के. एल. सहगल – बीते दिनोंका गायक.

saighal

कुंदन लाल सहगल भारतीय सिनेमा के लोकप्रिय गायक और अभिनेता थे.

उनको बॉलीवुड के पहले सुपर स्टार के रूपमें जाना जाता है. सहगल का जन्म जम्मू में हुआ था, जहां उनके पिता जी अमरचंद सहगल जम्मू और कश्मीर के राजा की अदालत में तहसीलदार थे.

उनकी मां केसरबाई सहगल एक गहरी धार्मिक हिंदू महिला थीं जिन्हे संगीत बहुत पसंद था.

उनको लोग , के. एल. सहगल के नामसे पहचानते थे. सहगल का फिल्मी करियर बहुत ही छोटा रहा था. लेकिन उनकी आवाज,अभिनय और संगीत को भुलाया नहीं जा सकता. उनका जन्म ता : 11 अप्रेल 1904 के दिन हुआ था. अपने छोटे से जीवन और फिल्मी की कारकिर्दी में उन्होंने लगभग 36 फिल्मों में काम किया था. सन 1932 से लेकर 1946 के समय को “सहगल एरा” कहा जाता हैं. उन्होंने हिंदी और बंगाली को मिलाकर 185 गाने गाये थे.

सहगल के पिता अमरचंद और केसर बाई के कुल 5 बच्चे थे जिनमे से चौथे नंबर पर कुंदन थे . उनकी माता एक धार्मिक महिला थी जो अपने बच्चे को भजन,कीर्तन और शबद गुरुबानी सुनने को ले जाती थी, वहीँ से कुंदन लाल का रुझान संगीत की तरफ हुआ.

उनकी पहली फिल्म सन 1932 में उर्दू भाषा में आई थी , जिसका नाम “मोहब्बत के आंसू” था इसके बाद इसी साल उनकी 2 और फ़िल्में “ सुबह का सितारा ” और “जिदा लाश ” आयी थी. सन 1933 में रिलीज हुईं , ” यहूदी की लड़की ” (के एल सहगल की पहली हिट फिल्म ) थी.

उनकी अन्य फ़िल्म :

1933 — राजरानी मीरा

1933 — पुराण भगत

1933 — दुलारी बीबी

1934 – डाकू मंसूर

1934 — मोहब्बत की कसौटी.

1934 — चंडीदास

1935 – कारवां

1935 — देवदास (बंगाली)

1935 — देवदास (पहली सुपरहिट)

1936 — पुजारिन

1936 — करोडपति

1937 – दीदी (बंगाली)

1937 – राष्ट्रपति उर्फ बादी बाहेन

1938 – स्ट्रीट सिंगर

1938 – साथी

1938 – धरती माता

1938 – देसर माती (बंगाली)

1939 – दुश्मन

1940 – जिंदगी

1941 — परिचय

1941 – डूबा हुआ जहाज़

1942 – भक्त सूरदास

1943 – तानसेन

1944 – मेरी बहन

1944 – भँवरा

1945 – तदबीर

1945 — कुरुक्षेत्र

1946 – शाहजहां सोहेल

1946 -उमर खैय्याम

1947 -परवाना

आदि फिल्मों में उन्होंने अभिनय किया था.

सहगल जब सफलता के शिखर पर थे तब सन 1935 में उन्होंने आशा रानी जी के साथ विवाह कर लिया था. शादी के बाद उनके 3 बच्चे हुए जिनमे से 2 पुत्रिया में (1) नीना और (2) बीना ने जन्म लिया और उनको एक पुत्र हुआ जिसका नाम मदन मोहन रखा था.

शुरू में सहगल जी ने राम लीला में अभिनय किया और गाने गाये. इसके बाद कुछ समय सूफी संत सलामत युसूफ के यहाँ भी बिताया जहाँ उन्होंने अन्य संगीतकारों और भक्तों के साथ कुछ गानों का अभ्यास किया.

