छिपकली जैसी दिखनेवाली “गोह.”

गोह सरीसृपों के स्क्वामेटा गण के वैरानिडी कुल के जीव हैं जिनका शारीरिक स्वरूप छिपकली के जैसा होता है, परंतु ये उससे बहुत बड़े होते हैं. अपने आस-पास के छोटे जीवों को खाता है. सांप और पक्षियों के अंडे इसे पसंद हैं. गोह जहरीले जीवों की खाद्य शृंखला को नियंत्रित करता है. अंग्रेजी में इसे मॉमन इंडियन लिजार्ड, मोनिटर लिजार्ड, बंगाल लिजार्ड तथा बंगाल मॉनिटर आदि नाम से जाना जाता है.

गोह अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, अरब और एशिया आदि देशों में फैले हुए हैं. ये एक स्थलीय जानवर है, जिसकी लंबाई (थूथन की नोक से पूंछ के अंत तक) लगभग 61 से 175 सेमी (24 से 69 इंच) तक हो सकती है. इनका रंग प्राय: भूरा होता है और शरीर छोटे-छोटे शल्कों से भरा होता है. इनकी जीभ साँप की तरह दुफंकी, पंजे मज़बूत, दुम चपटी और शरीर गोल होता है. इनमें जहर होता है.

गोह पानी व दलदल से प्यार करती है. यह साँप की तरह जीभ लपलपाती रहती है. गोह जब दौड़ती है तब पूँछ ऊपर उठा लेती है. यह कीड़े-मकोड़े, मेंढक , मछलियाँ और केकड़े खाती है. यह बड़े गुस्सैल स्वभाव की है. गोह बरसात से पहले किसी बिल या छेद में 15 से 20 अंडे देती है. मादा अंडों को छुपाने के लिए बिल फिर भर देती है और बहकाने के लिए चारों ओर दो-तीन और बिल खोदकर छोड़ देती है. आठ या नौ महीनों के बाद जाकर सफ़ेद रंग के अंडे फूटते हैं.

प्रंशात महासागर के आदिवासी गोह खाते भी हैं यहाँ इनकी खाल के लिए इनका शिकार किया जाता है. गोह को वन्य पशु, पक्षी प्राणी अधिनियम के तहत संकटगत अबल सूची में शामिल है. माना जाता है की मराठा साम्राज्य के बहादुर सेनापति तानाजी मालूसरे द्वारा एक बार दुश्मन के किले की दीवार पर चढ़ने के लिए गोह (मॉनिटर छिपकली) का इस्तेमाल किया था. यशवंती नामक गोह की सहायता से तानाजी सिंहगड किल्ला चढ़े थे.

नर गोह आमतौर पर मादाओं से बड़े होते हैं. भारी मॉनिटर का वजन लगभग 7.2 किग्रा हो सकता है. युवा मॉनिटर छिपकली वयस्कों की तुलना में अधिक रंगीन होती हैं. साथ ही इनके गर्दन, गले और पीठ पर गहरे रंग के क्रॉसबार की एक श्रृंखला होती है. युवा मॉनिटर की त्वचा की सतह पर, पीले धब्बों की एक श्रृंखला होती है, जिसमें गहरे अनुप्रस्थ बार होते हैं जो उन्हें जोड़ते हैं.

गोह जैसे-जैसे वे परिपक्व होती हैं, उनकी त्वचा का रंग हल्का भूरा या धूसर हो जाता है, और काले धब्बे उन्हें धब्बेदार रूप देते है. गोह को लोगोंमे व्याप्त अंधविश्वास के कारण मानव वन्यजीव संघर्ष और वन्यजीव तस्करी जैसे मुद्दों का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. उसके खाल का उपयोग ढोल की ताल बनाने के लिए किया जाता है. इसे पूरे दक्षिण एशिया में व्यापक रूप से बेचा जाता है. लोग उनके मांस तथा अंडों को एक स्वादिष्ट और कामोत्तेजक भी मानते हैं.

बताया जाता है कि विश्व में बनने वाले हाथघड़ी के पट्टेका व्यापार करोड़ों रुपये का है. जिसमें 90% गोह और बाकी अन्य छिपकलियों के चमड़े से बनते हैं. आधे से अधिक ढोलक भी इसी चमड़े से बजते हैं. अनुमान है कि औसतन भारत में एक वर्ष में पांच लाख गोह मारी जाती हैं.

गोह किसान के खेतों से टनों कीड़े मकोड़े और विनाशक जन्तु खा कर लाखों करोड़ों का अनाज बचाती हैं. गोह के 78 दात होते हे. दात करवत की तरह अतिशय तीक्ष्ण होते है.

गोह मांसभक्षक प्राणी है. यह खासकर पक्षी और उसके अंडे, चूहें, साप, मच्छी, छोटे बड़े जंतु खाकर अपना निर्वाह करती है. विश्व में गोह की

27 से 30 प्रजाती पाई जाती है, उनमे से चार प्रजाति भारत में पाई जाती है.

गोह का प्रजनन समय काल जुलाई से सितंबर होता है. मादा गोह इस काल में अंडे देती है. एक समय में ये 25 ते 30 अंडे देती है.

गोह का तेल वातविकार के लिए उपयोगी माना जाता है, इसीलिए गोह की हत्या की जाती है. गोह की आयु 12 से 20 साल तक की होती है.

गोह दीवार में चपक जाती है और उसे बहुत कठिनता से छोड़ती है. ऐसा कहा जाता है कि चोर इसकी कमर में रस्सी बाँधकर इसे मकान के ऊपर फैंक देते थे और जब यह वहाँ पहुँचकर चिपक जाती थी, तो वे उस रस्सी की सहायता से ऊपर चढ़ जाते थे. गोह दो प्रकार की होती है, एक “चंदन” गोह जो छोटी होती है और दूसरी “पटरा” गोह जो बड़ी और चिपटी होती है.

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