कैंसर की जननी कार्बाइड| Carbide, the mother of cancer.

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वर्तमान देश का स्वास्थ्य विभाग नपुंसक – नामर्द – शक्तिहीन – दुर्बल – बेबस – असमर्थ बन गया है, जिनकी बदौलत मिलावट खोरो को ग्राहकों के स्वास्थय से खेलने का मौका मिल गया है. आज मुजे खास बात करनी है कैल्शियम कार्बाइड की जो स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होता है. इससे कैंसर जैसी गंभीर बीमारी हो सकती है. 

         यह सब जानते हुए भी फलों का व्यापार करने वाले लोग बीना रोकथाम कार्बाइड का बेधड़क इस्तेमाल कर रहे है. प्रशासन कुम्भकरण की नींद सौ रहा है. लाचार जनता बेचारी क्या कर सकती है ? सब सामूहिक सजा भुगत रहे है. 

        खास करके केले और पपीता में इसका उपयोग किया जा रहा है. पपीता को बुढ़ापा की संजीवनी मानी जाती है. मगर आज इनका उपयोग श्राप बन गया है. 

      प्रीवेंशन आफ फूड एडल्ट्रेशन रूल 1955 की धारा 44 ए ए के तहत एसिटीलीन गैस से फलों को पकाने पर प्रतिबंध है लकिन कानून के सही ढंग से कार्यान्वित नहीं होने और विकल्पों के अभाव में इसका इस्तेमाल धड़ल्ले से हो रहा है.

        बाजार में मिल रहे चमकदार फलों को खाने से कई लोगोंको लीवर कैंसर, गुर्दे तथा बड़ी आंत का कैंसर आदि कई प्रकार की बीमारी का सामना करना पड़ सकता है. ग्राहक राजा को तो ये पताही नहीं चलता है की, जो फल वे खरीद रहे है वह प्राकृतिक तरीके से पकाया गया है या फिर नुकसानदायक तथा जहरीले रसायन कार्बाइड से पकाया गया हैं. 

        विशेषज्ञों के अनुसार कैल्शियम कार्बाइड में आर्सेनिक और फास्फोरस पाया जाता है. पुन: यह वातावरण में मौजूद नमी से प्रतिक्रिया कर एसिटीलीन गैस बनाता है जिसे आम बोलचाल में काबाईड गैस कहते हैं. यह गैस फलों को पकाने में एथिलीन की तरह ही काम करते है. कैल्शियम कार्बाइड का दिमाग, स्नायुतंत्र, फेंफड़ों आदि पर बुरा असर पड़ता है. 

           एथिलीन गैस के इस्तेमाल के लिए नियंत्रित तापमान वाले चैंबर या कोठिरियां बनाई जाती हैं , जिनमें पकाए जाने वाले फलों को रखकर एथिलीन का इस्तेमाल किया जाता है. इस तरीके से पकाया गया फल पर दाग नहीं लगते और यह स्वास्थ्य के लिये बेहतर होते हैं. 

            फिलहाल मडर डेयरी तथा एग्रो फ्रेश जैसी कुछ कंपनियां एवं बड़े व्यापारी फल को कृत्रिम तरीके से पकाने के लिए एथेलीन गैस का उपयोग कर रही हैं. 

         कार्बाइड से होनेवाली संभावित हानि को देखते उच्च न्यायालय ने फलों को पकाने के लिए कार्बाइड के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया हुआ है. मगर सिर्फ कानून बनानेसे क्या होता है ? उसको अमल में लाना जरुरी नहीं है….? 

          एथनाल से पकाया हुवा फलो का सेवन करनेसे सेहत पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है. मगर ये मुनाफाखोर प्रवृति के व्यापारी लोग जल्दबाजी के लिये कार्बाइड का उपयोग करते है जो स्वास्थय के लिये हानिकारक है. सभी डॉक्टर मौसमी फल खाने की सलाह देते है मगर खुद ये नहीं जानते कि कार्बाइड से पकाए फलों से क्या नुकसान हो सकता हैं. शायद उनको यह भी नहीं पता होगा की कार्बाइड के प्रयोग पर उच्च न्यायालय ने प्रतिबंद लगाया है. 

     कार्बाइड के प्रयोग से पकाए गये फल हो या प्राकृतिक तरीके से पके फल क्यों ना हो उसे स्वच्छ पानी से दो तीन बार धोना चाहिए. सभी फलोंको स्वच्छ पानीसे धोना अति आवश्यक है. फल बिक्रेता अधिक लाभ कमाने तथा फलों को जल्द पकाने के लिए कार्बाइड का इस्तेमाल कर रहे हैं जो चिंता का विषय है. कार्बाइड से फल एक दिन में ही पक कर तैयार हो जाता है. बाजार में पपीता तथा केला पूरी तरह से कार्बाइड से ही पकाया जा रहा है, जिस कारण एक से ज्यादा दिन रखने पर पपीता गलने लगता है. 

      सबसे ज्यादा इसका प्रयोग पपीता, आम, केला और बौर व तरबूज में हो रहा है. जो फलों से मिलने वाले पोषक तत्वों को भी कम कर देता है. कार्बाइड से पकाए गए फल पूरी तरह से पक नहीं पाते. ऐसे फल खाने से पेट दर्द, उल्टी-दस्त भी हो सकता है. 

           कैल्शियम कार्बाइड रासायनिक पदार्थ है, जो फलों की नमी व पानी से क्रिया करके इथाइल गैस बनाता है. यह प्रोसेस से गर्मी उत्पन्न होने से फल समय से पहले पक जाता है. यह गैस फलों के माध्यम से लोगों के शरीर में चली जाती है जिससे कई प्रकार की बीमारियां हो सकती हैं. कार्बाइड केमिकल जहर की श्रेणी में आता है . 

        हमारे देश में कानून की कोई कमी नहीं है. कानून सिर्फ गरीबों को डराने के लिये है. धनवान तो इसे हरदम अपनी जेब में रखकर घूमते है. जिस तरह घरके गंदे पानी के वहन के लिये मोरी मार्ग गटर होती है उसी तरह कानून से बचने के लिये भी ये लोग रास्ता ढूंढ निकालते है. 

         कोविद काल में जनता में एक बात फैल रही थी कि , स्थानीय प्रशासन को एक कोविद संक्रमित रुग्ण के लिये एक लाख पचास हजार रुपये मिलते है. इस लिये ये लोग ज्यादा रुग्ण दिखानेकी कोशिश कर रहे है. क्या ये सच है ? यदि नहीं तो जनहित में इसका स्पस्टीकरण होना जरुरी है. 

       हमारे देशमे भ्रष्टाचार रोकथाम (संशोधन) अधिनियम, 1988 के तहत नये कानून तो बनाये जाते है, मगर इसकी अमलबजावणी में ढील पाई जाती है. क्या इसके मूल उपर तक पहुचे है ? जिसकी बदौलत ये आरोपी छूटकर फिर से काम पर लग जाता है. हमारे देशको मुगलों ने लूटा, अंग्रेजो ने लूटा, अब अपने ही अपनों को लूट रहे है. फिर वो नेता हो या अधिकारी हो सब मिले हुए है. हमारे शहीदोने ऐसे दिन के लिये अपनी क़ुरबानी दी थी ? 

       शर्म तो तब आती है कि कोविद -19 जैसी महामारी में भी ये गिधड प्रवृति के लोग नोचना नहीं भूले. जिंदा लाश के मुर्दे में भी ये लोग कमाई देखते रहे. क्या यहीं ” मेरा भारत महान है ? “

    —–====शिवसर्जन ====——

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