कोलकाता का “हावड़ा ब्रिज”.

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कोलकाता के ” हावड़ा ब्रिज के बारेमे हर किसीको विस्तार से जाननेकी इच्छा होती है. हावड़ा ब्रिज हमारे भारत देश के पश्चिम बंगाल में हुगली नदी के उपर बना एक जुलता सेतु है. यह हावड़ा को कोलकाता से जोड़ता है. इसका मूल नाम ” नया हाव दा पुल ” रखा गया था जिसे ता : 14 जून 1965 के दिन इस पुल का नाम बंगाली लेखक, कवि,समाज सुधारक गुरुदेव रवीन्द्र नाथ जी के नाम पर बदलकर ” रवीन्द्र सेतु ” कर दिया गया था. 

       आज यह ” हावड़ा ब्रिज ” के नामसे अधिक लोकप्रिय है. इस ब्रिज को बनाने के लिये 26 हजार 500 टन स्टील का इस्तेमाल किया गया है. इसमें से 23 हजार पांच सौ टन स्टील की सप्लाई टाटा स्टील ने की थी.

         इस पुल का निर्माण सन 1937 से लेकर सन 1943 के बीच हुआ था. ता : 3 फ़रवरी 1943 के दिन इसे जनता के लिए खोल दिया गया था.आज 2020 में इसके 77 साल पूरे हो गए है. पुल को तैरते हुए पुल का आकार इसलिए दिया गया था क्योंकि इस रास्ते से बहुत सारे जहाज निकलते हैं , यदि खम्भों वाला पुल बनाते तो अन्य जहाजों को आने जाने ने दिक्कत रहती थी.

       वैसे प्रत्येक पुल के नीचे खंभे होते है जिन पर वह टिका रहता है, मगर यह एक ऐसा पुल है जो सिर्फ चार खम्भों पर टिका हुआ है, जिसमे दो नदी के इस तरफ और दो नदी के उस तरफ है. 

          इस पुल को सिर्फ चार खम्भों पर बैलेंस बनाकर हवा में टिका रखा है कि 80 वर्षों से इस पर कोई फर्क नहीं पडा है. पुल से लाखों की संख्या में दिन रात भारी वाहन और पैदल चलतें लोग गुजरते है. इस पुल परसे रोजाना तकरीबन 1, 25, 000 वाहन तथा करीब 5, 00000 लाख से ज्यादा पैदल यात्री गुजरते है. 

         कोलकाता और हावड़ा के बीच हुगली नदी पर पहले कोई ब्रिज नहीं था. नदी पार करने के लिए नाव ही एकमात्र जरिया था. ब्रिज बनने के बाद इस पर पहली बार एक ट्राम गुजरी थी. सन 1906 में हावड़ा स्टेशन बनने के बाद यहां पर ट्रैफिक और लोगों की आवाजाही बढ़ते देखकर सन 1993 मे ट्रामों की आवाजाही बंद कर दी गई थी.

           पुल तैयार होने के बाद यह दुनिया में अपनी तरह का तीसरा सबसे लंबा ब्रिज था. पूरा ब्रिज हुबली नदी के दोनों किनारों पर बने 280 फीट ऊंचे दो पायों पर टिका है. इसके दोनों पायों के बीच की दूरी डेढ़ हजार फीट है. नदी में कहीं कोई पाया नहीं है.

       इसकी पुल की खासियत यह है कि इसके निर्माण में स्टील की प्लेटों को जोड़ने के लिए नट बोल्ट की बजाय धातु की बनी कीलों यानी रिवेट्स का इस्तेमाल किया गया है. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापानी सेना ने इस ब्रिज को नष्ट करने के लिए भारी बमबारी की थी. लेकिन संयोग से ब्रिज को कोई नुकसान नहीं पहुंचा था. 

        सन 2005 में एम.वी. मणि नामक एक मालवाहक जहाज का खम्भा इसके ढांचे में फंस गया था. इससे ढांचे को काफी नुकसान पहुंचा था. जानकारों का मानना है की हावड़ा ब्रिज के ढांचे का जीवन समान्यवत 150 साल का हो सकता है, वर्तमान सिर्फ 77 साल हो गया है. मगर बढ़ती हुई ट्रेफिक की वजह इसकी नियमित जांच जरूरी हो गई है. 

      जो पर्यटक कोलकाता गुमने जाता है वो वहांका फेमस रसगुल्ला जरूर खाता है, और हावड़ा ब्रिज को देखने जरूर जाता है. हावड़ा ब्रिज बॉलीवुड ही नहीं हॉलीवुड का भी पसंदीदा सूटिंग केंद्र बना हुआ है. हर कोई इसके नजरो को अपने कैमरा या मोबाइल मे कैद करना चाहता है. 

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