” मोगरा ” ये एक फुल का नाम है. मोगरा का नाम लेते ही उनकी खुशबूदार सुंगंध मनो मस्तिक मे छा जाती है. मोगरा के फूल को अंग्रेजी मे (JASMIN) कहा जाता है, तथा इसे संस्कृत मे ” मालती ” और ” मल्लिका ” कहा जाता है.ये एक सफेद फुल है जो दक्षिण एशिया तथा दक्षिण पूर्व एशिया मे पाया जाता है. मोगरे का फुल हवाई, इंडोनेशिया, फिलीपींस देशो का राष्ट्रीय फुल है.
इस फुल का “लेटिन” भाषा मे नाम जेसमिनम सेमलेक ( JASMINUM SAMBAC ) है. मोगरा की खुशबू मन भावन, मन को प्रफुल्लित करने वाली होती है. माथे के उपर मोगरा के गजरे तथा फुल की माला महिलाओं की शोभा मे वृद्धी करती है, मानो चार चांद लगा देती है.
मोगरा की खिलतीं कलियाँ को कन्या ओकी खिलतीं जवानी के साथ सुसंगत किया जाता है. कई गानों मे खिलतीं जवानी को प्रदर्शित करने के लिये, ” मोगरा खिलला ” जैसे शब्दों से अलंकृत किया जाता है. तो कई गानों तथा कविता मे इसका प्रयोग, रचना की गुणवत्ता के लिये किया जाता है.
धार्मिक, सांस्कृतिक, तथा शादी ब्याह के मौके पर कई महिलाएं सुगंधित मोगरा के गजरे पहनना पसंद करती है.प्रेम का प्याला पिने वाले ” रमता जोगी ” लोग मधुशाला मे जाते वक्त हाथ की कलाई मे मोगरे की माला बांधकर जाते है.
वैसे मोगरा के फूलों की प्रकृति गर्म स्वभाव की होती हैं. मोगरा का पौधा आसानी से मिल जाता है. इसे आप अपनी बालकनी मे भी उगा सकते हो. आयुर्वेदिक दृश्टिकोण से देखा जाय तो मोगरा का इत्र कान के दर्द में भी प्रयोग किया जाता हैं.मोगरा कोढ़, मुँह और आँखों के रोगों में लाभदायक देता हैं. अपनी सुंदरता के साथ मोगरा बहुत गुणकारी भी है, जो हमें तरोताजा रखते है. शुभ्र रंग की साड़ी और मोगरा के पहनने से महिला परी सी दिखने लगती है.
मोगरे की चाय बुखार , इन्फेक्शंस और मूत्र जैसे रोगों में लाभकारी होती है. बताया जाता है कि मोगरे के फूलों और कलियों से बनाई गई चाय रोज़ पीने से केंसर मे राहत मिलती है. मोगरे की 4 पत्तियों को पीसकर एक कप पानी में मिला कर इसमें मिश्री मिला कर दिन में 4 बार पिने से दस्त में भी लाभ होता है .
मोगरे के पत्तों को पीसकर जहां भी दाद , खुजली और फोड़े फुंसियां हो वहां लगाने से लाभदाई होता है. कोई घाव ठीक ना हो रहा हो तो बेल वाले मोगरे के पत्तों को पीस कर लगाने से ठीक हो जाता है . इसकी जड़ का काढा पीने से अनियमित मासिक ठीक होता है.
मोगरा के दो पत्तों को काला नमक लगा कर सेवन करने से पेट की गैस दूर होती है. इसके फूलों के उपयोग से से पेट के कीड़ों , पीलिया , त्वचा रोग , कंजक्टिवाईटिस आदि में लाभ होता है. मगर औषधीय जानकारों की देखरेख मे लेना उचित होता है.
मोगरा के फूल का उपयोग पूजा के लिए और घर में सुगंध के लिए किया जाता है. फूलदानी में मोगरा के फूल का गुच्छा बनाकर पंखे के निचे रखने से घर में सुगंध छा जाती है, और वातावरण मे प्रशन्नता आती है. फूल के चूर्ण से सुगंधित तेल, क्रीम, अगरबत्ती, साबुन, फेसपाउडर, इत्र आदि अनेक चीजे बनाई जाती है.
मोगरा एक सुगंधित फूल वाला पौधा है. इसकी प्रजाति में लगभग 200 अलग-अलग सुगंधित फूल चमेली, मोगरा आदि पौधें शामिल हैं. यह एक बारहमासी और सदाबहार पौधा है, जिनमें से कुछ बेलों की तरह उगते हैं, कुछ झाड़ियों की तरह उगते हैं, कुछ गर्म और नम जलवायु में अच्छी तरह से बढ़ते हैं, और कुछ समशीतोष्ण क्षेत्रों में अच्छी तरह से बढ़ते हैं. भारत में, इस प्रकार का फूल मुख्य रूप से विग, माला और हार के लिए उपयोग किया जाता है. फ़्रांस में इत्र प्राप्त करने के लिए इसका उपयोग किया जाता है.
भारत में, मोगरा, जाइ और जुई तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र राज्यों में व्यावसायिक रूप से उगाए जाते हैं. फूल मुंबई, चेन्नई, बैंगलोर, नागपुर, हैदराबाद, पुणे आदि में भी उगाए जाते हैं. बड़े शहरों में इसकी भारी मांग होती है. महाराष्ट्र में इन फूलों की खेती आसान, सस्ती और कम लागत से होती है. ये फूल का व्यापार फायदेमंद होता है.
मोगरा आम तौर पर, मोगरा एक झाड़ी की तरह होता है. इसके सफेद रंग के फुल एकल पंखुड़ियों वाले या डबल पंखुड़ियों वाले होते हैं और इनमें बहुत ही मीठी खुशबू होती है. ग्रीष्म और मानसून वर्ष मे दो इनके मौसम होते है. मार्च, अप्रैल और मई में ग्रीष्मकालीन मुख्य फूल का मौसम है.
मोगरा फुल का उपयोग मोगरा अगरबत्ती, मोगरा इत्र, मोगरा स्प्रे, मोगरा परफ्यूम के लिये किया जाता है. गुलाब के फुल की तरह , मोगरा फुल को चाहने वालों की संख्या भी कुछ कम नहीं है. आजतक कई भाषा के गानों मे मोगरा फुल का जिक्र किया गया है.
राजा महाराजा भी मोगरा के सुगंध के दीवाने थे. वे अपने राज दरबार को मोगरा फुल से सजाते थे. और सुगंध का लुफ्त उठाते थे. ” इति संपूर्ण.” *
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