चकोर को तीतर माना जाता है. यह पाकिस्तान का राष्ट्रीय पक्षी भी है.
चांद और चकोर के बीच के प्रेम के बारे में कई प्रसिद्ध हैं. चकोर को चंद्रमा का प्रेमी माना जाता है. कहा जाता है कि चकोर रात भर चांद को देखता है. जब चांद नज़र नहीं आता, तो चकोर अंगारों को चांद की किरण समझकर खा लेता है. कवि रैदास ने “जैसे चितवत चंद चकोरा” के ज़रिए कहा है कि चकोर की तरह रात भर चांद देखने के बाद भी उसके नेत्र अतृप्त रह जाते हैं.
चकोर एक साहित्यिक पक्षी है. भारतीय कवियों ने कल्पना की है कि चकोर पूरी रात चांद को ताकता है.
मृच्छकटिका जैसे ग्रंथों में चकोर को चंद्रमा की किरणों पर भोजन करने वाला माना गया है. माना जाता है जब उसको चांद नजर नहीं आता तो अंगारों को चांद की किरण समझ कर चुगता है. इसी कारण से प्राचीन समय से कवि और शायर चकोर को चंद्रमा का प्रेमी मानते हैं और उसे अपनी कविताओं और अन्य काव्य साहित्य में प्रयुक्त करते आये हैं.
वास्तविक बात ये है कि इसमें थोड़ा अंधविशास भी है कि कीटभक्षी पक्षी होने के कारण, चकोर चिंगारियों को जुगनू आदि चमकनेवाले कीट समझकर उनपर चोंच चला देता हैं, लेकिन न तो यह आग के टुकड़े को खाता है और न निर्निमेष सारी रात चंद्रमा को ताकता रहता है.
चकोर पक्षी वर्ग के मयूर कुल का प्राणी है, जिसकी शिकार किया जाता है. इसका माँस स्वादिष्ट होता है. चकोर मैदान में न रहकर पहाड़ों पर रहना पसंद करता है. यह तीतर से स्वभाव और रहन सहन में बहुत मिलता जुलता है. पालतू हो जाने पर तीतर की भाँति ही अपने मालिक के पीछे-पीछे चलता है. इसके बच्चे अंडे से बाहर आते ही भागने लगते हैं.
चांद और चकोर के प्रेम की कहानी हम लोग जानते हैं. किसने न सुनी होगी. दुनिया में जहां प्रेम का बात होगी वहां चांद और चकोर को खूब याद किया जायेगा. दुनिया भर में चांद और चकोर के प्रेम की खूब कहानियां कही जाती हैं. उत्तराखंड के पहाड़ में चांद और चकोर के प्रेम की कही जाने वाली एक दिलचस्प कहानी कुछ ऐसी है :
उत्तराखंड की लोक कथा :
मन्नतो के बाद जब सूरज के यहां बेटी हुई तो ज्योतिषों ने उसके बारेमें एक भविष्य वाणी की कि सूरज और चांद के साथ निकलने का दिन धरती कयामत के दिन के तौर पर दर्ज हुआ इसलिये सूरज ने अपनी बेटी के रहने के लिये दूर एक पहाड़ की चोटी को चुना. बड़ी खुबसुरत सी दिखने वाली इस चोटी को चांदकोट कहा जाता हैं.
चांदकोट में चांद दो बलवान भैंसों के साथ अकेले रहती थी. वहीं खेती करती, चारा उगाती और अपनी भैंसों के साथ रहा करती. दूध की सफेदी जैसी उजली चांद, पालक के टुक्कों जैसी कोमल थी पर उसके जीवन में जेठ के दिनों जैसी उदासी थी. उसके रूप पर आकाश के सारे राजकुमार मरते थे. सूरज को तो बादल खूब पंसद था उसने बिना चांद से पूछे ही चुपके से उसका रिश्ता बादल से कर दिया था.
एक बार सूरज के घर एक फटेहाल राजकुमार आया. सूरज ने जब उससे उसके आने का कारण पूछा तो राज कुमार बोला , मेरा इस दुनिया में कोई नहीं, मुझे कोई काम दे दो और अपने यहां रहने की जगह भी दे दो. फटेहाल राजकुमार कई दिनों से भूखा और प्यासा था. उसका हाल देखकर सूरज को उसपर दया आ गयी और कहा, चांदकोट में मेरी बेटी चांद रहती है तुम वहां जाओ और उसकी भैंसों के लिये चारा उगाओ और खाने के लिये खेती करो.
