चार संत और नाविक| Char Sant Aur Navik

mountain 4291627 960 720

कुदरत ने हर व्यक्ति को अलग, अलग गुण और ज्ञान दिया है. कोयल कूहू… कूहू…. करती है. चिड़िया ची ची करती है… बकरी बे…….बे….. करती है. पोपट पिट्टू….. करता है. किसीको पोपट की वाणी अच्छी लगती है तो किसीको चिड़िया की. अनेकता मे भी भिन्नता कुदरत का करिश्मा है. 

      किसीको अपने ज्ञान का अभिमान नहीं होना चाहिए. हर व्यक्ति अपने क्षेत्र मे पारंगत होता है. परमाणु सबसे छोटा तत्व है. मगर जब वह बम्ब बनकर बरसता है तो विनाशक बन जाता है. जो भोला दीखता है वो खतरनाक होता है. शिव जी को भोला कहा जाता है मगर जब प्रभु तीसरी आंख खोलता है तो सामने वाले को भष्म कर देता है. 

           जिसको आप शूद्र , नीच जातिके समझते हो, वो भी सर्जनहार की देन है. हम सबको ईश्वर पर एक जैसा अधिकार है. जिसको आप तुच्छ समझते हो वो भी कभी तारण हार बन कर खड़ा रह जाता है.अतः किसीको अपने ज्ञानका अभिमान बिलकुल नहीं होना चाहिए. आज ऐसे ही सबक देने वाली एक कहानी मै आप लोगोसे शेयर करना चाहता हुं. 

                कहानी चार संतों की. 

एक बार चार संत नदी के किनारे नाव की प्रतीक्षा मे किनारे पर खड़े थे. जैसे ही नाव किनारे पर आयी नाविक ने चारों संतों को हाथ पकड़कर प्रेम से नाव मे बैठाया. नाव ने सामने किनारे जानेके लिये प्रयाण किया. 

        चारो संत एक दूसरे से अंजान थे. समय पास करने के लिये आपस मे बातें करने लगे. पहला संत जो हिंदू था, वो बोला मैंने को चारो वेदोंका अध्यन किया है. चारो वेदोंको आत्मसात किया है. लोग मुजे वेदाचार्य कहते है और मानते भी है. मै सबको वेदोका ज्ञान देता हुं. 

     दूसरा संत क्रिश्चन था, वो बोला मैंने तो बाइबल की स्टडी किया है. लोग मुजे फादर कहते है. और सम्मान करते है. मै सबको बाइबल सिखाता हुं. तीसरा संत मुस्लिम था, वो बोला मैने कुरान का पठन किया है और लोग मुजे मौलवी बोलते है, मै सबको पवित्र कुरान के पाठ सिखाता हुं. 

         अब चौथे की बारी आयी तो वो बोला, मै सिखो के समूहदाय से हुं. मैंने ” गुरु ग्रंथ साहिब ” का अध्यन किया है लोग मुजे सिख गुरु कहते है. 

     नाविक नाव चलाते चलाते चारो संतों की वाणी सुन रहा था. एक संत नाविक की ओर मुड़ा और बोला आपको क्या ज्ञान है ? वो नाविक चारोंको संबोधित करते हुये बोला, मुजे तो इनमेसे कोई पुस्तक का ज्ञान नहीं है. 

     सुनते ही चारो एक दुसरो का मुह देखकर, नाविक की अज्ञानता पर जोर जोर से हसने लगे. फिर उसमे से एक बोला, तो आपको मोक्ष की प्राप्ति कैसे होंगी ? 

   उनकी बात सुनकर नाविक शर्मिन्दा हुआ. इत्तेफाक से नाव नदी के बिच मे पहुंची तो तेज हवा चलने लगी, नाव डगमगाने लगी. पानी नाव के अंदर आने लगा. अब नाव का डूबना निश्चित था, अतः नाविक बोला, तुम लोगोंको तैरना आता है ? चारो संत एक दूसरे के मुह देखने लगे. 

   नाविक बोला, मै तो गवार हुं , अज्ञानी हुं. अनपढ़ हुं , आप लोग ही बचनेका कोई उपाय बताओ. 

          मौत को सामने आते देखकर चारो की आंख मे आशु आये.चारों ने नाविक के पाव पकड़ लिये और बोले हमें क्षमा करो प्रभु ! हम लोगोने आपका मज़ाक उड़ाया. आप ही हमें बचा सकता है. कुछ तो करो प्रभु , कहकर गिड़गिड़ाने लगे. 

   नाविक ने तुरंत नावसे लाइफ गार्ड निकाली और चारो को गले मे पहना दी. खुद तैर कर आगे बढ़ने लगा और चारो को हाथमे रस्सी देकर आगे किनारे की तरफ तैरने लगा कुछ ही समय मे चारो संतों को सुख रुप किनारे पहुंचाया. 

         किनारे पहुंचते ही , अब चारो की आंख मे आंसु तो थे, मगर हर्ष के आंसु. सबने नाविक को गले लगाया. अतः हर व्यक्ति अपने अपने क्षेत्र मे पारंगत है. सबसे पास कामका हुनर होता है, कला होती है. अपने अपने क्षेत्र मे सब महान है. इसिलए कहा गया है की कुदरत की बनाई हर चीज को प्यार से देखो. उसकी कदर करना ही ईश्वर की कदर करना समान है.    

            ———-======*======———–

                  शिव सर्जन

About पत्रकार : सदाशिव माछी -"शिव सर्जन"

View all posts by पत्रकार : सदाशिव माछी -"शिव सर्जन" →