छत्रपति संभाजी राजे भोसले और क्रूर घातकी औरंगजेब| Chhatrapati Sambhaji Maharaj

sambhaji m e1626291571520

श्री छत्रपति शिवाजी महाराज के निधन के बाद उनके उत्तराधिकारी श्री संभाजी शिवाजी भोसले का नाम इतिहास मे अमर हो गया. जो छत्रपति शिवाजी महाराज के बड़े पुत्र और महाराज की  पहली और प्रिय पत्नी सईबाई के बेटे थे.  

         जब वे दो साल के थे, तब उनकी मा की मृत्यु हो गईं इसीलिए उसकी परवरिश दादी जीजा बाई ने की थी. मराठा साम्राज्य का राजा संभाजी राजे के लिये औरंगजेब ने प्रण लीया था की जब तक संभाजी राजे पकडे नहीं जायेंगे तब तक वो अपनी पगड़ी ( मुकुट ) माथे पर नहीं पहनेगा. 

      श्री संभाजी राजे का जन्म ता : 14 मई 1657 मे पुरंधर दुर्ग पुणे मे हुआ था, और  31 साल की उम्र मे ता : 11 मार्च 1689 के दिन औरंगजेब द्वारा निर्मम हत्या कर दी गईं थी.  श्री संभाजी राजे अपनी शौर्यता के लिये सु प्रसिद्ध थे. अपने शासन काल मे उन्होंने करीब डेढ़ सो से ज्यादा युद्ध किये थे. मगर उनकी सेना एक युद्ध मे भी पराभूत नहीं हुई थी. 

      श्री शिवाजी महाराज के निधन के बाद ता :16 जनवरी 1681 के दिन पन्हाला दुर्ग मे श्री संभाजी राजे महाराज का राज्याभिषेक हुआ था.  

    सन 1680 मे शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद शिवाजी महाराज के दूसरे बेटे राजाराम को सिंहासन पर बिठाया गया. उसके बाद श्री संभाजी राजे ने पन्हाला किला को अपने क़ब्ज़े मे लेने के बाद ता : 20 जुलाई 1680 को श्री संभाजी की ताजपोशी हुई थी. 

sambhaji removebg preview
छत्रपति संभाजी राजे भोसले और क्रूर घातकी औरंगजेब| Chhatrapati Sambhaji Maharaj 3

        सत्ता मे आते ही उन्होंने मुगल साम्राज्य से पंगा लेकर बुरहानपुर शहर पर हमला करके, जगह जगह आग लगाकर उसको बर्बाद कर दीया. और मुगलों से दुश्मनी कर ली. 

        औरंगज़ेब के चौथे बेटे अकबर ने जब अपने पिता से बग़ावत की तो संभाजी राजे ने  उसे आसरा दिया था. उस दौरान संभाजी राजे ने अकबर की बहन ज़ीनत को एक ख़त लिखा. वो ख़त औरंगज़ेब के लोगों के हाथ लगा और भरे दरबार में औरंगज़ेब को पढ़ कर सुनाया गया. ख़त कुछ इस तरह था,

“ बादशाह सलामत सिर्फ मुसलमानों के बादशाह नहीं हैं. हिंदुस्तान की जनता अलग-अलग धर्मों की है. उन सबके ही बादशाह हैं,  वो जो सोच कर दक्कन आये थे, वो मकसद पूरा हो गया है. इसी से संतुष्ट होकर उन्हें दिल्ली लौट जाना चाहिए. एक बार हम और हमारे पिता उनके कब्ज़े से छूट कर दिखा चुके हैं. लेकिन अगर वो यूं ही ज़िद पर अड़े रहे, तो हमारे कब्ज़े से छूट कर दिल्ली नहीं जा पाएंगे. अगर उनकी यही इच्छा है तो उन्हें दक्कन में ही अपनी क़बर के लिए जगह ढूंढ लेनी चाहिए ” यह थी खत की विगत. 