राजकुमार चांदकोट की ओर चल पड़ा. आज से पहले चांदकोट पर कोई आदमी न आया था. जब चांद ने उसे देखा तो उसे चांदकोट पर कदम न रखने को कहा पर राजकुमार न रुका. राजकुमार को चांद के पास आता देख चांद की दोनों भैंसों ने राजकुमार पर हमला करने में देर न की.
राजकुमार ने दोनों भैंसों को उनकी नुकीली और मोटी सींग से पकड़कर नियंत्रित किया. राजकुमार का साहस देखकर चांद बड़ी प्रभावित हुई और उसने भैंसों और राजकुमार के बीच के द्वन्द्व को रोक दिया. चांद ने उससे उसके चांदकोट आने का कारण पूछा तो राजकुमार ने बताया कि वह बड़ा अभागा राजकुमार है उसका दुनिया में कोई नहीं इसलिए वह सूरज से मदद मांगने गया था उसी ने दया दिखाते हुए उसे उसकी सेवा के लिये भेजा है.
ठीक है पर तुमको मुझसे दूरी पर रहना होगा क्योंकि मैं किसी आदमी की छाया में नहीं रह सकती, चांद ने कहा. धरती से आये राजकुमार ने उसकी बात पर हामी भरी और अपने काम पर जुट गया. वह कभी चांद के करीब न आया पर चाँद हर दिन उसे काम करते हुये निहारती रहती.
धीरे-धीरे चांद के भीतर उसके करीब जाने का डर भी कम होता रहा न जाने कैसे उसके जीवन की उदासी भी कम होती रही. एक दिन जब चांद धरती से आये राजकुमार को निहार रही थी तो दूर घास काट रहे राजकुमार को देख छेड़ती हुई बोली, अरे घास काटने वाले लड़के, तुमको घास काटने के सिवा भी कुछ आता है?
धरती से आया लड़का एकदम से ठिठका और कुछ जवाब न दिया. बस चांद को देखता रहा. चांद उसके पास गयी और पास बैठने की जगह बनाई और हाथी के दातों के बने पासे निकाले. दोनों साथ बैठकर खेलने लगे.
उस दिन के बाद से दोनों हर रोज बैठकर पासे खेलते और खूब हँसते. चांदकोट की पहाड़ी के आस-पास बुरुंज खिलने लगे, न्यौली चिड़िया के गाने हवाओं में सुनाई देने लगे. चांदकोट की पहाड़ी में प्रेम की लहर बहने लगी चांद और धरती का राजकुमार एक-दूजे से प्रेम करने लगे. चांद और धरती के राजकुमार के प्रेम की बातें आसमान में तरह-तरह से उड़ने लगी और ख़बर बादल तक पहुंच गयी.
बादल सीधा सूरज के पास पहुंचा और चांद की शिकायत करते हुये सूरज को उसका वादा याद दिलाने लगा. यहां सूरज को जब चांद और धरती के राज कुमार के बारे में पता चला तो उसे खूब क्रोध आया. उसने उसी दिन चांद और बादल का विवाह करने की ठानी. जब सूरज ने चांद को अपना फैसला सुनाया तो वह खूब रोई. मतवाला बादल तो चांद को कभी पंसद ही न था. पर सूरज ने उसकी एक न सुनी.
बादल बारात लेकर चांदकोट की पहाड़ी पर आया और चांद और बादल के विवाह का मौका आया. सूरज ने बादल की खूब आवाभगत की और बादल के साथ सात रंगों के वचन लेने को चाँद को बुलाने लोगों को भेजा. चांद कहीं न मिली. लोगों ने उसे सब जगह ढूंढा पर वह न मिली. सूरज के आदमी चारों दिशाओं में गये और आखिर में उन्हें चांदकोट के सबसे ऊंचे पेड़ पर लटका हुआ चांद का शरीर मिला. मौत के बाद भी चांद उजली और सुंदर लग रही थी.
धरती से आये राजकुमार ने चांद को नीचे उतारा और तब तक उससे लिपटा रहा जब तक कि सूरज के लोगों ने उसे उससे अलग न किया. सूरज के लोग चांद का शरीर लेकर चले गये. धरती के राजकुमार ने उनका पीछा किया. नदी के किनारे चांद की चिता सजी हुई थी. जैसे ही चांद की चिता में आग लगी धरती का राजकुमार जलती चिता में कूद गया. कहते हैं धरती के राजकुमार की रूह एक पक्षी में बदल गई दुनिया उसे चकोर नाम से जानती है जो आज भी अपनी चांद को ढूंढ़ता फिरता है.