खास करके हमारे घरों में लोग एक मुहावरे का इस्तेमाल करते हैं, कि “रत्ती भर”. यह शब्द हर जगह कहीं न कहीं सुनने को मिलता है. आपने भी कभी इस शब्द का इस्तेमाल किया होगा. या बहुत लोगों के जुबान से सुना भी होगा. कभी किसी पर गुस्सा आता है तो हम कह देते हैं कि तुम्हें तो रत्ती भर भी शर्म नहीं आई ? लेकिन क्या आपने इस रत्ती का मतलब जानने की कोशिश कि है ?
रत्ती एक प्रकार का पौधा है. और रति के दाने काले और लाल रंग के होते हैं. यह पक जाने के बाद पेड़ों से स्वयं गिर जाता है. रत्ती को गुंजा भी कहा जाता है. गुंजा का पेड़ लता के समान होता है, इसकी हरी पत्तियां इमली की पत्तियों के समान होती हैं.
रत्ती के पेड़ की जड़, पत्तियां और इसके फलों का प्रयोग औषधि के रूप में किया जाता है. रत्ती के पेड़ के बीजों का प्रयोग वशीकरण और नजर उतारने के लिए भी किया जाता है. रत्ती के बीज जहरीले होते हैं. इसलिए इस बीजों का प्रयोग करने से पहले बीजों को शुद्ध करके इनका उपयोग करना चाहिए.
रत्ती के बीज मटर के दाने के समान रहते हैं. इसके बीज देखने में बहुत सुंदर लगते हैं. इसके बीज कोई रत्न या मोती जैसा लगता है. इसके बीजों को पिरो कर माला बनाई जाती है. रत्ती के बीज बहुत ठोस होते हैं. रत्ती के बीज का एक जैसा भार रहता है.
रत्ती के बीज कितने भी पुराने हो मगर इनका भार हमेशा समान रहता है. यह बहुत ही विस्मय जनक है, मगर यह बात सच है. पुराने जमाने में, जो जोहरी लोग रहते थे. वह इन बीजों का प्रयोग सोना को तोलने के लिए करते थे. एक रत्ती, दो रत्ती, इस तरह से सोना को तोला जाता था. एक रत्ती का लगभग वजन 0.121497 ग्राम होता है. गुंजा के बीज , तंत्र मंत्र में भी उपयोग किए जाते हैं.
रत्ती को अंग्रेजी में CORAL BEAD
हिन्दी मेंइसे गुंजा, चौंटली, घुंघुची, रत्ती कहा जाता है. संस्कृत में इसे सफेद केउच्चटा, कृष्णला,रक्तकाकचिंची कहा जाता है. बंगाली में श्वेत कुच, लाल कुच तथा मराठी में गुंज व गुजराती भाषा में इसे धोलीचणोरी, राती, चणोरी कहते है. तेलगू में गुलुविदे, फारसी भाषा में चश्मेखरुस, राजस्थानी में चिरमी कहा जाता है.
ज्यादातर इसे पहाड़ों में ही देखा जाता है. रति के पौधे को आम भाषा में ” गूंजा ” कहा जाता है. यदि आप इसके अंदर देखेंगे तो इसमें मटर जैसी फली में दाने होते हैं.
प्राचीन काल में या पुराने जमाने में कोई मापने का सही पैमाना नहीं था. इसी कारण से रत्ती का इस्तेमाल सोने या किसी जेवरात के भार को मापने के लिए किया जाता था. रत्ती को सोना या मोती माप के चलन की शुरुआत मानी जाती है. और यह भारत में ही नहीं पर पूरे एशिया महाद्वीप में होता रहा था.
कई लोगों “रत्ती” को अंगूठी बनके या कुछ लोग माला बनाकर इसे पहनते हैं. ऐसा माना जाता है कि यह एक सकारात्मक ऊर्जा को उत्पन्न करता है. आपको यह जानकर बहुत ही आश्चर्य होगा कि इसकी फली की आयु कितनी भी क्यों ना हो, लेकिन जब आप इसके अंदर के बीजों को लेंके वजन करेंगे तो हमेशा यह एक समान ही होता है. इसमें 1 मिलीग्राम का भी फर्क कभी नहीं पड़ता है.
वैज्ञानिको ने बनाई मशीन पर तो कभी-कभी भरोसा उठ भी जाए और यंत्र से गलती हो भी जाए लेकिन इस पर आप आंख बंद करके विश्वास कर सकते हैं. प्रकृति द्वारा दिए गए इस रत्ती नामक पौधे के बीज की रत्ती का वजन कभी इधर से उधर नहीं होता है.
लाल गुंजा के बहुत से लाभकारी उपयोग भी हैं.यदि किसी व्यक्ति,बालक या संस्थान को बुरी नजर लग जाती है, तो पांच गुंजा या 11 गुंजा लेकर उनके ऊपर से पांच बार उल्टा उतारें और बाहर किसी अंगारी या कपूर पर जला दें. तीन दिन लगातार शाम के समय करें. बुरी से बुरी नजर भी उतर जाएगी.
रत्ती के बीजों से वशीकरण भी किया जाता है. यह सब अंधविश्वास की बातें हैं. पर प्राचीन समय में लोग इनका उपयोग किया करते थे. आज के समय में रत्ती के बीजों का उपयोग माल और ब्रेसलेट बनाने में किया जाता है, जो बहुत सुंदर लगते हैं. रत्ती के बीज को अपने पास रखने से धन में बरकत होती है. इसलिए कई लोग गुंजा की माला पहनते है.
धन आकर चला जाता है और बरकत नहीं होती तो आप 10 ग्राम सफेद गुंजा लेकर सफेद कपड़े में बांधकर उत्तर की दीवार पर टांग दें या किसी कांच की कटोरी में रख दें अथवा अपने घर की छत पर किसी बड़े गमले में सफेद गुंजा को उगा सकते हैं. इससे लक्ष्मी कुबेर आकर्षित होते हैं और घर में धन वृद्धि होती है.
विशेष टिप्पणी :
यहां साझा की गई जानकारी केवल सामान्य ज्ञान के लिए दी है. किसी भी जड़ी-बूटी का मंत्र तंत्र में उपयोग करने या सेवन करने से पहले आयुर्वेदिक चिकित्सक या विशेषज्ञ से ज़रूर सलाह लेनेका अनुरोध किया जाता है.