      सन 1687 में मराठा फ़ौज की मुग़लों से लड़ाई हुई.जीत मराठों की हुई. लेकिन उनकी सेना कमज़ोर हो गई. यही नहीं उनके सेनापति और संभाजी के विश्वासपात्र हंबीरराव मोहिते की इस लड़ाई में मौत हो गई. श्री संभाजी राजे के खिलाफ़ षड्यंत्रों और  उनकी जासूसी होने लगी. 

       फ़रवरी 1689 में जब श्री संभाजी एक बैठक के लिए संगमेश्वर पहुंचे, तो वहां उनपर  हमला किया और मुग़ल सरदार मुक़र्रब ख़ान की अगुआई में संभाजी के सभी सरदारों को मार डाला गया. उन्हें और उनके सलाहकार कविकलश को पकड़ कर बहादुरगढ़ ले जाया गया.

       औरंगज़ेब ने संभाजी के सामने एक प्रस्ताव रखा. सारे किले औरंगज़ेब को सौंप कर इस्लाम कबूल किया तो माफ करने का वादा किया गया. संभाजी राजे ने इस प्रस्ताव का इंकार कर दिया. इसके बाद शुरू हुआ, यातनाओं का लंबा दौर… 

       इस्लाम कबूलने से इंकार करने पर दोनों की शहरभर में परेड़ कराई गई. पूरे रास्ते भर उन पर पत्थरों की बरसात की गई. भाले चुभाए गए. उसके बाद उन्हें फिर से इस्लाम धर्म कबूलने के लिए कहा गया. फिर से इंकार करने पर और ज़्यादा यातनाएं दी गई. दोनों कैदियों की ज़ुबान कटवा दी गई. गरम शलाके डालकर आंखें फोड़ दी गईं. हाथ पैर काट दिये गये. शिर काट दीया गया. और  उनको तड़पा-तड़पा कर मार डाला गया.

       फिर भी शेर दिल ने इस्लाम कबूल नहीं किया. हिंदू धर्म के साथ सौदा नहीं किया.चाहे ता : 11 मार्च 1689 को उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर के हत्या कर दी गई. ऐसे हिंदुत्व वादी महावीर की गाथा सुनकर आंखों मे पानी भर जाता है. सैलूट तो संभाजी राजे. 

         कहते हैं कि मार डालने से पहले औरंगज़ेब ने संभाजी राजे से कहा था, कि “अगर मेरे चार बेटों में से एक भी तुम्हारे जैसा होता, तो सारा हिंदुस्तान,  मुग़ल सल्तनत में समा चुका होता.”

            कुछ लोगों के मुताबिक़ उनकी लाश के टुकड़ों को तुलापुर की नदी में फेंक दिया गया. वहां से उन्हें कुछ लोगों ने निकाला और उनके जिस्म को सी कर उसका अंतिम संस्कार कर दिया. कुछ और लोग का कहना  हैं कि उनके जिस्म को मुग़लों ने कुत्तों को खिलाया था. 

        मौत के बाद औरंगज़ेब ने सोचा था कि मराठा साम्राज्य ख़त्म हो जाएगा और उस पर काबू पा लेना मुमकिन होगा, मगर संभाजी के मृत्यु बाद जो मराठा सरदार बिखरे थे, वो उनकी मौत के बाद एक होकर लड़ने लगे. इसके चलते औरंगज़ेब का दक्कन पर काबिज़ होने का सपना मरते दम तक पूरा नहीं हो सका. और जैसा  संभाजी ने कहा था औरंगज़ेब को दक्कन में ही दफ़न होना पड़ा.

          यह थी मराठा सम्राट शूरवीर श्री संभाजी राजे की कहानी. मराठा साम्राज्य की शौर्य गाथा . ये थे हमारे हिंदुत्व, हिंदवी राष्ट्र के रक्षक, हिंदू राष्ट्र के प्रणेता जिस पर हम सबको नाज़ है. आपको जरूर पसंद आयी होंगी. मगर एक बार प्रेम से बोलना पड़ेगा , जय माता भवानी , जय शिवाजी राजे, जय संभाजी राजे.  (विराम )     

           ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

                         शिव सर्जन प्रस्तुति.

About पत्रकार : सदाशिव माछी -"शिव सर्जन"

View all posts by पत्रकार : सदाशिव माछी -"शिव सर्जन" →