” कोहिनूर ” हिरे के बारेमें आप लोगोंने कई बार सुना होगा. मगर आज मुजे कोहिनूर हिरे की कुछ विशेष बातें आप सुज्ञ लोगों के साथ शेयर करनी है.
” कोहिनूर ” एक जगमगाता हिरा है. कई प्रकार के हीरो मे कोहिनूर हिरा प्राचीन, प्रसिद्ध और अति महंगा माना जाता है. राजा महाराजा इसे अपने मुकुट मे लगाना शान समजते थे. कोहिनूर का अर्थ ” प्रकाश का पर्वत ” या ” प्रकाश की श्रंखला ” होता है. वैसे हिरा विभिन्न नगों और रत्नों मे सबसे अद्भुत रत्न होता है.
यह हिरा दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश राज्य के गुंटूर जिले की कोल्लूर खदान से निकाला था. मगर इस संबंध मे इतिहासकारो मे मतमतांतर है.
कोहिनूर शब्द फारसी के ( कूह-ए-नूर) से आया है. ये एक 105 कैरेट ( 21.6 ग्राम ) का हीरा है जो एक समय विश्व का सबसे बड़ा हीरा रह चुका है. वर्तमान ये हिरा ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय के ताज मे शोभा दे रहा है. जिसकी कीमत करोड़ों मे आंकी जाती है.
दुनिया का सबसे महंगा हिरा ” पिंक लेगेसी ” माना जाता है जो हाल ही मे 5 करोड़ डॉलर अर्थात लगभग 362 करोड़ रुपये मे बिका है. स्विट्जरलैंड के जिनेवा में इसकी नीलामी ब्रिटिश ऑक्शन हाउस क्रिस्टीज ने की थी.
यह हिरा गुलाबी रंग का है. इसका वजन 19 कैरेट बताया जाता है. ब्रिटिश ऑक्शन हाउस क्रिस्टीज के जेवेलरी डिपार्टमेंट के हेड राहुल कदाकिया ने 18.96 कैरट के पिंक लिगेसी हीरे की नीलामी प्रक्रिया संचालित की थी. जिसे एक मशहूर जेवेलर हैरी विंस्टन ने 5 करोड़ डॉलर तक की सबसे ज्यादा बोली लगाकर खरीद लिया था.
हमारे भारत देश के आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में हीरे के भंडार है. वर्तमान मध्य प्रदेश में पन्ना हीरे की खान देश में हीरे का उत्पादन कर रही है.
इतिहासकारो के अनुसार कोहिनूर हिरेकी सबसे पहली जानकारी सन 1304 के आसपास मिलती है, तब यह हिरा मालवा के राजा महलाक देव के स्वामित्व मे था.
इसके बाद इस हिरे का जिक्र बाबरनामा में मिलता है. मुगल शासक बाबर की जीवनी के मुताबिक, ग्वालियर के राजा बिक्रमजीत सिंह ने अपनी सभी संपत्ति सन 1526 में पानीपत के युद्ध के दौरान आगरा के किले में रखवा दी थी. बाबर ने युद्ध जीतने के बाद किले पर कब्ज़ा जमाया और तब 186 कैरेट के रहे हीरे पर भी कब्जा जमा लिया था. तब इस हिरेका नाम बाबर रखा गया था.
तबसे ये हिरा मुगलों के पास ही रहा. सन 1738 में ईरानी शासक नादिर शाह ने मुगलिया सल्तनत पर हमला किया. 1739 में उसने दिल्ली के तब के शासक मोहम्मद शाह को हरा कर उसे बंदी बना लिया और शाही ख़जाने को लूट लिया. इसमें बाबर हीरा भी था. इस हीरे का नाम नादिर शाह ने ही कोहिनूर रखा था.
. नादिर शाह कोहिनूर को अपने साथ ले गया. सन 1747 में नादिर शाह की अपने ही लोगों ने हत्या कर दी. इसके बाद कोहिनूर नादिर शाह के पोते शाह रुख़ मिर्ज़ा के कब्ज़े मे चला गया. 14 साल के शाह रुख़ मिर्ज़ा की नादिर शाह के बहादुर सेनापति अहमद अब्दाली ने काफी मदद की तो शाह रुख़ मिर्जा ने कोहिनूर को अहमद अब्दाली को ही सौंप दिया था.