गाना सीखने के अलावा भी उन्होंने बहुत से काम किये थे. स्कूल छोड़ने के बाद उन्होंने कुछ समय तक रेलवे स्टेशन पर समय का रिकॉर्ड रखने वाले का भी काम किया. उसके बाद टाइपराइटर बेचने का काम किया, इस पेशे ने उन्हें पूरे देश के भ्रमण का मौका दिया.

वो जब यात्रा में होते थे तब वो कुछ गाते या गुनगुनाते रहते थे. ऐसे में वो कुछ लोगों को इक्कठा कर लेते थे और उनके सामने गीत गुनगुनाते थे, इस कारण उन्हें बहुत से लोगों से मिलने का मौका मिला. ऐसे ही एक बार लाहौर की यात्रा में उन्हें मेहर चंद जैन मिले जो कि बाद में उनके बहुत अच्छे दोस्त और सपोर्टर बन गए.

यात्रा के दौरान ही उन्हें न्यु थिएटर के फाउंडर बी-एन सिरकार भी मिले. यह कहा जाता है कि सिरकार ही वो व्यक्ति थे जो सहगल को कलकत्ता ( वर्तमान कोलकाता ) लेकर आए थे.

कलकत्ता में सहगल के म्यूजिक को एक नयी दिशा मिली. हालांकि उस समय वो होटल मेनेजर की तरह काम कर रहे थे. लेकिन उनकी रूचि म्यूजिक में बनी हुई थी. वो महफिलों में जाते रहते थे.

सहगल के जमाने में बोलने वाली कई फ़िल्म भी बननी शुरू हो चुकी थी. इसलिए फिल्मी कंपनी वाले उन लोगों की तलाश कर रहे थे जो अभिनय के साथ गाना भी जानते हो. उन्हीं दिनों प्लेबेक सिंगिंग की भी शुरुआत हुई थी,

अभिनेता और अभिनेत्री अपने गाने खुद ही गाते थे. ऐसे में फिल्मी करियर बनाने के लिए संगीत की समझ और रुझान होना बहुत ही आवश्यक था. सहगलका म्यूजिक तब बहुत चलने लगा था इस कारण फिल्मों में उन्हें काम मिलने का रास्ता साफ़ हो गया.

कलकत्ता में ही सहगल को आर.सी बोराल मिले,जिन्होंने सहगल के साथ न्यू थिएटर के लिए अनुबंध कर लिया. उन्हें तब फिल्मों में काम करने के हर महीने 200 रूपये मिलते थे .

इन दौरान सहगल लगातार डिस्क भी बना रहे थे. हिन्दुस्तान रिकॉर्ड कंपनी ऑफ़ कलकत्ता ने कुछ डिस्क मार्केट में रिलीज़ की जिनमें “झुलना झूलो” ने पब्लिक को काफ़ी आकर्षित किया.

इसके बाद तो उन्होंने फिल्मों में गाना और अभिनय करना ज़ारी रखा. सन 1934 में आई उनकी फिल्म “चंडीदास” के कारण उनको फिल्म इंडस्ट्री में आगे बढ़ने के लिए सही दिशा और पहचान मिल गई और उन्हें इंडस्ट्री से बहूत से अच्छे ऑफर मिलने लगे और अगले वर्ष 1935 में आई फिल्म “देवदास” ने तो एक नया इतिहास रच ही दिया, इस सफलता के बाद सहगल को पीछे मुडकर देखने की जरूरत नहीं पड़ी.

देवदास के अलावा सहगल की “बालम आये बरसो” और “दुख के अब दिन बीते” भी सदियों तक नही भूली जाने वाली क्रिएशन थी. तब सहगल म्यूजिक के कई फॉर्म्स के साथ नए नए प्रयोग करते रहते थे. और उन्होंने कई ख्याल, बंदिश, ग़ज़ल, गीत, भजन, होरी और दादरा भी कई राग में गाई थी.

