती थी कि भारतीय किसी भी राजनीतिक आंदोलन में भाग न ले.
इस कानून से महात्मा गांधी जी बड़े खिन्न नजर आये. उन्होंने इस आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया. चंपारण, खेड़ा, अहमदाबाद में अपनाए गए सत्याग्रह रूपी हथियार का प्रयोग एक बार फिर उन्होंने ” रॉलेट एक्ट ” के विरोध में करने का निश्चय किया.
रॉलेट एक्ट का विरोध पूरे देश में प्रारंभ हो गया. मोहम्मद अली जिन्ना और मदन मोहन मालवीय ने इसके प्रतिवाद में केंद्रीय व्यवस्थापिका के सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया. इस कानून को भारतीयों ने काला कानून कहा. इस कानून के विरोध में देशव्यापी हड़तालें, जूलूस और प्रदर्शन होने लगे.
रॉलेट एक्ट गांधीजी के द्वारा किया गया राष्ट्रीय लेवल का प्रथम आंदोलन था.ता : 24 फरवरी 1919 के दिन गांधीजीने मुंबई में एक “सत्याग्रह सभा” का भव्य आयोजन किया, और इसी सभा में तय किया गया और कसम ली गई की ” रॉलेट एक्ट ” का विरोध ‘सत्य’ और ‘अहिंसा’ के मार्ग पर चलकर किया जाएंँगा. गांधीजी के इस सत्य और अहिंसा के मार्ग का विरोध भी कुछ सुधारवादी नेताओं की ओर से किया गया था, जिसमें सर श्री डि.इ.वादी, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, तेज बहादुर सप्रु, श्री निवास शास्त्री जैसे नेता शामिल थे. किन्तु गांधीजी को बड़े पैमाने पर होमरूल लीग के सदस्योंका समर्थन मिला था.
इस हड़ताल के दौरान दिल्ली आदि कुछ स्थानों पर भारी हिंसा हुई. इस पर गांधी जी ने सत्याग्रह को वापस ले लिया और कहा कि भारत के लोग अभी भी अहिंसा के विषय में दृढ रहने के लिए तैयार नहीं हैं.
उसके पश्चात तारीख 13 अप्रैल 1919 के दिन सैफुद्दीन किचलू और सत्यपाल की गिरफ्तारी के विरोध में जलियाँवाला बाग में लोगों की भीड़ इकट्ठा हुई. अमृतसर में तैनात फौजी कमांडर जनरल डायर ने उस भीड़ पर अंधाधुंध गोलियाँ चलवाईं. वहां पर उपस्थित हजारों निर्दोष लोग मारे गए. इस भीड़ में महिलाएँ और बच्चे भी थे. यह घटना ब्रिटिश हुकूमत के काले अध्यायों में से एक थी. जिस घटनाको जालियाँवाला बाग हत्याकांड के नाम से जाना जाता है.
ब्रिटिश सरकार द्वारा कठोरता बरते जाने के कारण अंग्रेजी शासन के खिलाफ भारतीय जनता में तीव्र असंतोष पनप रहा था. देश भर में उग्रवादी घटनाएं हो रही थीं. इस असंतोष को कुचलने के लिए अंग्रेजी सरकार रौलट एक्ट लेकर आई थी.
*** रॉलेट एक्ट समय भारत का वायसराय लार्ड कैनिंग था.
*** जलियांवाला बाग हत्याकांड के समय भारत का वायसराय लॉर्ड चेम्स्फोर्ड था.
*** भारत के स्वतंत्रता के समय गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबेटन थे.
यह थी रॉलेट एक्ट की जानकारी. आपको जरूर पसंद आयी होंगी.
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