मराठा सैन्य ने वसई किला जितने के बाद वहां पर चर्च में रखे बड़े घंटे को उतारकर हाथी पर रखकर बड़ा जुलुस निकाला था. यहांका एक घंटा भीमा शंकर, बल्लालेश्वर मंदिर और एक घंटा वाई के पास मेणवली स्थित नाना फडणीस के वाडे के पीछे बनाये गये घाट पर विध्यमान है.
मेणवली स्थित घंटे पर पुर्तगाल भाषा में लेख स्पष्ट दिखाई देता है. नरवीर चिमाजी अप्पा ने वसई किला जितने के बाद वजेश्वरी माता मंदिर का निर्माण करके अपनी मन्नत पुरी की थी. आज वहां हजारों लोग मन्नत मांगने जाते है.
चिमाजी अप्पा का जन्म कहा और जन्म तारीख के बारेमें निश्चित अटा पटा नहीं है. मगर उनका निधन तारिख : 17 दिसंबर 1940 में पुणे स्थित हुआ था.
चौका धारावी डोंगरी स्थित स्मारक तक पहुंचने के लिये भाईंदर स्टेशन पश्चिम से चौका बस क्र -1 पकड़नी होंगी. स्टॉप पर उतरते ही पहाड़ी पर आपको एक बड़ा क्रिकेट का ग्राउंड दिखाई देगा. यहीं पर ही प्रस्तावित स्मारक स्थल विध्यमान है. हालांकि वर्तमान मे किले की दीवारे वहां मौजूद नहीं है. यह स्थल भाईंदर पश्चिम स्टेशन से 17 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है.
वहासे आपको पूर्व दिशा कि ओर मोरवा , राई , मूर्धा, गांव सहित भाईंदर पूर्व शहर का नयनरम्य नजारा देखनेको मिलेगा. उत्तर की ओर अरबी समुद्र तथा वसई भाईंदर की खाडी का दृश्य दृष्टिमान होगा. यदि वातावरण साफ हो तो भाईंदर की खाडीपर बना रेल्वे ब्रिज भी दिखाई देगा.
अपनी बाइक या निजी वाहन हो तो आप डोंगरी गांव बस स्टॉप से श्री धारावी देवी माता मंदिर मार्ग होकर चौका जेटी पहुंचकर उपर पहाड़ी मार्ग से स्मारक स्थल तक पहुंच सकते है. निचे जेटी से उपर तक पहुंचने के लिए पक्का मार्ग है.
उल्लेखनीय है की सन 1739 तक वसई के किले पर पुर्तगाल की हकूमत थी. तब दीव, दमण, गोवा, सेलवास, नगर हवेली, अर्नाला विरार ओर केलवा तक पुर्तगाल का राज़ चलता था. नरवीर चिमाजी अप्पा (सन 1707 से 1740 ) ने दो साल तक लड़ाई जारी रखकर पुर्तगाल वसाहत पर जीत हासिल की और साष्टी तालुका पर अपना वर्चस्व स्थापित किया था.
वसई किले पर चढ़ाई के दौरान दरवाजा तोड़नेके लिये ऊंट एवं हाथी का उपयोग किया गया था. पुर्तगाल के सैन्य ने उपर से गरम तेल डाला था चिमाजी अप्पा ने खुद तोपे दागी. दोनों पक्ष में जानहानि हुई मगर मराठा सैन्य की जानहानि ज्यादा हुई थी. लगातार दो दिन तक धमासान युद्ध चला था. पुर्तगाल सेनापति मार दिया गया. फिर भी पुर्तगाल सैन्य ने लड़ाई जारी रखी.
आखिर कार मराठा सैन्य के जोश के आगे पुर्तगाल को हार माननी पड़ी थी. नरवीर चिमाजी अप्पा, बाजीराव पेशवा के छोटे भाई थे. नरवीर चिमाजी अप्पा का एक लड़का था जिसका नाम श्री सदाशिव राव भाउ था. जिसकी पानीपत के दूसरे युध्ध में हार हुई थी. चिमाजी अप्पा बाजीराव पेशवा का छोटा भाई था. अतः उसे आगेसे मालूम था की उसे राजगद्दी नही मिलने वाली है, फिर उसने सेनापति का काम बखूभी निभाया ओर जीत हासिल की थी. और इतिहास में अमर हो गये.
जिस समय धारावी किला निर्माण किया गया, उस वक्त मुर्धा खाड़ी और मोरवा खाड़ी पार करने के लिए मराठा ओको बडी मसक्कत करनी पड़ी थी.
ता : 6 मार्च 1739 के दिन धारावी किला पुर्तगाल से वापिस जीत लिया उस वक्त मराठा ओने हाथी, ऊंट और घोड़े का इस्तेमाल किया था.
मिरा भाईंदर महानगर पालिका क्षेत्र मे स्थित उत्तन के उत्तरीय छोर पर चौका पहाड़ी पर बना नरवीर चिमाजी अप्पा का स्मारक करीब 18 साल से अधर मे पड़ा था..
बीस पच्चीस साल पहले तक भाईन्दर-उत्तन चौक खाड़ी किनारे से वसई किले के बुरुज आसानीसे दीखते थे. मगर वहा अतिक्रमण बढ़ने से और बढे ऊँचे पैडो की वजह धीरे धीरे किला दिखना बंद हो गया.
उत्तन चौक धारावी स्थित का यह किला जीर्ण अवस्था मे होनेकी वजह तथा असामाजिक तत्वों द्वारा किले के पत्थर चुरा ले जानेकी वजह नेस्तनाबूद हो रहा था. अतः वो तोड़कर वहां श्री चिमाजी अप्पा का स्मारक बननेकी की माग रखी गई थी. काम का शुभारंभ हो चूका था, मगर प्रशासन की नामंजूरी से यह स्मारक करीब 18 साल से विलंबित हुआ था.
चौक के किले को धारावी किले के नामसे भी पहचाना जाता है. वर्तमान में चौकी टाइप किलेके अवशेष रह गये है. पहले ये चौकी किले के भीतर थी. जहां पहाडी स्थित ऊपरी हिस्से पर नरवीर चिमाजी अप्पा का स्मारक बनने का प्रावधान था. वहां लंब चौरस आकार मे पहाड़ पर से किलेकी दीवार निचे समुद्र तक जाकर निचे की चौकी को कवर करती थी. जो खंडहर होने के बाद तोड़ दी गई थी. यहासे दुश्मनो की निगरानी होती थी. वर्तमान यहां किले की दीवार तोड़कर बिचमेसे डामर का एक रास्ता बनाया गया है. जो निचे जेटी होकर आगे डोंगरी होकर स्टेशन रोड को मिलता है.
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