गुरू गोविंद सिंह के पंच प्यारे बलिदानी| Guru Gobind Singh ke Panch Payare Balidani.

गुरू गोविंद सिंह के पंच प्यारे बलिदानी 2 pdf

पंजाब की पावन धरती बलिदानो के लिए विश्व मे विख्यात है. सौ आदमी मे सरदार अपनी पगड़ी और स्वस्थ शरीर के कारण अलग पहचानने मे आ जाता है. 

         आज मुजे सिख गुरू ” गुरू गोविंद सिंह ” के जीवन की पंज प्यारे ( पांच प्यारे ) की प्रेरक कहानी मित्रों से शेर करनी है. पंज प्यारे ये नाम गुरू गोविंद सिंह ने 13 अप्रेल 1699 के दिन आनंदपुर साहिब के ऐतिहासिक मैदान में उसके पांच प्यारे अनुयायी को दिया हुआ नाम है. 

        चारसो साल पहले मुग़ल शासन काल में औरंगजेब का आतंक को देखते हुए ” गुरू गोविंद सिंह ” ने बैसाखी के दिन आनंदपुर साहिब के मैदान में ” सिख ” समुदाय की एक सभा बुलाई. मंच पर खुली तलवार के साथ गुरू गोविंद सिंह स्वयं उपस्थित हुए और ऎलान किया कि ये तलवार अब लहू मांगती है. मुझे बलिदान चाहिए. आपमेसे हे कोई जो मुझे अपना सिर दे सके. सुनतेही सभामे सन्नाटा छा गया, 

       चारो तरफ नीरव शांति. तब सभामे एक कोनेसे जोर से आवाज आयी, ” मैं तैयार हुं “. यह कहकर लाहौर निवासी दयासिंह नामका एक व्यक्ति आगे आया. 

         बोला गुरुदेव यह सिर हाजिर है, कहकर गर्दन जुकाई. गुरू गोविंद सिंह उसको मंच के पर्दे के पीछे लेकर गया. कुछ देर बाद चीख सुनाई दी. और लाल खून की धारा बाहर आते दिखाई दी. गुरू खून से टपकती तलवार के साथ बाहर मंच पर आये . सब स्तब्ध. एक दूसरे के मुह देखने लगे. 

       फिर बोला मुझे और एक सिर की जरुरत है. ईस बार दूसरे नंबर पर सहरानपुर के धरमसिंह आगे आया, उसे पीछे ले जाया गया फिर चीख के बाद लहू की धारा बाहर आयी. गुरू जी फिर पीछे से बाहर आकर बोला और मुझे एक सिर चाहिए. इस बार तीसरे नंबर पर जगन्नाथ पुरी के हिम्मत सिंह आगे आये. लहुकी धारा के बाद फिर गुरू गोविंदसिंह बाहर आकर बोले और मुझे एक सिर की जरुरत है.

       इसबार चौथे नंबर पर द्वारका के मोहकम सिंह आगे आये उसके साथ भी वैसा ही हुआ और गुरू जी ने बाहर आकर सिर की मांग की. इसबार पांचवा व्यक्ति बीदर निवासी साहिब चंद आगे आया. 

           उसे भी पीछे लेकर गये फिर लहुकी धारा बही. सब अनुयायी आपसमे एक दूसरे को देखने लगे. 

        कुछ देर बाद गुरू गोविंद सिंह पांचो को जिंदा लेकर मंच पर आये. सबको आश्चर्य हुआ. पांचो ने बताया की गुरू जी ने हम सब की परीक्षा लेनेके लिये यह कहानी बनाई थी. गुरु गोविंद सिंह ने ऎलान किया की ये पांचो मेरे सबसे प्यारे है उसको पंच प्यारे की उपाधि देता हु. आगे चलकर उन्होंने ही खालसा पंथ की स्थापना की. 

        गुरू गोविंद सिंह सिख धर्म के दसवे व आखरी गुरू थे. 42 साल की कम उम्र में उनका देहांत हो गया. गुरू गोविंद सिंह का जन्म पटना में ता : 5 जनवरी 1666 के दिन हुआ. उसकी मृत्यु तारीख : 7 अक्टूबर 1708 में छाती पर घाव लगनेसे हुयी. गुरू गोविंद सिंह एक महान फिलोसोफर थे, कवि थे , ज्ञानी थे और शूरवीर थे. 

          ” गुरू ग्रंथ साहिब ” सिख संप्रदाय का प्रमुख धार्मिक ग्रंथ है. गुरू गोविंद सिंह ने सिख समुदाय को आव्हान किया की आज के बाद गुरू ग्रंथ साहिब ही आप लोगों का गुरू है. इसीके अंदर सब दुःखो का समाधान है. ईस ग्रंथ की पूजा की जाय और गुरू के जैसा ही आदर , मान , सम्मान दिया जाय. इसके बाद किसीको गुरू की उपाधि नहीं दी जाएगी. 

        आज भी सिख धर्म के लोग ” रामायण ” “महाभारत ” कुरान , बाइबल की तरह ” गुरू ग्रंथ साहिब ” को अपना पवित्र धार्मिक महा ग्रंथ मानते है. और गुरुद्वारा में उसकी पूजा की जाती है.  

          अमृतसर का स्वर्ण मंदिर विश्व भर मे प्रसिद्ध है. देश और दुनियासे लाखो पर्यटक यहांपर आते है. यहां का “लंगर” मानवता की मिसाल है. हजारों लोग यहां मुफ्त मे खानेका लुफ्त उठाते है. सोने के आवरण से बना यह मंदिर प्रेक्षणीय है. यह श्रद्धालु ओका आस्था स्थान है. 

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                       शिव सर्जन प्रस्तुति.

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