क्या आपको पता हैं कि गोवर्धन पर्वत लगातार घट रहा है यानी उसकी ऊंचाई लगातार कम होती जा रही है ? दरअसल पुलस्त्य ऋषि ने गोवर्धन पर्वत को एक श्राप दिया है, जिसके कारण गोवर्धन पर्वत की ऊंचाई प्रतिदिन कम होती जा रही है. जानते हैं इसकी पूरी कथा…
हिंदू धर्म के अनुसार हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है. गोवर्धन पूजा को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन भगवान श्री श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना करने से समस्त दुख और संताप दूर हो जाते हैं.
गोवर्धन पूजा के दिन महिलाएं घर के बाहर गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाती हैं और उसकी पूजा करती हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि गोवर्धन पर्वत लगातार घट रहा है यानी उसकी ऊंचाई लगातार कम होती जा रही है ? दरअसल पुलस्त्य ऋषि ने गोवर्धन पर्वत को एक श्राप दिया है, जिसके कारण गोवर्धन पर्वत की ऊंचाई प्रतिदिन कम होती जा रही है. आइए जानते हैं इसकी पूरी कथा…
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में तीर्थयात्रा करते हुए पुलस्त्य ऋषि गोवर्धन पर्वत के पास पहुंचे. यहां पर गोवर्धन की सुंदरता देखकर वह मंत्रमुग्ध हो गए और उन्होंने द्रोणाचल पर्वत से निवेदन किया कि आप अपने पुत्र गोवर्धन को मुझे दे दीजिए. मैं उसे काशी में स्थापित करना चाहता हूं और वहां रहकर उनका पूजन करुंगा.
द्रोणाचल यह सुनकर दुखी हो गए, परंतु गोवर्धन पर्वत ने कहा कि मैं चलने को तैयार हूं लेकिन मेरी यह शर्त है, कि आप मुझे जहां रख देंगे मैं वहीं पर स्थापित हो जाऊंगा. सुनकर पुलस्त्य ऋषि ने गोवर्धन की बात मान ली. इसके बाद गोवर्धन ने ऋषि से कहा कि मैं दो योजन ऊंचा और पांच योजन चौड़ा हूं, आप मुझे काशी तक कैसे ले जाएंगे ? पुलस्त्य ऋषि ने कहा, कि मैं अपने तपोबल से अपनी हथेली पर उठाकर तुम्हें काशी ले जाऊंगा.
जब ऋषि वहां से जा रहे थे तो रास्ते में ब्रज आया, जिसे देखकर गोवर्धन सोचने लगे कि भगवान श्रीकृष्ण राधा के साथ बाल्यकाल और किशोर काल यहां आकर बहुत सी लीलाएं करेंगे. उनके मन में यह विचार आने लगा कि वह यहीं रूक जाएं. ऐसे में गोवर्धन पुलस्त्य ऋषि के हाथों में और भारी हो गया, जिसकी वजह से ऋषि को विश्राम करने की आवश्यकता महसूस हुई.
ऋषि ने गोवर्धन पर्वत को ब्रज में ही रख दिया और विश्राम करने लगे. दरअसल ऋषि गोवर्धन की शर्त भूल गए थे. कुछ देर बाद ऋषि पर्वत को वापस उठाने लगे लेकिन गोवर्धन ने कहा कि ऋषिवर मैं यहां से कहीं नहीं जा सकता. मैंने आपसे वचन लिया था कि आप मुझे जहां रख देंगे मैं वहीं स्थापित हो जाउंगा. यह सुनकर पुलस्त्य उन्हें वहां से ले जाने का हठ करने लगे, लेकिन गोवर्धन वहां से नहीं हिले.
इस पर ऋषि क्रोधित हो उठे और श्राप दे दिया कि तुमने मेरे मनोरथ को पूर्ण होने नहीं दिया. अत: आज से प्रतिदिन तिल-तिल कर तुम्हारा क्षरण होता रहेगा और एक दिन तुम धरती में समाहित हो जाओगे. तभी से गोवर्धन पर्वत तिल-तिल करके धरती में समाते जा रहा हैं. मान्यता है कि कलयुग के अंत तक यह धरती में पूरी तरह समा जाएगा.
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