. अहमद अब्दाली इस हीरे को लेकर अफ़ग़ानिस्तान तक पहुंचा. इसके बाद यह हीरा अब्दाली के वंशजों के पास रहा.
बताया जाता है की अब्दाली का वंशज शुजा शाह जब लाहौर पहुंचा तो कोहिनूर उसके पास था.
पंजाब में सिख राजा महाराजा रणजीत सिंह का शासन था. जब महाराजा रणजीत सिंह को पता चला कि कोहिनूर शुजा के पास है, तो उन्होंने उसे हर तरह से मनाकर 1813 में कोहिनूर हासिल कर लिया.रणजीत सिंह कोहिनूर हीरे को अपने ताज में पहनते थे. सन 1839 में उनकी मौत के बाद हीरा उनके बेटे दिलीप सिंह तक पहुंच गया.
सन 1849 में ब्रिटेन ने महाराजा को हराया. दिलीप सिंह ने लाहौर की संधि पर तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी के साथ हस्ताक्षर किए. इस संधि के मुताबिक कोहिनूर को इंग्लैंड की महारानी को सौंपना पड़ा.
कोहिनूर को लॉर्ड डलहौजी सन 1850 में लाहौर से मुंबई ले कर आए और वहां से छह अप्रैल, 1850 को मुंबई से इसे लंदन के लिए भेजा गया.
3 जुलाई, 1850 को इसे बकिंघम पैलेस में महारानी विक्टोरिया के सामने पेश किया गया. 38 दिनों में हीरों को शेप देने वाली सबसे मशूहर डच फर्म कोस्टर ने इसे नया अंदाज दिया. इसका वजन तब 108.93 कैरेट रह गया. यह रानी के ताज का हिस्सा बना.
शुरूमे कोहिनूर हिरा 793 कैरेट का था. अब कोहिनूर का वजन 105.6 कैरेट का रह गया है. इसका वजन 21.6 ग्राम है. एक समय इसे दुनिया का सबसे बड़ा हिरा माना जाता था. स्वतंत्रता हासिल करने के बाद 1953 में भारत ने कोहिनूर की वापसी की मांग की जिसे इंग्लैंड ने अस्वीकार कर दिया था.
सन 1976 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फ़िकार अली भुट्टो ने इसकी मांग की थी, जिसे ब्रिटेन ने ख़ारिज़ कर दिया था.
कोहिनूर से जुडी अनेक मान्यता के अनुसार कोहिनूर पुरुष स्वामियों के लिये दुर्भाग्य तथा मृत्यु का कारण बना है, मगर स्त्री स्वामिनियों के लिये सौभाग्य पूर्ण साबित हुआ है. इस कोहनूर हीरे को चखने के बाद सन 1658 मे आनंद बाबू की मृत्यु हो गई थी .
कोहिनूर के उद्गम के बारेमें अनेक कथा कही जाती है. कुछ जानकारों का कहना है की कोहिनूर हीरा, करीब 5000 साल पहले मिला था. यह प्राचीन संस्कृत इतिहास के अनुसार ” स्यमंतक ” मणि नाम से प्रसिद्ध रहा था. हिन्दू कथाओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं यह मणि, जाम्वंत से ली थी, जिसकी पुत्री जामवंती ने बाद में श्री कृष्ण से विवाह भी किया था. जब जाम्वंत सो रहे थे, तब श्रीकृष्ण ने यह मणि चुरा ली थी. एक अन्य कथा अनुसार ईसा पूर्व 3200 साल पहले यह हीरा नदी की तली में मिला था.
ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार, यह गोलकुंडा की खदान से निकला था, जो आंध्र प्रदेश में, विश्व की सवसे प्राचीन खानों में से एक हैं.
बाबर ने अपने बाबरनामा में लिखा है, कि यह हीरा सन 1294 में मालवा के एक अनामी राजा का था. बाबरनामा में इसका उल्लेख है, कि किस प्रकार मालवा के राजा से जबरदस्ती यह विरासत अलाउद्दीन खिलजी को देने पर मजबूर किया गया था. हालांकि बाबरनामा सन 1526 – 30 में लिखा गया था.