उन्होंने हिंदी के अलावा उर्दू, पुश्तो, पंजाबी, बंगाली और तमिल भाषा में गाने गाये. उनके गाये हुए कुछ गानों में दिया जलाओ जगमग जगमग, रुमझुम रुमझुम चल तिहारी, बाबुल मोरा, बाग़ लगा दूं सजनी, चाह बर्बाद करेगी, ए दिल ए बेकरार झूम, ग़म दिए मुस्तकिल और कभी नहीं भूलाया जाने वाला गाना “जब दिल ही टूट गया” हैं.

जब दिल ही टूट गया तो जी कर क्या करेंगे…यह गाना अक्सर दर्द भरे आशिकों के मुंह से सुनाई देता है. इस गाने को आज से 77 साल पहले हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के पहले “तानसेन” और “सुपरस्ट” कहे जाने वाले श्री के. एल सहगल ने गाया था.

भारतीय सिने जगत में तेज़ी से परिवर्तन हो रहे थे,और हिंदी फिल्म इंडस्ट्री कलकत्ता ( कोलकत्ता ) से मुबई शिफ्ट हो रही थी, ऐसे में सहगल भी दिसम्बर 1941 में मुंबई आ गये और यहाँ पर रणजीत मुवीटोन के साथ काम करना शुरू किया. और यहाँ उन्होंने सूरदास, तानसेन, कुरुक्षेत्र, तदबीर, शाहजहाँ, ओमार खाययम और परवाना में काम किया.

वो जमाने में कोई अवार्ड समारोह नहीं होता था. या कोई विशेष सम्मान दिया जाता था, फिर भी सहगल जी ने अपनी आवाज के जादू से कई दिलों को जीता था. और कलकता ( कोलकाता ) में रहते हुए सहगल ने बंगाली बहुत अच्छे से सिख ली थी, इस कारण हीं उन्हें कई बंगाली फिल्मों में अभिनय और गाने का मौका मिल रहा था. वो पहले व्यक्ति थे जो गैर-बंगाली थे लेकिन फिर भी रबिन्द्र नाथ टैगोर ने अपने काम को रिकॉर्ड करने दिया.

कालान्तर के बाद कितने अवार्ड्स सहगल के नाम से ही दिए जाने लगे, और आज की तारीख में उनके नाम के अवार्ड को जीतना किसी भी कलाकार के लिये सम्मान का विषय हैं.

सहगल जब सफलता के शिखर पर था तब उनको अल्कोहल की लत लग गई. एक समय आया जब सहगल बिना पीये गाने में सक्षम नहीं रहे, इससे उनके काम के साथ उनका स्वास्थ भी प्रभावित होने लगा. के.एल. सहगल को रिकॉर्डिंग से पहले पीने की आदत पड़ गई थी. इस कारण ही उन्हें लीवर सिरोसिस जैसी गंभीर बीमारी हो गई.

महान कंपोजर नौशाद ने सहगल के शराब की लत पर यह कहा था कि उन्होंने अंतिम दो फिल्मों शाहजहाँ और परवाना के लिए शराब नहीं पी थी. वास्तव में उनकी लत उस स्थिति तक पहुँच चुकी थी जहाँ इसे छुड़ाना सम्भव नहीं था. तबियत बिघड़ने पर सहगल ने साधू के साथ समय बिताने की सोची और वो जालंधर में एक साधू के साथ समय बीतना चाहते थे लेकिन परिवार ने इसका विरोध किया,उनके परिवार वाले चाहते थे कि वो मुंबई के बेस्ट डॉक्टर को दिखाए.

के.एल. सहगल ने अपने अंतिम दिनों में पंजाबी गाने गाए. सहगल ने 18 जनवरी 1947 को जालंधर में देह त्याग दिया. मृत्यु के समय सहगल मात्र 42 वर्ष के थे.

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