भगवान श्री कृष्ण को उनके भक्त अनेकों नाम से संबोधित किया जाता है. श्री कृष्ण , हरि , गोविंद मुरारी, माखनचोर, देवकीनंदन , गोपाल, मुरली मनोहर, गिरिधारी, कान्हा, द्वारकाधीश , बंसीवाले , चक्रधारी , कुंज बिहारी , मधुसूदन , पीताम्बर धारी , श्री नाथ जी, माधव, मोहन, मुरारी,बनवारी , मुकुंद , योगेश्वर, मदन, मनोहर , श्याम , गोपेश , जगदीश , वासुदेव , हृषिकेश , सारथी , देवेश , वासुदेव , नंद लाला , अच्युत , रास रसिया,यदुपति, यदुवंशी, छलिया , केशव, वल्लभ, दामोदर, आदि सेकड़ो नामोंसे पहचाने जाते है.
इन सब नामोके अलावा उनका एक नाम और भी था. रणछोड़. ये नाम उनका कैसे पड़ा उसकी भी दिलचस्प कहानी उनके जीवन से जुडी है.
वैसे रणछोड़ का मतलब रण छोड़ कर भाग जाने वाला. किसीके भी मनमे प्रश्न उठेगा की पांडवो को महाभारत जैसा युद्ध जिताने वाला प्रभु श्री कृष्ण रण छोड़कर कैसे भाग सकता है ? आपका सोचना बिलकुल सही है.
वास्तव मे प्रभु श्री कृष्ण रण से भागे नहीं थे बल्कि यह उनकी रणनीति का एक भाग था. कहा जाता है प्रेम और युद्ध मे सब जायज है. और यहीं नीति उनकी नीति का भाग था.
श्री कृष्ण ने इस नीति के तहत अपने शत्रु से युद्ध ना करते रण मैदान से भाग जानेका उचित समजा था.
जब महा बलि मगध के राजा जरासंघ ने भगवान श्री कृष्ण को युद्ध के लिये ललकारा तब जरासंघ ने काल यवन नामके राजा को भी श्री कृष्ण के खिलाफ लड़ने के लिये मना लिया. काल यवन को भगवान श्री शंकर से वरदान मिला था की उसे ना तो चंद्र वंशी मार सकता है या ना उसे सूर्य वंशी मार सकता है. उसे ना तो कोई भी हथियार खरोच सकता है और ना ही कोई उसे अपने बल से हरा सकता है.
भगवान श्री शंकर से मिले वरदान से राजा काल यवन अजय बन गया था. उसने जरासंध के कहने पर बिना किसी शत्रुता के मथुरा पर आक्रमण कर दिया.
भगवान श्री कृष्ण को पता था कि कालयवन को मारा नहीं जा सकता. श्री कृष्ण भगवान का सुरदर्शन चक्र भी काल यवन का कुछ नहीं बिगाड़ सकता. इसीलिए श्री कृष्ण रणभूमि से भागकर एक गुफा में पहुंच गए. श्रीकृष्ण और बलराम तो भागते देख जरासंध उन पर हंसने लगा. उसे भगवान श्रीकृष्ण और बलरामजी के ऐश्वर्य, प्रभाव आदि का ज्ञान न था. श्रीकृष्ण इस युद्ध से भागकर उसी गुफा में छिपे थे जहां राक्षसों से युद्ध करके राजा मुचकुंद त्रेतायुग से सोए हुए थे.
राजा श्री मुचकुंद दानवों को हराने के बाद बहुत थक गए थे. जिसके बदले इंद्र ने उन्हें विश्राम का आग्रह कर एक वरदान भी दिया हुआ था. इंद्र ने कहा था कि जो भी इंसान तुम्हें नींद से जगाएगा वो जलकर खाक हो जाएगा. श्री कृष्ण को यह बात का पता था.
भगवान कृष्ण काल यवन को अपने पीछे भगाते भगाते उस गुफा तक लेकर आ गये. जहां राजा मुचकुंद निंद्रासन मे थे. गुफा में भगवान श्री कृष्ण ने राजा मुचकुंद के ऊपर अपना पीतांबर ढक दिया.
काल यवन जब वहां पंहुचा तो उनको को लगा श्री कृष्ण उससे डरकर अंधेरी गुफा में मुह छुपाकर सो गये हैं. उसने ललकारते कृष्ण समजकर लाट मारी. त्रेता युग से सोए हुए राजा मुचकुंद को लात मारनेसे उठ गया. उसकी नींद टूटते ही कालयवन अग्नि से जलने लगा और जलकर वही पर खाक हो गया.
श्री कृष्ण की जीत तो हुई मगर रण क्षेत्र से भाग जानेके कारण श्री कृष्ण ” रणछोड़ ” नामसे प्रचलित हुये वास्तव मे रण से भाग जाना और राजा मुचकुंद के द्रारा काल यवन को मात करना ये रण नीति का ही भाग था.
यह थी श्री रणछोड़ प्रभु जी की लीला. आप सभीको अवश्य पसंद आयी होंगी.
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