सबसे पहले कोहिनूर हीरे का उल्लेख बाबर के द्वारा लिखें गये “ बाबर नामा ” में किया गया है.
एतिहासिक तथ्यों तथा दस्तावेजों के अनुसार सन 1200 से लेकर 1300 तक इस हीरे को गुलाम साम्राज्य, खिलजी साम्राज्य और लोदी साम्राज्य के पुरुष शासकों ने अपने पास रखा और अपने श्राप की वजह से यह सारे के सारे साम्राज्य अल्पकालीन रहे और इनका अंत जंग और हिंसा के साथ हुआ.
सन 1323 मे यह हिरा काकतीय वंश के पास गया तो उसका साम्राज्य अचानक बुरी तरह गिर गया. काकतीय राजा की हर युद्ध में हार होने लगी, वह अपने विरोधियों से मात खाने लगे और एक दिन उनके हाथ से शासन चला गया.
काकतीय साम्राज्य के विनाश के बाद यह हीरा सन 1325 से 1351 तक मोहम्मद बिन तुगलक के पास रहा और 16 वीं शताब्दी के मध्य तक यह विभिन्न मुगल सल्तनत के पास रहा और वे सभी का अंत इतना बुरा हुआ जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी.
कोहिनूर हिरा हुमायुं के पास रहा तो उसका जीवन भी बहुत दुर्भाग्यपूर्ण रहा. वह शेरशाह सूरी से हार गया. सूरी भी एक तोप के गोले से जल कर मर गया . उसका पुत्र व उत्तराधिकारी जलाल खान को अपने साले द्वारा हत्या कर दी गयी. बादमे उस साले को भी उसके एक मंत्री ने तख्तापलट कर के हटा दिया . वह मंत्री भी एक युद्ध को जीतते जीतते आंख में चोट लग जाने के कारण हार गया, व स्ल्तनत खो बैठा.
हुमायुं के पुत्र अकबर ने यह रत्न कभी अपने पास नहीं रखा, जो कि बाद में सीधे शाहजहां के खजाने में पहुंचा. शाहजहां ने इस कोहिनूर हीरे को अपने मयूर सिंहासन में जड़वा तो दीया लेकिन उनका शासन उनके बेटे औरंगजेब के हाथ चला गया. उनकी पसंदीदा पत्नी मुमताज का इंतकाल हो गया और उनके बेटे ने उन्हें उनके महल में ही नजरबंद कर दिया.
.. सन 1739 में फारसी शासक नादिर शाह भारत आया और उसने मुगल सल्तनत पर आक्रमण कर दिया. इस तरह मुगल सल्तनत का पतन हो गया और सत्ता फारसी शासक नादिर शाह के हाथ चली गई.सन 1747 में नादिर शाह का भी कत्ल हो गया और कोहिनूर उसके उत्तराधिकारियों के हाथ में चला गया लेकिन कोहिनूर के श्राप ने उन्हें भी नहीं बक्शा. सभी को सत्ताविहीन कर उन्हीं के अपने ही समुदाय पर एक बोझ बनाकर छोड़ दिया गया.
फिर यह हीरा पंजाब के राजा रणजीत सिंह के पास गया और कुछ ही समय राज करने के बाद रणजीत सिंह की मृत्यु हो गई और उनके बाद उनके उत्तराधिकारी गद्दी हासिल करने में कामयाब नहीं रहे.
आखिरकार ब्रिटिश राजघराने को इस हीरे के श्रापित होने जैसी बात समझ में आ गई और उन्होंने यह निर्णय लिया कि इसे कोई पुरुष नहीं बल्कि महिला पहनेगी.
सन 1936 में इस हीरे को किंग जॉर्ज षष्टम की पत्नी क्वीन एलिजाबेथ के क्राउन में जड़वा दिया गया और तब से लेकर अब तक यह हीरा ब्रिटिश राजघराने की महिलाओं के ही सिर की शोभा बढ़ा रहा हैं.
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