हमारे भारत देश को मंदिरों का देश भी कहा जाता है. वैसे मध्य प्रदेश अपनी संस्कृति और प्राचीन मंदिरों के लिए काफी प्रसिद्ध है. यहां विध्यमान खजुराहो मंदिर अपनी कामुक मूर्तियों के लिए तथा अपने प्राचीन और अद्भुत कला शैली के लिए विश्वभर में अपनी अलग पहचान रखता है.
यहां की सुंदर, खूबसूरत चित्रकारी पर्यटकों को काफी आकर्षित करती है. इसके अलावा ये मंदिर प्राचीनकाल के इतिहास और संस्कृति की गवाही भी देता है. प्राचीन काल में इसे खाजुर्पुरा और खजूर वाहिका के नाम से भी जाना जाता था. यह मंदिर, सम्भोगकी विभिन्न कलाओ के आकृतियों के लिए प्रसिद्ध है. हालांकि रखरखाव के अभाव में एक ओर जहां ये मूर्तियां नष्ट हो रही हैं, वहीं लगातार इन धरोहरों से मूर्तियों की चोरी की खबरें भी आती रही हैं.
इस मंदिर की दीवारों पर बनी सिर्फ 10% से 15% नक्काशी यौन संबंधी गतिविधियों को दर्शाती हैं. इसके शिवा यहां की 90% नक्काशी उस वक्त के लोगों के जीवन को प्रदर्शित करती है. इस मंदिरमें कुम्हार, संगीतकार, किसान और महिलाओं की मूर्तियां भी बनाई गई है. इतिहासकारों के अनुसार यहां पर कामुकता की सभी कलाओं का अध्यन और अभ्यास किया जाता था. हैरानी की बात तो यह है कि यह मूर्तियां केवल मंदिर की बाहरी दीवारों पर ही उकेरी गई हैं.
मंदिर के निर्माण की बात करें, तो ये मंदिर एक हजार साल से भी ज्यादा पुराना है. लेकिन इसकी खूबसूरती दुनिया को दिखाने वाले कैप्टन टी.एस. बर्ट है. जिन्होंने साल 838 में इन मंदिरों को फिर से खोजा और पूरी दुनिया के सामने प्रस्तुत किया.
खजुराहो भारत देश के एक राज्य मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है जो प्राचीन और अद्भुत कला शैली के मंदिरों के लिए विश्व में प्रसिद्ध है. जिसे आज हम खजुराहो के नाम से जानते है.
बताया जाता है कि 12वीं शताब्दी के दौरान ये मंदिर करीब 85 हुआ करते थे, लेकिन 13वीं शताब्दी तक इनमें से कुछ को नष्ट कर दिया गया था. अब तक यहां सिर्फ 25 मंदिर ही बचे हुए हैं.
यूनेस्को ने 1986 में खजुराहो मंदिर को वर्ल्ड हेरीटेज साइट के रूप में जोड़ दिया था. खजुराहो में हिंदू और जैन धर्म के मंदिरों का समूह है “ खजुराहो के समूह ” के नाम से पहचाने जाते है. माना जाता है कि खजुराहो के मंदिरों का निर्माण में करीब 100 साल लगे थे.
मंदिर का नाम हिंदी शब्द खजूर से लिया गया है. जानकारी के अनुसार ये शहर एक बार सिर्फ खजूर के पेड़ों से ही घिरा हुआ था, इसलिए इसका नाम खजुराहो रख दिया गया. इसके अलावा ये भी कहा जाता है कि इसका नाम खजुरा-वाहक (बिच्छू वाहक) से रखा गया है. जो भगवान शिव का एक प्रतीकात्मक नाम है.
इस मंदिरों का निर्माण चंदेल वंश के दौरान किया गया था. वहीं इनमें से अधिकत्तर मंदिरों 950 और 1050 ईं के बीच हिंदू राजाओं यासोवर्मन और धंगा के शासनकाल के दौरान बने है.
कुछ विश्लेषक यह मानते हैं कि प्राचीन काल में राजा-महाराजा काफी उत्तेजित रहते थे और भोग-विलासिता में अधिक लिप्त रहते थे. इसी कारण खजुराहो में कामुक मूर्तियां बनवाई गई.
वहां जानेके लिए ता : 18 से 24 फरवरी के बीच का समय उपयुक्त होता है. क्योंकि मध्य प्रदेश सरकार द्वारा हर साल खजुराहो नृत्य महोत्सव का सुंदर आयोजन किया जाता है. इस दौरान यहां देश के प्रमुख क्लासिकल डांसर आते हैं और खजुराहो के ऐतिहासिक मंदिरों की पृष्ठभूमि में रंग-बिरंगी रोशनी के बीच उन्हें नृत्य करते देख ऐसा लगता है कि जैसे स्वयं कामदेव और रति स्वर्ग से धरती पर उतर आए हों. यहां नृत्य महोत्सव के दौरान प्रतिदिन शाम 7 बजे से देर रात कार्यक्रम होता है. यहां टिकट फ्री होता है.
वहां तक पहुंचने के लिए वायु , रेल और सड़क मार्ग का चयन कर सकते है.
वायु मार्ग :
खजुराहो वायु मार्ग द्वारा दिल्ली, वाराणसी, आगरा और काठमांडु से जुड़ा हुआ हैं. खजुराहो एयरपोर्ट, शहर से तीन किलोमीटर दूर है.
रेल मार्ग :
खजुराहो रेलवे स्टेशन से दिल्ली, आगरा, जयपुर, उदयपुर, वाराणसी, भोपाल, इन्दौर,उज्जैन के लिए रेल सेवा उपलब्ध है. दिल्ली और मुम्बई से आने वाले पर्यटकों के लिए झांसी रेलवे स्टेशन है. जबकि चेन्नई और वाराणसी से आने वालों के लिए सतना अधिक सुविधाजनक होगा. नजदीकी और सुविधाजनक रेलवे स्टेशन से टैक्सी या बस के माध्यम से खजुराहो पहुंचा जा सकता है. सड़कों की स्थिति बहुत अच्छी है.
सड़क मार्ग :
खजुराहो महोबा, हरपालपुर, छतरपुर, सतना, पन्ना, झांसी, आगरा, ग्वालियर, सागर, जबलपुर, इंदौर, भोपाल, वाराणसी और इलाहाबाद से नियमित और सीधा जुड़ा हुआ है. आप दिल्ली के राष्ट्रीय राजमार्ग 2 से पलवल, कौसी कला और मथुरा होते हुए आगरा जा सकते हो.
राष्ट्रीय राजमार्ग 3 से धौलपुर और मुरैना के रास्ते ग्वालियर जाया जा सकते हो. उसके बाद राष्ट्रीय राजमार्ग 75 से झांसी, मउरानीपुर और छतरपुर से होते हुए बमीठा और वहां से राज्य राजमार्ग की सड़क से खजुराहो पहुंचा जा सकता है.